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सुजाता का सरेंडर और बालकृष्णा की मौत, क्या माओवादी संगठन पर गहरी ‘चोट’ साबित होंगे?

Byadmin

Sep 14, 2025


माओवाद

इमेज स्रोत, ALOK PUTUL

इमेज कैप्शन, 1970 के दशक में माओवादी आंदोलन भारत के कई राज्यों में तेज़ी से फैला

दो दिनों के भीतर सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के एक सदस्य मोडेम बालकृष्णा के मारे जाने और सेंट्रल कमेटी की ही दूसरी सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद माना जा रहा है कि माओवादी संगठन अपने सबसे मुश्किल दौर से गुज़र रहा है.

सरकारी दस्तावेज़ों पर भरोसा करें तो कभी 42 सदस्यों वाली सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी में, अब केवल 13 सदस्य बचे हैं.

छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा ने कहा, “सेंट्रल कमेटी की सदस्य सुजाता के आत्मसमर्पण के बाद, छत्तीसगढ़ में सक्रिय माओवादियों की सेंट्रल कमेटी में अब कुछ ही सदस्य बचे हैं. कुल मिला कर इनका शीर्ष नेतृत्व समापन की ओर है.”

केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक देश से माओवादियों को पूरी तरह से खत्म करने की समय सीमा तय कर रखी है. यही कारण है कि पिछले 20 महीनों से छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों ने माओवादियों के ख़िलाफ़ सघन अभियान चलाया हुआ है.

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