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तीन वर्षों के लंबे सन्नाटे के बाद आमिर ख़ान इस शुक्रवार को बड़े पर्दे पर वापसी कर रहे हैं. उनकी नई फ़िल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ को उनकी ‘कमबैक’ फ़िल्म कहा जा रहा है.
हालांकि, मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री के गलियारों में ये सवाल ख़ूब चर्चा में है कि क्या 60 साल के आमिर वैसा ब्लॉकबस्टर कमबैक कर पाएंगे, जैसा दो साल पहले शाहरुख़ ख़ान ने ‘पठान’ (2023) के ज़रिए किया था?
इस तुलना के पीछे ठोस वजह भी है. आमिर की ही तरह बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख़ ख़ान का स्टारडम कुछ साल पहले बुरी तरह हिल गया था.
‘फैन’ (2016), ‘जब हैरी मेट सेजल’ (2017) और ‘ज़ीरो’ (2018) जैसी उनकी बड़ी फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह धराशायी हो गई थीं.
अगर वर्षों के हिसाब से देखें, तो आमिर की आख़िरी हिट फिल्म ‘दंगल’ (2016) पूरे नौ साल पहले रिलीज़ हुई थी.
इसके बाद आईं दो बड़ी फिल्में- ‘ठग्स ऑफ हिंदुस्तान’ (2018) और ‘लाल सिंह चड्ढा’ (2022) बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरीं और आमिर के स्टारडम पर सवाल भी खड़े कर दिए.
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ख़ास तौर पर ‘लाल सिंह चड्ढा’, जिसका उन्होंने प्रोडक्शन भी किया था, उसकी विफलता ने आमिर को न सिर्फ़ व्यावसायिक रूप से बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी झकझोर कर रख दिया.
हाल में अपने कई इंटरव्यू में कह चुके हैं कि इस नाकामी के बाद वह डिप्रेशन से गुज़रे और उन्होंने फिल्में छोड़ने के बारे में भी सोच लिया था.
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आमिर पहले भी ऐसे दौर झेल चुके हैं
आमिर ख़ान ने बतौर हीरो 1988 की बड़ी हिट ‘क़यामत से क़यामत तक’ से बॉलीवुड में धमाकेदार दस्तक दी थी.
वो फ़िल्मी परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
उनके पिता ताहिर हुसैन फ़िल्म निर्माता थे और चाचा नासिर हुसैन तो कामयाब स्क्रीनराइटर-निर्माता और निर्देशक थे.
मगर ‘क़यामत से क़यामत तक’ से रातोंरात स्टार बने आमिर की अगली कई फिल्में लव लव लव, अव्वल नंबर, तुम मेरे हो, दीवाना मुझ सा नहीं, जवानी ज़िंदाबाद बुरी तरह फ्लॉप हो गई थीं.
इसके बाद उन्होंने ब्लॉकबस्टर फ़िल्म ‘दिल’ से वापसी की थी. आने वाले सालों में वो हिट और फ्लॉप के सफ़र से गुज़रते हुए राजा हिंदुस्तानी, रंगीला, ग़ुलाम और सरफ़रोश जैसी कामयाब फ़िल्मों के ज़रिए एक प्रमुख स्टार बने रहे.
लगान के बाद बदली रणनीति, ट्रेंडसेटर बने आमिर
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2001 में ‘लगान’ और ‘दिल चाहता है’ की सफलता के बाद आमिर ख़ान ने बॉलीवुड में एक बिल्कुल अलग राह चुनी.
जहाँ उनके समकालीन स्टार शाहरुख़, सलमान, अक्षय और गोविंदा साल में कई फ़िल्में साइन कर रहे थे, आमिर ने तय किया कि वो एक वक़्त में सिर्फ़ एक फ़िल्म पर ध्यान देंगे.
इस रणनीति पर उस समय फ़िल्म इंडस्ट्री में खूब सवाल उठे लेकिन आमिर अपने फ़ैसले पर अडिग रहे.
अगले चार साल उन्होंने केतन मेहता की फ़िल्म ‘मंगल पांडे द राइज़िंग’ पर अपना सब कुछ झोंक दिया. मगर 2005 में रिलीज़ हुई मंगल पांडे फ्लॉप हो गई. इस नाकामी ने आमिर ख़ान को बड़ा झटका दिया था. आलोचकों ने कहा कि आमिर को ‘राजा हिंदुस्तानी’ या ‘इश्क़’ जैसी ‘मसाला फिल्में’ ही करनी चाहिए.
आमिर की अगली फ़िल्म ‘रंग दे बसंती’ भी आम बॉलीवुड मसाला फिल्मों से अलग अंदाज़ की थी. ये प्रयोग कामयाब रहा. फ़िल्म बड़ी हिट हो गई. इसके बाद तो आमिर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.
फ़ना, ग़जनी, धूम 3 जैसी बड़ी हिट्स आईं, तो तारे ज़मीन पर, पीपली लाइव और डेल्ही बेली जैसी प्रयोगधर्मी फ़िल्में भी. इन सब फ़िल्मों में एक ही समानता थी कि ये सब फ़िल्में हिट थीं.
हर बार आमिर की ख़ासियत रही अलग कहानी, दमदार स्क्रिप्ट और जोख़िम लेने की हिम्मत. फिर आई करियर की सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्में: थ्री इडियट्स, पीके, और दंगल. इनसे आमिर की पहचान एक अपराजेय बॉक्स ऑफिस स्टार और ‘मिस्टर परफेक्शनिस्ट’ के रूप में मज़बूत हुई.
कमाई में भी आमिर ने बेंचमार्क सेट किए
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बॉलीवुड में आज ‘100 करोड़ क्लब’ को किसी भी कामयाब फ़िल्म की कसौटी माना जाता है. आमिर की फ़िल्म ग़जनी (2008) भारत में पहली 100 करोड़ कमाने वाली फ़िल्म थी, फिर थ्री इडियट्स (2009) पहली फ़िल्म बनी, जिसने 200 करोड़ की कमाई की और पीके (2014) 300 करोड़ क्लब की शुरुआत बनी.
इन सफलताओं के पीछे एक और चीज़ थी. आमिर की फ़िल्म प्रोमोशन और मार्केटिंग में महारत.
वो न सिर्फ़ स्क्रिप्ट चुनने में माहिर हैं बल्कि हर फ़िल्म को बेचने का तरीक़ा भी उन्हें बख़ूबी आता है.
फ़िल्म ग़जनी में उन्होंने न सिर्फ़ ‘बेयर हेड’ लुक अपनाया बल्कि कई शहरों में फ़िल्म प्रचार के लिए दर्शकों के बाल भी ख़ुद काटे, जिससे उस समय फ़िल्म को लेकर एक जबरदस्त माहौल भी बना और फिर ‘थ्री इडियट्स’ के लिए वे आम छात्र की तरह कॉलेज कैंपस में घूमे. वहीं ‘पीके’ के प्रमोशन में रेडियो जॉकी बन गए.
आमिर का मानना है कि फ़िल्म सिर्फ़ बनाई नहीं जाती, उसे महसूस भी कराया जाता है. मगर ये सब एक दशक पहले तक ही काम आया.
पिछले कुछ सालों में हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में काफ़ी कुछ बदल चुका है. इन वर्षों में गिनी-चुनी हिंदी फिल्में ही बड़ी हिट हो पाई हैं.
शाहरुख़, सलमान और आमिर को दशकों तक बॉलीवुड के सबसे प्रभावशाली चेहरों में गिना गया. लेकिन समय का पहिया घूम चुका है. शाहरुख़ ने तो पठान और जवान के ज़रिए वापसी कर ली जबकि सलमान की पिछली तीन फ़िल्में उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकीं और आमिर को नौ साल से सफलता की तलाश है.
ख़ासतौर पर “परफेक्शन” और “क्वालिटी सिनेमा” से जोड़ कर देखी जाने वाली उनकी छवि डगमगाती दिखी.
आमिर ख़ान की प्रमोशन रणनीति
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फ़िल्म प्रचार के तरीक़े भी बदल चुके हैं. पहले जहां लगभग सभी बड़े स्टार्स टीवी स्टूडियो और अख़बारों के दफ़्तरों में जाकर बेतहाशा प्रमोशन करते थे, अब वैसा प्रचार धीरे-धीरे कम होता गया.
कोविड काल के बाद कम से कम बॉलीवुड के बड़े सितारों ने इस तरह के प्रोमोशनल इंटरव्यू देने तक़रीबन बंद ही कर दिए.
अब आमतौर पर एक ट्रेलर लॉन्च में ही सवाल-जवाब का मामला निपटा दिया जाता है.
शाहरुख ख़ान ने तो ‘पठान’ और ‘जवान’ के लिए एक भी टीवी चैनल, अख़बार या इन्फ्लुएंसर को इंटरव्यू नहीं दिया था. बस ट्विटर (एक्स) पर ‘आस्क मी एनीथिंग’ से ही सारा प्रचार संभाल लिया.
आमिर प्रमोशन के उस्ताद रहे हैं लेकिन ‘सितारे ज़मीन पर’ के लिए वो ज़रूरत से ज़्यादा कोशिश करते नज़र आ रहे हैं. मानो उन पर किसी भी तरह फ़िल्म को हिट बनाने का दबाव है. वो ये भी कहते हैं कि एक्शन फ़िल्मों के दौर में वो बिल्कुल अलग तरह की फ़िल्म लेकर आ रहे हैं.
पिछले कई हफ़्तों से आमिर कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स, ऑनलाइन चैनल, टीवी चैनल और अख़बारों को लंबे-लंबे इंटरव्यू दे रहे हैं. इनमें से कई इंटरव्यू तो एक घंटे से भी ज़्यादा लंबे हैं.
इन सभी इंटरव्यू में आमिर लाल सिंह चड्ढा की नाकामी के असर, ओटीटी से थिएटर बिज़नेस पर नुक़सान जैसी फ़िल्मों से जुड़ी बात ही नहीं कर रहे बल्कि निजी ज़िंदगी के पहलुओं पर भी खुलकर बोल रहे हैं- दो तलाक़, शराब की लत, डिप्रेशन, बच्चों और परिवार को समय ना देने के पछतावे और नई पार्टनर गौरी के ज़िक्र से लेकर पुराने विवादों तक. कई जगह वो कैमरे के सामने भावुक भी हुए और आंसू भी बहे.
जब कोई बड़ा सितारा यूं ज़मीन पर उतरता है, इतनी ईमानदारी से ख़ुद को खोलता है, अपनी ग़लतियों को कैमरे पर स्वीकार करता है तो यक़ीनन ये सारी बातें एक स्टार के अंदर के इंसान से रूबरू कराती हैं; लेकिन जब वही बातें बार-बार, लगातार अलग-अलग मंचों पर दोहराई जाती हैं, तो प्रचार की यह रणनीति पुरानी और दिखावटी लगने लगती है.
फ़िल्म इंडस्ट्री में ज़िक्र है कि क्या ज़रूरत से ज़्यादा कोशिश आमिर ख़ान के प्रचार को ‘परफ़ेक्शन’ के बजाए ‘ओवरकिल’ की तरफ़ नहीं धकेल रही?
आमिर का बड़ा दांव
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अपनी छवि के मुताबिक़, आमिर ने हाल ही में एक और साहसी फ़ैसला लिया है.
दरअसल आमिर लगातार ये बात कर रहे हैं कि ओटीटी ने फ़िल्मों के थिएटर बिज़नेस पर बहुत बुरा असर डाला है. आमतौर पर चलन ये है कि ज़्यादातर बड़े बजट की फ़िल्में थिएटर रिलीज़ के आठ हफ्तों के भीतर ओटीटी पर आ जाती हैं.
फिक्की-ईवाई मीडिया और एंटरटेनमेंट रिपोर्ट 2025 के मुताबिक़, इस समय भारत का 18,700 करोड़ रुपये का फ़िल्म मनोरंजन बाज़ार गंभीर दौर से गुज़र रहा है.
2023 में सिनेमाघरों से होने वाली कमाई 12,000 करोड़ रुपये थी, जो 2024 में घटकर 11,400 करोड़ रुपये रह गई.
आमिर ने बड़ा दांव खेलते हुए इन हालात को बदलने का फ़ैसला किया है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, उन्होंने फ़िल्म सितारे ज़मीन पर की तकरीबन 120 करोड़ की ओटीटी डील को भी ठुकरा दिया है. वो चाहते हैं कि थिएटर में रिलीज़ के कम से कम छह महीने बाद ही फ़िल्म ओटीटी पर रिलीज़ हो ताकि दर्शक सिनेमाघरों में ज़्यादा तादाद में लौटें.
आमिर ख़ान की चिंता जायज़ है और पहले भी फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़ी जानी-मानी हस्तियां ये बातें दोहरा चुकी हैं. ये सच है कि फ़िल्मों के जल्द ही ओटीटी पर उपलब्ध होने की वजह से दर्शकों के पास सिनेमाघर जाने की कोई ख़ास वजह नहीं बचती. थिएटर और घर बैठकर फ़िल्म देखने वाले दर्शकों के बीच एक स्पष्ट अंतर बनाए रखने के लिए इतना वक्त ज़रूरी है.
आमिर ख़ान का ये क़दम क्या ‘पीछे जाना’ नहीं है?
शाहरुख़ ख़ान तो ओटीटी को दोष दिए बिना एक साल में दो-दो बार (2023 की पठान और जवान) अपने फ़ैंस को सिनेमाघर तक लाने में कामयाब रहे थे.
अजय देवगन (शैतान और रेड), राजकुमार राव (स्त्री 2), कार्तिक आर्यन (भूल भुलैया 3), अल्लू अर्जुन (पुष्पा 1 और 2) और प्रभाष (कल्कि) जैसे स्टार भी इन हालात में बड़ी बड़ी हिट फिल्में दे चुके हैं.
फिर बड़ा सवाल ये भी है कि कई वर्षों से घर बैठे ओटीटी पर नई फ़िल्में देखने की आदत डाल चुके लोग क्या वाक़ई थिएटर का रुख़ करेंगे या फिर छह महीने का इंतज़ार ही कर लेंगे?
ज़रा सोचिए स्मार्ट फोन से कोई पुराने स्टाइल के फ़ोन पर जाना पसंद करेगा? नई चीज़ों की आदत पड़ने के बाद पीछे जाना अक्सर मुश्किल होता है.
आमिर ख़ान के कंधों पर सिर्फ़ एक फ़िल्म नहीं, बल्कि उनकी वर्षों की साख और ट्रेंडसेटर वाली छवि का भी भार है.
ऐसे में क्या आमिर का यह क़दम बॉलीवुड के भविष्य को नई दिशा देगा या फिर यह उनके करियर के सबसे बड़े दांव में तब्दील हो जाएगा?
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