जिस अकेले शख़्स ने ऑस्ट्रेलिया दौरे पर पूरी टीम इंडिया का भार अपने कंधों या यों कहें अपनी गेंदबाज़ी पर टिकाए रखा था, आख़िरी पारी में वो मैदान से बाहर हुआ और सिरीज़ 3-1 से मेज़बान ऑस्ट्रेलिया के नाम दर्ज हो गई.
क़रीब एक दशक बाद पहली बार बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी जीतने के बाद ऑस्ट्रेलियाई कप्तान पैट कमिंस और उनके साथियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि उन्होंने भारत को हराकर 2023 में 19 नवंबर को अहमदाबाद में वन-डे वर्ल्ड कप भी जीता था.
उससे पहले जून 2023 में इंग्लैंड के ओवल मैदान में भी उन्होंने रोहित शर्मा के साथियों को हराकर वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप भी जीती थी.
लेकिन, इस खुशी के माहौल में अगर आपको किसी एक खिलाड़ी से सहानूभूति होगी तो वो निसंदेह सिडनी टेस्ट के भारतीय कप्तान जसप्रीत बुमराह ही होंगे.
जिस बुमराह ने सिरीज़ में अकेले सबसे ज़्यादा 151.2 ओवर की गेंदबाज़ी करते हुए रिकॉर्ड तोड़ 32 विकेट झटके, उनके लिए शायद इस सिरीज़ में हार देखना ज़्यादती हुई.
बुमराह को मैन ऑफ़ द सिरीज़ का पुरस्कार मिलने पर ऑस्ट्रेलियाई कप्तान को किसी तरह की मायूसी भी नहीं हुई जिन्होंने बुमराह से ज़्यादा (167) ओवर फेंके लेकिन 25 विकेट ही झटके. ये अलग बात है कि कप्तान और बल्लेबाज़ के तौर पर वो ज़्यादा प्रभावशाली रहे.
ऑस्ट्रेलिया के लिए राहत
कमिंस से जब पूछा गया कि आख़िरी दिन बुमराह का गेंदबाज़ी ना करना कितना बड़ा फैक्टर रहा तो उन्होंने ईमानदारी से इस बात को कबूला कि निश्चित तौर पर ऑस्ट्रेलिया को इसका फायदा हुआ.
कमिंस का कहना था कि पूरी सिरीज़ के दौरान मैच चाहे किसी भी पिच पर हो रहा हो बुमराह की चुनौती उनकी टीम के लिए मुश्किल ही रही और उनका गेंदबाज़ी न करना निश्चित तौर पर मेज़बान को फ़ायदा दे गया.
अगर आप आंकड़ों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि इस दौरे पर एक पारी में गेंदबाज़ी नहीं करने के बावजूद बुमराह ने 32 विकेट लिये.
उनका औसत 13.1 और स्ट्राइक रेट 28.3 रहा. बुमराह ने तीन बार पारी में 5 विकेट लेने का कारनामा भी किया
वहीं भारतीय टीम के बाक़ी गेंदबाज़ी आक्रमण ने मिलकर सिर्फ 40 विकेट झटके. उनका औसत 34.8 और स्ट्राइक रेट 52.7 का रहा और किसी भी अन्य गेंदबाज़ ने पारी में 5 विकेट लेने का कमाल नहीं किया.
लगातार बल्लेबाज़ी क्रम के नाकाम होने के बावजूद बुमराह ने मैच दर मैच, पारी दर पारी अपने बुलंद हौसले और फौलाद जैसे दिख रहे शरीर से बिना थके हुए आक्रामकता और निरंतरता का मेल दिखाया.
उनके इस प्रदर्शन से सारे ऑस्ट्रेलियाई दिग्गज़ इस बात से सहमत थे कि मैल्कम मार्शल के बाद क्रिकेट की दुनिया ने टेस्ट क्रिकेट में बुमराह से बेहतर गेंदबाज़ नहीं देखा.
बुमराह अगर आख़िरी पारी में खेलते तो शायद मिचैल जॉनसन के 5 मैचों की सिरीज़ में ऑस्ट्रेलियाई ज़मीन पर सबसे ज़्यादा 37 विकेट के रिकॉर्ड को भी तोड़ देते.
भारत के नामी बल्लेबाज़ रहे नाकाम
ख़ैर, जीत के लिए सिर्फ 162 रनों के लक्ष्य का पीछा करने वाली कंगारू टीम को पता था कि ये लक्ष्य तभी मुश्किल दिखेगा जब बुमराह दौरे की आख़िरी और सबसे निर्णायक पारी में गेंद थामेंगे.
ऐसा हुआ नहीं क्योंकि पीठ की दर्द की वजह से बुमराह ने दूसरे दिन ही गेंदबाज़ी नहीं की थी. कहने को तो आप मोहम्मद सिराज और प्रसिद्ध कृष्णा के पहले स्पैल को कसूरवार ठहरा सकते हैं लेकिन असली नाकामी तो पूरे दौरे पर बल्लेबाज़ों की ही रही.
कप्तान रोहित शर्मा के रन बुमराह के विकेटों की संख्या से कम रही तो विराट कोहली के 9 पारियों में 190 रन (जिसमें पर्थ की दूसरी पारी में एक शतक था) ही बना पाये और 8 पारियों के दौरान एक ही अंदाज़ में आउट हुए.
रोहित शर्मा ने तो सार्वजनिक तौर पर एक नहीं 2-3 मौकों पर ये क़बूला कि वो अपनी लय से जूझ रहे हैं.
पूर्व कप्तान और टीम इंडिया के सबसे बड़े बल्लेबाज़ विराट कोहली को उनके पुराने साथी इरफ़ान पठान ने आड़े हाथों लेते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि सुपर स्टार कल्चर अब नहीं चलेगा. उन्होंने ये भी दलील दी कि कोहली आख़िर घरेलू क्रिकेट क्यों नहीं खेलते हैं?
इतना ही नहीं इरफ़ान ने ये भी कहा कि कोहली जैसे दिग्गज सुनील गावसकर या फिर किसी और महान खिलाड़ी से अपनी तकनीक के बारे में बात करने से क्यों हिचकिचा रहें हैं. ज़ाहिर सी बात है कि , इस हार के बाद भारतीय क्रिकेट में बहुत करारा पोस्टमार्टम होगा.
लेकिन, क्या सिर्फ़ कोहली और रोहित को दोषी देकर भारतीय क्रिकेट शांति से सो सकता है? अगर नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को देखें तो शुभमन गिल 32 मैचों में 35 की औसत ही हासिल कर पाए हैं.
भारतीय टीम के लिए समय कितना कठिन
तीन साल पहले ब्रिसबेन में 91 रनों की पारी खेलने के बाद गिल के बल्ले से एशिया के बाहर एक भी अर्धशतक नहीं निकला है.
के एल राहुल जिन्होंने इसी सिडनी में ठीक 10 साल पहले अपने करियर की शुरुआत करते हुए शतक लगाया था, वो 58 मैचों के बाद 34 का भी औसत हासिल नहीं कर पाये हैं.
यशस्वी जायसवाल के 391 रन और नीतीश रेड्डी के 298 रन इस सिरीज़ में चयनकर्ताओं को शायद चीख चीख कर ये कह रहें हों कि नए खून पर भरोसा करें तो नतीजे बेहतर हो सकते हैं.
रवींद्र जडेजा जैसे सीनियर ऑलराउंडर ने तीन मैच खलेकर सिर्फ़ 4 विकेट ही हासिल किये और बल्ले से भी वो सिर्फ़ 135 रन ही बना पाए. उनके साथी दिग्गज आर अश्विन तो बीच दौरे से ही संन्यास लेकर घर वापस लौट गए.
आने वाले कुछ महीने गौतम गंभीर और अजीत अगरकर को मुश्किल दौर से गुज़रना होगा. उन्हें सीनियर खिलाड़ियों के साथ मिलकर ईमानदारी से बात करनी होगी कि वाक़ई में अगले टेस्ट सिरीज़ जो कि इंग्लैंड में है, उसके लिए उनकी क्या य़ोजना है.
गंभीर ने तो प्रेस कॉन्फ़्रेंस में आकर ये कह दिया कि दिग्गज़ अपने खेल के बारे में जानते हैं और उन पर कोई बात थोपी नहीं जा सकती है.
लेकिन, बीसीसीआई को इस हार के बाद निश्चित तौर पर कड़े फैसले लेने ही होंगे क्योंकि साल 2007 के बाद लेकर अब तक टीम इंडिया इंग्लैंड में भी टेस्ट सिरीज़ नहीं जीत पाई है.
क्या उस दौरे से भारतीय टेस्ट टीम के लिए नए दौर की शुरुआत होगी क्योंकि बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी हारने के साथ ही टीम वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल की दौड़ से भी बाहर हो चुकी है.
इससे पहले टीम इंडिया दो बार लगातार फ़ाइनल में पहुंच थी लेकिन ट्रॉफी नहीं जीत पायी थी.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित