पिछले हफ़्ते सीरिया के नए नेता अहमद अल-शरा जिन्हें पहले अबू मोहम्मद अल-जूलानी के नाम से जाना जाता था, दमिश्क का दौरा कर रहे थे.
एक युवा महिला उनके पास आईं और उनके साथ तस्वीर खिंचवाने का अनुरोध किया. अहमद अल-शरा ने महिला से नरमी से कहा कि वह तस्वीर लेने से पहले अपना सिर ढंक लें.
यह घटना जल्द ही सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया में बहस का विषय बन गई. वैसे तो यह एक मामूली घटना लगती है, लेकिन असल में इसका बहुत महत्व है. इस घटना ने सीरिया के नए शासकों के सामने जो संवेदनशील स्थिति है उसे उजागर कर दिया है.
सीरिया के वर्तमान शासकों को संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और ब्रिटेन की ओर से एक आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है.
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एक ओर विविध और कई बार तुलनात्मक रूप से लिबरल सीरियाई आबादी है और इसके साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समुदाय है, जिसकी स्वीकार्यता हैयत (हयात) तहरीर अल-शाम (एचटीएस) के अस्तित्व और क़ानूनी हैसियत के लिए बहुत अहम है.
इस घटना ने एचटीएस के प्रभाव वाले सीरिया के भविष्य की एक परेशान करने वाली झलक पेश की है, जिससे यह आशंकाएं जन्म ले रही हैं कि क्या रूढ़िवादी सोच का नतीजा सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य पर्दे के रूप में सामने आ सकता है?
दूसरी और कुछ कट्टरवादी लोगों को अहमद अल-शरा के एक ‘बेपर्दा महिला’ के साथ तस्वीर खिंचवाने पर आपत्ति है और उनका कहना है कि उनका यह क़दम धार्मिक नीतियों का उल्लंघन है.
ऐसे कट्टर तत्व, लड़ाकू समूहों पर अच्छा खासा असर रखते हैं और अल-शरा के अपने समूह के अंदर विरोध को हवा दे सकते हैं.
एचटीएस के लिए क्या चुनौती?
एचटीएस के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और सीरिया की उदारवादी आबादी और कट्टरपंथी तत्वों की परस्पर विरोधी मांगों में संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी. दोनों पक्ष एचटीएस के हर क़दम को ध्यान से देख रहे हैं.
हयात तहरीर अल-शाम नाम के इस समूह के लिए अपने राजनीतिक संकल्पों को पूरा करना इस बात पर निर्भर करेगा कि वह समाज के विभिन्न वर्गों की परस्पर विरोधी उम्मीदों में कैसे संतुलन बनाते हैं, जो उनके लिए बेहद अहम है.
अहमद अल-शरा ने भी अभी तक अपने संदेशों में सीरिया के विविधतापूर्ण समाज के अंदर सह-अस्तित्व पर ध्यान केंद्रित रखा है.
उन्होंने उन पूर्व सैनिकों के लिए माफ़ी का ऐलान किया है जिन्हें सेना में जबरन भर्ती किया गया था. उन्होंने पूर्व सरकारी अधिकारियों और उनके समर्थकों के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई पर पाबंदी लगाई है.
अहमद अल-शरा ने इसराइल, अमेरिका, ईरान और रूस जैसे विरोधियों के बारे में समझौतावादी रवैया अपनाया है और ख़ुद को भड़काऊ बयानों और धमकियों से दूर रखा है.
उनके बयानों के केंद्र में स्थिरता और नवनिर्माण जैसे विषय हैं ताकि एचटीएस और ख़ुद अहमद अल-शरा का नाम अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची से निकाला जा सके.
कट्टरपंथी समूहों में बेचैनी
यह बात अभी तक साफ़ नहीं है कि अहमद अल-शरा का यह लचीला रवैया सच में उनके वैचारिक बदलाव को ज़ाहिर करता है या यह केवल अपनी सत्ता की स्वीकार्यता के लिए सोची-समझी रणनीति है जिसके बाद उन्हें अपने कट्टरवादी और रूढ़िवादी एजेंडा लागू करना है.
लेकिन अहमद अल-शरा के अधिक प्रगतिशील क़दम पहले ही सीरिया में कट्टरवादी लोगों में बेचैनी पैदा कर रहे हैं जो एक कठोर और विशेष कर सुन्नी पहचान पर आधारित इस्लामी राज्य के लिए ज़ोर देते हैं.
हालांकि ‘सुन्नी अरब’ सीरिया में अधिक संख्या वाले नस्ली और धार्मिक समूह हैं, लेकिन यह देश स्पष्ट रूप से विविधता से भरा हुआ है जिसमें विभिन्न अल्पसंख्यक समूह शामिल हैं. इन अल्पसंख्यक समूहों में अलवी, कुर्द, ईसाई, द्रूज़, तुर्कमान और इस्माईली शामिल है. इसके अलावा वहां दूसरे छोटे समूह भी हैं.
अगर हयात तहरीर अल-शाम का नेतृत्व सच में अपनी कोशिशों में साफ़ दिल भी है तो सीरिया में मौजूद कट्टरवादी मुसलमान और जिहादी समूहों के लिए किसी भी ऐसी व्यवस्था को स्वीकार करना संभव नहीं होगा जो कट्टर इस्लामी नीतियों पर स्थापित न हो.
अगर एचटीएस कट्टरवादी इस्लामी व्यवस्था के रास्ते से हटता है तो यह गिरोह संभावित तौर पर सशस्त्र विरोध पर उतर आएंगे ताकि अपने दृष्टिकोण को लागू कर सकें.
लेकिन एचटीएस के लिए यह कोई नई चुनौती नहीं है.
इस्लामिक स्टेट से अल-क़ायदा और अब एचटीएस
एक दशक से यह समूह ख़ुद में बदलाव ला रहा है. ये पहले अल-नुसरा फ़्रंट के नाम से जाना जाता था और इसकी जड़ें अंतरराष्ट्रीय जिहादी आंदोलन में हैं.
एचटीएस ने साल 2011 और 2012 के दौरान बेहद कट्टरवादी इस्लामी स्टेट के एक ख़ुफ़िया धड़े के तौर पर शुरुआत की. फिर अगले साल यह अल-क़ायदा से जुड़ गया और साल 2016 तक एक स्वतंत्र समूह बन गया.
इसने साल 2017 में उत्तर पश्चिम सीरिया के इदलिब पर अपना नियंत्रण मज़बूत किया और उस क्षेत्र में एक नागरिक ‘सरकार’ चलाई. इसके बारे में दावा किया गया कि उसका कोई पुराना जिहादी संबंध या संकल्प नहीं है.
यह बदलाव अहमद अल-शरा की रणनीतिक सोच को बताता है और संभावित तौर पर अवसरवाद और उनकी व्यावहारिक रणनीति के बारे में भी बताता है.
इसका मक़सद समूह की स्वीकार्यता और दीर्घकालिक अस्तित्व को सुनिश्चित करना है.
एचटीएस की यह बताने की रणनीति कि वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए कोई ख़तरा नहीं है, पहले ही सकारात्मक नतीजे दिखा चुकी है.
एक तरफ़ जब उसके पूर्व जिहादी साझेदार अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट सीरिया में अमेरिकी गठबंधन के ताबड़तोड़ हमले का निशाना बने और जिसमें अक्सर उनके नेता मारे गए, तो दूसरी तरफ़ अहमद अल-शरा इदलिब में तुलनात्मक रूप से आज़ाद होकर काम करते रहे.
हालांकि उस समय उनके सर पर अमेरिका की ओर से एक अरब डॉलर का इनाम रखा गया था, जिसे अब हटा दिया गया है, लेकिन वह ख़ास आज़ादी से अपने इलाक़े के शासक की तरह अक्सर सार्वजनिक स्थलों पर नज़र आते, समारोहों में हिस्सा लेते और जनता के साथ संपर्क बनाते रहे.
इसके बावजूद अहमद अल-शरा के जिहादी आलोचक उन पर यह आरोप लगाते हैं कि वह एक चालाक नेता हैं जो अपने करियर को आगे बढ़ाने और एचटीएस के लिए राजनीतिक लाभ पाने के लिए महत्वपूर्ण वैचारिक नीतियों पर समझौता करने को तैयार हैं. उनका आरोप है कि यह देश में सक्रिय दूसरे लड़ाकू समूहों की क़ीमत पर हो रहा है.
विद्रोहियों ने जनता का दिल कैसे जीता?
हयात तहरीर अल-शाम ने इदलिब में अपनी पकड़ को मज़बूत करने के लिए दोहरी रणनीति अपनाई.
स्थानीय आबादी का दिलो-दिमाग़ जीतने के लिए क्षेत्र में किसी हद तक स्थिरता लाई और अपने प्रतिद्वंद्वियों, यहां तक कि पूर्व साझेदारों को कुचलने या अपने साथ मिलाने के लिए ताक़त का इस्तेमाल किया.
इस समूह ने जिहादी दृष्टिकोण, धर्म के लिए युद्ध और सीरिया में इस्लामी शासन (शरीयत) की स्थापना की ख़ास बयानबाज़ी से ख़ुद को दूर कर लिया जो एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय योजना का हिस्सा था.
इसके बदले उन्होंने एक अधिक क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी नैरेटिव अपनाया जिसमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद को गद्दी से हटाने और सीरिया को ‘आज़ाद’ करने के इकलौते मक़सद पर ध्यान केंद्रित किया गया.
एचटीएस ने इदलिब में प्रशासन चलाने के लिए सीरियन साल्वेशन गवर्नमेंट (एसएसजी) के नाम से एक सरकार बनाई, जिसका मक़सद सरकार चलाने की क्षमताओं को साबित करना और अपनी क़ानूनी हैसियत को मज़बूत करना था.
ऐसे क़दम शायद इस डर को कम करने के लिए भी उठाए गए थे कि ‘अतिवादी दृष्टिकोण रखने वाला समूह’ एक राज्य चला रहा है और यह इस्लामिक स्टेट के सीरिया और इराक पर अत्याचार भरे शासन की छवि से ख़ुद को दूर करने की कोशिश थी.
एसएसजी एक ‘मिनी राज्य’ की तरह काम करती थी. इसमें एक प्रधानमंत्री, कई अन्य मंत्री और स्थानीय मंत्रालय शामिल थे जो शिक्षा, स्वास्थ्य और पुनर्निर्माण जैसे महत्वपूर्ण विभागों की व्यवस्था संभालते थे.
इसके अलावा एक धार्मिक काउंसिल शरीयत को ध्यान में रखकर मार्गदर्शन किया करती थी.
एसएसजी ने प्रोफ़ेशनल ढंग से काम करने वाली मिलिट्री और पुलिस एकेडमियां बनाईं जो अक्सर अपना ग्रेजुएशन सेरिमनी और मिलट्री परेड दिखाती थीं जिसमें आमतौर पर अल-शरा शामिल होते थे.
एसएसजी ने पुनर्निर्माण और सेवा उपलब्ध कराने में अपनी सफलताओं को ख़ास तौर पर पेश किया और अक्सर उन कोशिशों की तुलना उन इलाक़ों की बदतर हालत और भ्रष्टाचार से की जाती थी जो सीरियाई सरकार या प्रतिद्वंद्वी विद्रोही गुटों के नियंत्रण में थे.
यहां तक कि अल-शरा ने दो बार इदलिब के सालाना पुस्तक मेले में हिस्सा लिया और भाषण भी दिए.
लेकिन, इदलिब में एचटीएस को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा और उसके लिए वहां शासन चलाना आसान नहीं था.
27 नवंबर को एचटीएस के नेतृत्व में होने वाले विद्रोही हमले से पहले इस समूह को प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था जो ख़ास तौर पर अल-शरा के ख़िलाफ़ आयोजित होते थे.
प्रदर्शनकारियों ने एचटीएस पर असहमतियों को कुचलने के आरोप लगाए थे जिनमें विरोधियों और आलोचकों को जबरी तौर पर ग़ायब करने और उन्हें क़ैद करने की शिकायत भी शामिल थी.
इस समूह को कथित तौर पर विदेशी ताक़तों के साथ साठगांठ करने के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा था.
इस सिलसिले में उस पर यह आरोप लगाया जाता रहा कि यह सीरिया में ‘जिहाद’ को कमज़ोर कर सकता है.
एचटीएस साल 2023 में एक बड़े घोटाले में फंस गया, जिसमें उसके शीर्ष नेतृत्व के अंदर जासूसों का राज़ उजागर हुआ और कट्टरवादी तत्वों ने इस पर आरोप लगाया कि उसने बेनाम विदेशी समर्थकों को ख़ुश करने के लिए सीरियाई सेना के ख़िलाफ़ युद्ध से जानबूझकर पिंड छुड़ाया है.
कट्टरवादी बनाम उदावादी: धार्मिक पाबंदियां
हालांकि कुछ स्थानीय लोगों ने इदलिब में धार्मिक पाबंदियों के बारे में शिकायतें की हैं जैसा कि अरब मीडिया और एनजीओ ने बताया है लेकिन ऐसी शिकायतें बड़े पैमाने पर नहीं मिली हैं.
इसकी वजह शायद एचटीएस का तुलनात्मक रूप से लचीला रवैया और यह सच्चाई है कि राज्य के अधिकतर निवासी रूढ़िवादी सुन्नी मुसलमान हैं जो आमतौर पर वर्तमान व्यवस्था को स्वीकार करते हैं.
असल में कट्टरवादी तत्वों ने एचटीएस की अक्सर इस बात के लिए आलोचना की है कि वह ‘नर्म’ है और इदलिब में कठोर इस्लामी क़ानून लागू करने में नाकाम रहा है.
अहमद अल-शरा का कहना है कि कड़े क़ानून जैसे ‘मोरल पुलिसिंग’ को लागू करने का विचार पुराना हो चुका है और यह अक्सर नुक़सान का कारण बनता है.
अप्रैल 2023 में उन्होंने कहा था, “हम ऐसा पाखंडी समाज नहीं बनाना चाहते जो हमारे सामने नमाज़ पढ़े और हमारी अनुपस्थिति में छोड़ दे.”
उन्होंने ज़ोर दिया कि वह चाहते हैं कि लोग इस्लामी शिक्षा को अपनी समझ से स्वीकार करें, न कि डंडे के बल पर.
इन टिप्पणियों के बावजूद इस समूह ने अक्सर कठोर क़दमों का सहारा लिया, जिसका मक़सद स्पष्ट तौर पर कट्टरवादी तत्वों को ख़ुश करना था.
यह रुझान इस बात का संकेत देता है कि एचटीएस भविष्य में इस तरह के दबाव का जवाब कैसे दे सकता है.
उदाहरण के लिए हालांकि अलग-अलग नामों से काम करने वाली हिसबा (मोरलिटी पुलिस) की व्यवस्था को ख़त्म कर दिया गया है, लेकिन अहमद अल-शरा की आपत्तियों के बावजूद एसएसजी ने साल 2014 की शुरुआत में अपने गृह मंत्रालय के तहत एक ‘पब्लिक मोरालिटी पुलिस’ बनाई थी.
यह मोरालिटी पुलिस दुकानों की निगरानी करती थी, महिलाओं को धार्मिक लिबास की शर्तें पूरी करने पर मजबूर करती थी और सार्वजनिक जगहों पर मर्दों और औरतों के मेलजोल को सीमित करती थी.
कुछ महीने पहले एसएसजी के शिक्षा मंत्रालय ने एक फ़रमान जारी किया था जिसमें सभी छात्राओं और महिला स्टाफ़ को ‘ढीले इस्लामी लिबास’ पहनने को कहा गया था जो शरीयत के अनुसार हो.
इसमें बालों को ढंकना; उस फ़ैशन और चलन से बचना शामिल था, जिन्हें धार्मिक शिक्षाओं के ख़िलाफ़ बताया गया था. इस फ़रमान ने प्राइमरी और सेकंडरी स्कूलों में ‘को-एजुकेशन’ पर भी पाबंदी लगा दी.
दूसरे विद्रोही गुटों के साथ विवाद
सीरिया के विपक्षी दलों के समूह चाहे वह विद्रोही हों या जिहादी, वो अफ़रातफ़री और टूट-फूट का शिकार नज़र आए हैं जो अक्सर आंतरिक मामलों, इलाक़ों, संसाधनों, सत्ता और विचारों पर एक दूसरे से लड़ते थे.
कई सालों तक लगातार जारी यह मतभेद और दूसरी बातें बशर अल-असद के ख़िलाफ़ जीत हासिल करने की क्षमता को प्रभावित करती रहीं.
असद के पतन का कारण बनने वाला यह नया विद्रोही गठबंधन भी कमज़ोर साबित हो सकता है. इसके अलावा प्रतिद्वंद्वी धड़ों की आंतरिक चुनौतियों अब भी मौजूद हैं.
सीरिया में मौजूद दूसरे विद्रोही समूहों और तुर्की के समर्थन वाली सीरियन नेशनल आर्मी (एसएनए) के साथ एचटीएस का संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहा है.
एसएनए का ध्यान तुर्की की प्राथमिकता के अनुसार उत्तरी सीरिया के कुर्दों इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करने पर है ताकि तुर्की अपनी सीमाओं पर कुर्दों के ख़तरे को ख़त्म कर सके.
यह बात अभी तय होनी बाक़ी है कि दोनों समूह कुर्द बलों से छीने गए रणनीतिक स्थलों को कैसे आपस में बांटते हैं. एचटीएस अपने नेतृत्व में पूरे सीरिया को एक करने की बात करता है.
इस्लामिक स्टेट ने, जो अपने ऑपरेटिव्स और स्लीपर सेल्स के ज़रिए सीरिया में अब भी सक्रिय है, उसने देश में अपना जेहाद जारी रखने का ऐलान किया है और एचटीएस के नेतृत्व वाले विद्रोही प्रशासन को ‘धर्म से फिरा हुआ’ बताया है.
आईएस आरोप लगाता है कि एचटीएस को इस्लाम विरोधी ताक़तों ने सत्ता में लाया है.
उत्तर पूर्व में कुर्दों के नेतृत्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेज़ (एसडीएफ़) का नियंत्रण कमज़ोर होने के साथ इस्लामिक स्टेट की नज़रें हसका की जेलों और कैंपों पर भी लगी होने की संभावना है जहां इस्लामिक स्टेट से जुड़े लड़ाके और उनके परिवार रह रहे हैं.
उन जेलों से बड़े पैमाने पर ऐसे लोगों के फ़रार होने या उनकी रिहाई से सीरिया को अस्थिर करने की क्षमता स्पष्ट रूप से बढ़ सकती है.
सन 2011 में सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत और विरोधियों को असद सरकार के भयावह दबाने के बाद से सीरिया ने विदेशी लड़ाकों, धार्मिक नेताओं और अंतरराष्ट्रीय जिहादी समूहों को अपनी ओर आकर्षित किया है, जिन्हें ख़ास तौर पर तुर्की की सीमाओं ने सुविधा दी है.
इदलिब पर अपने नियंत्रण को मज़बूत करने के लिए और संभावित तौर पर उत्तरी सीरिया में जिहादी ख़तरे को रोकने के लिए विदेशी ताक़तों के साथ समझौते के बाद एचटीएस ने कुछ स्थानीय और विदेशी धड़ों को कुचल दिया और दूसरों को अपने साथ मिल लिया.
उनकी विदेशी पहचान को छिपाने के लिए उनकी यूनिटों का नाम बदल दिया. इनमें मध्य एशिया, चेचन्या, और चीन के उइगर अल्पसंख्यक के छोटे धड़े शामिल हैं.
अंसार अल-इस्लाम और अंसार अल-तौहीद जैसे आज़ाद जिहादी समूहों समेत, उनमें से बहुत से छोटे धड़ों ने बशर अल-असद की सरकार को ख़त्म करने की कार्रवाई में सक्रिय तौर पर हिस्सा लिया, जो नए सीरिया के भविष्य के निर्माण में उनके संभावित हितों को उजागर करता है.
असद के हटने बाद अल-क़ायदा जैसे समूहों के साथ-साथ उदारवादी इस्लामी व्यक्तियों और उलेमा ने एचटीएस से सीरिया में सुन्नी इस्लामी व्यवस्था को लागू करने की मांग की है.
अल-शरा का गोलमोल जवाब
6 दिसंबर को जब सीएनएन के एक प्रतिनिधि ने अहमद अल-शरा से सवाल किया कि क्या एचटीएस इस्लामी व्यवस्था को लागू करने का इरादा रखती है तो अल-शरा ने हां या ना में जवाब देने के बजाय गोलमोल जवाब दिया.
उन्होंने कहा, “जो लोग इस्लामी शासन से डरे हुए हैं उन्होंने या तो उसे ग़लत ढंग से लागू होते हुए देखा है या उसे सही तौर पर नहीं समझते हैं.”
इस सतर्कता से दिए गए जवाब से यह पता चलता है कि एचटीएस इस्लामी शासन लागू करने का मंसूबा तो रखता है लेकिन शायद एक अधिक लचीले और बारीक अंदाज़ में.
लेकिन असद सरकार को गिराने के बाद से एक साझा मक़सद हासिल करने के लिए शुरुआती उत्साह और सामूहिक कोशिश के बाद वैचारिक तनाव दोबारा उभरना शुरू हो गया है.
9 दिसंबर को एचटीएस ने पूर्व सैनिकों को आम माफ़ी देने का फ़रमान जारी किया लेकिन सीरिया में कट्टरपंथी वर्गों ने इस घोषणा पर बेहद नाराज़गी जताई और इसे शरीयत के ख़िलाफ़ बताते हुए इसकी निंदा की.
यहां तक कि इन वर्गों ने इस फ़रमान के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने को कहा और पूर्व सरकारी अधिकारियों के ख़िलाफ़ बदला लेने की मांग की, जो साफ़ तौर पर एचटीएस के आदेश का उल्लंघन था.
एचटीएस ने आलोचकों को राज़ी करने की कोशिश में एक बयान जारी किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि वह पूर्व सरकारी अधिकारियों और युद्ध अपराध में शामिल वफ़ादारों का पीछा करेगा.
इसके साथ ही एचटीएस ने अपनी पकड़ को मज़बूत करने की कोशिश की और यह ऐलान किया कि जो कोई भी उसके आदेश को नहीं मानेगा उसे सज़ा दी जाएगी.
एक अन्य विवाद 16 दिसंबर को उस समय पैदा हुआ जब अहमद अल-शरा ने देश में चरमपंथी समूहों और मिलिशिया को ख़त्म करने और उन्हें निशस्त्र करने के मंसूबों का ऐलान किया और केवल राज्य और सेना के हाथों में हथियार देने की घोषणा की.
एक बार फिर कट्टरपंथी तत्वों ने इसका विरोध किया और विभिन्न गुटों पर ज़ोर दिया कि वो अपने हथियार अपने पास रखें.
उन्होंने कहा कि इस क़दम से एचटीएस के हाथ मज़बूत हो जाएंगे और किसी दूसरे समूह को उसकी सत्ता को चुनौती देने के लिए हथियारों के साथ रहने नहीं दिया जाएगा और अत्याचार की राह आसान होगी.
असद के पतन के बाद सीरिया में बार-बार इसराइली हवाई हमलों पर एचटीएस के ख़ामोश रहने पर और असंतोष पैदा हुआ.
कई दिनों की चुप्पी के बाद 14 दिसंबर को अहमद अल-शरा ने हमले की आलोचना की, लेकिन कहा कि उनके समूह का किसी नए विवाद में शामिल होने का कोई इरादा नहीं है.
उन्होंने सीरिया के नवनिर्माण पर ध्यान लगाने पर ज़ोर दिया. उन्होंने यह भी कहा कि वह सीरिया को इसराइल के ख़िलाफ़ हमले के लिए ‘लॉन्च पैड’ के तौर पर इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं देंगे.
कुछ लोगों ने इजरायल के बारे में अहमद अल-शरा के स्टैंड को कमज़ोर और इस्लामी सिद्धांतों के ख़िलाफ़ बताया है.
अल-क़ायदा के एक बयान में कहा गया कि एचटीएस ग़ज़ा में फ़लस्तीनियों की रक्षा के लिए अपनी ‘ज़िम्मेदारी’ पूरी करने और इसराइल के ख़िलाफ़ जंग को प्राथमिकता दे.
इन तनावों से पता चलता है कि एचटीएस की पंक्तियों और विदेशी धड़ों में मौजूद कट्टरपंथी तत्व अगर उन्हें एक नए धार्मिक सीरिया के लिए अपने विज़न से दूर हटते हुए देखेंगे तो इस ग्रुप के ख़िलाफ़ हथियार उठाने के लिए तैयार हो सकते हैं.
इनमें बहुत से लोग और धड़े देश में अपनी ताक़त लगा चुके हैं और वह आसानी से अपने इरादे से पीछे नहीं हटेंगे.
वह सीरिया को तालिबान के नेतृत्व वाले अफ़ग़ानिस्तान की तरह एक मज़बूत सुन्नी इस्लामी राज्य के तौर पर देखते हैं जो क्षेत्रीय प्रभाव इस्तेमाल कर सके और पीड़ित मुसलमानों व जिहादी फ़रारियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह का काम करे.
उदारवादी और कट्टरवादी दोनों के दबाव में अहमद अल-शरा और एचटीएस किसी भी पक्ष को अधिक नाराज़ न करने की कोशिश में एक मुश्किल रास्ते पर चल रहे हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.