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बुधवार को तड़के (भारतीय समयानुसार) अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर, निक हेग और रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेग्ज़ेंडर गोर्बूनोव स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर सवार होकर पृथ्वी पर लौट रहे थे.
जब पूरी दुनिया उनकी सुरक्षित लैंडिंग का इंतजार कर रही थी, उसी समय सुबह 3.15 बजे अंतरिक्ष यान का पृथ्वी से संपर्क पूरी तरह टूट गया.
उस समय अंतरिक्ष यान लगभग 27,000 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से पृथ्वी की ओर आ रहा था.
अंतरिक्ष यान के चारों ओर का तापमान क़रीब 1927 डिग्री सेल्सियस था. छह से सात मिनट तक नासा के नियंत्रण कक्ष में किसी को भी यह पता नहीं चला कि ड्रैगन अंतरिक्ष यान पर क्या हो रहा है या वह कहां है.
जब सुबह 3 बजकर 20 मिनट पर नासा के डब्ल्यूबी57 सर्विलांस विमान के कैमरों ने पृथ्वी की ओर आते ड्रैगन अंतरिक्ष यान की तस्वीर कैद की.
तभी नासा नियंत्रण कक्ष में बैठे लोगों ने राहत की सांस ली. अगले कुछ ही मिनटों में ड्रैगन अंतरिक्ष यान के साथ संचार बहाल हो गया.
दरअसल, पृथ्वी की ओर बढ़ने वाला प्रत्येक अंतरिक्ष यान का वायुमंडल में प्रवेश की एक खतरनाक प्रक्रिया के दौरान नियंत्रण कक्ष से कुछ मिनटों के लिए संपर्क कट जाता है.
इन कुछ मिनटों को ‘ब्लैकआउट टाइम’ कहा जाता है. हालांकि यह एक सामान्य बात है, लेकिन बड़ी अंतरिक्ष दुर्घटनाएं इन्हीं कुछ मिनटों में घटित हुई हैं.
इसकी वजह ये है कि अगर उस विशेष समय पर अंतरिक्ष यान में कोई खराबी आती है, तो नियंत्रण कक्ष मौजूद विशेषज्ञों की टीम अंतरिक्ष यात्रियों को मार्गदर्शन नहीं दे पाएगी.
इसी प्रकार, अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी पर मौजूद किसी टीम को आपातकालीन सूचना नहीं भेज सकते.
इसका एक दुखद उदाहरण 2003 में कोलंबिया अंतरिक्ष यान की दुर्घटना है, जिसमें नासा के सात सदस्यों का दल सवार था, जिसमें भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला भी शामिल थीं. उस दुर्घटना में सभी यात्रियों की मौत हो गई थी.
‘रेडियो ब्लैकआउट’ क्यों होता है?
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मोहाली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च में प्रोफ़ेसर डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन ने बताया कि क्यों एक अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर लौटते समय ‘ब्लैकआउट टाइम’ या ‘रेडियो ब्लैकआउट’ जैसी घटना का सामना करना पड़ता है.
उनके अनुसार, “वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान अंतरिक्ष यान को बहुत अधिक गति और वायु के कणों के साथ घर्षण के कारण 1900 से 2000 डिग्री सेल्सियस के अधिक तापमान का सामना करना पड़ेगा. 1000 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के कारण अंतरिक्ष यान के चारों ओर प्लाज़्मा का निर्माण होगा.”
उदाहरण के लिए, यह प्लाज्मा आकाश में दिखाई देने वाली बिजली में मौजूद होता है.
डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन कहते हैं, “इस प्लाज़्मा आवरण के कारण ही पृथ्वी और अंतरिक्ष यान के बीच रेडियो संचार टूट जाता है.”
वह बताते हैं कि यह प्लाज़्मा अंतरिक्ष यान के चारों ओर एक शील्ड बनाता है, “हमारी दूरसंचार प्रणालियाँ विद्युत चुम्बकीय तरंगों पर निर्भर हैं. इस प्लाज़्मा शील्ड के कारण विद्युत चुम्बकीय तरंगों का संचार ठप हो जाता है. इससे पृथ्वी और अंतरिक्ष यान के बीच संपर्क टूट जाता है.”
नासा का कहना है कि इसी प्रक्रिया के कारण अंतरिक्ष यान पृथ्वी के निकट आते समय आग के गोले जैसा दिखाई देता है.
डॉ. टीवी वेंकटेश्वरन ने कहा कि यह जानना असंभव है कि ब्लैकआउट टाइम के कुछ मिनटों के दौरान अंतरिक्ष यान के अंदर क्या हो रहा है, “अगर आप निगरानी प्रणालियों के दूरबीनों के माध्यम से देखते हैं, तो आप केवल एक सफेद या नीली गेंद जैसी संरचना को आते हुए देख सकते हैं.”
उन्होंने कहा कि यह प्लाज्मा आवरण तब तक अपने स्थान पर रहेगा जब तक कि अंतरिक्ष यान के पैराशूटों का पहला सेट तैनात नहीं हो जाता, जिसके बाद नियंत्रण केंद्र के साथ संचार बहाल हो जाएगा.
टी.वी. वेंकटेश्वरन कहते हैं, “अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में, वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान दुर्घटनाएं इन्हीं कुछ मिनटों में हुई हैं.”
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‘ब्लैकआउट टाइम’ दुर्घटनाएँ
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एक फ़रवरी 2003 को अंतरिक्ष यान कोलंबिया अंतरिक्ष यान में 16 दिन बिताने के बाद पृथ्वी पर वापस लौटा. पांच पुरुष और दो महिलाओं वाला नासा का सात सदस्यीय दल इस पर यात्रा कर रहा था.
16 जनवरी 2003 को कोलंबिया अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के दौरान ही फ़ोम इन्सुलेशन का एक टुकड़ा उसके बाहरी ईंधन टैंक से अलग होकर अंतरिक्ष यान के बाएं हिस्से पर गिर गया. इससे कुछ ऊष्मा-प्रतिरोधी टाइलों को नुकसान पहुंचा था.
डॉ. वेंकटेश्वरन के अनुसार, “कोलंबिया शटल जैसे पुन: इस्तेमाल किए जाने वाले अंतरिक्ष यान में टाइलों के रूप में तापरोधी प्रणालियाँ थीं. यानी वे अंतरिक्ष यान पर विशेष टाइलें लगाते थे जो अत्यधिक गर्मी को झेल सकती थीं, ठीक वैसे ही जैसे हम अपने घरों की दीवारों पर टाइलें लगाते हैं.”
यही कारण है कि रूस के सोयुज जैसे पुनः इस्तेमाल किए जाने वाले अंतरिक्ष यान में पूर्ण तापरोधी प्रणाली होती है.
डॉ. वेंकटेश्वरन कहते हैं, “दुर्घटना का कारण कोलंबिया अंतरिक्ष यान की टाइल हीट शील्ड प्रणाली को क्षति पहुंचना था.”
एक फ़रवरी 2003 को जब कोलंबिया अंतरिक्ष यान ने पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश किया तो उसके चारों ओर बने प्लाज़्मा शील्ड और अत्यधिक तापमान ने कल्पना चावला सहित सात अंतरिक्ष यात्रियों की जान ले ली.
नासा का कहना है कि वायुमंडल से अत्यधिक गर्म गैसें कोलंबिया अंतरिक्ष यान के बाएं पंख के एक छेद से यान में प्रवेश कर गईं. इसके कारण अंतरिक्ष यान अस्थिर हो गया और टूट गया.
विशेष रूप से, नासा की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘रेडियो ब्लैकआउट’ के 41 सेकंड के भीतर, कल्पना चावला सहित सात लोगों को एहसास हुआ कि अंतरिक्ष यान उनके नियंत्रण से बाहर है और उन्होंने आपातकालीन उपाय किए, लेकिन वे अंतरिक्ष यान पर नियंत्रण पाने में असमर्थ रहे.
‘रेडियो ब्लैकआउट’ कम करने के नासा के प्रयास
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एक अन्य उदाहरण रूसी सोयूज़ 11 अंतरिक्ष यान है, जो 1971 में तीन अंतरिक्ष यात्रियों के साथ पृथ्वी पर लौट रहा था.
‘वायुमंडलीय पुनःप्रवेश’ के दौरान कुछ मिनटों के लिए इसका पृथ्वी से संपर्क टूट गया. इसके बाद पैराशूट खोले दिए गए और विमान सफलतापूर्वक उतरा.
हालाँकि, जब बचाव दल ने सोयूज़ अंतरिक्ष यान के दरवाजे खोले तो वे यह देखकर हैरान रह गए कि अंदर मौजूद सभी तीन अंतरिक्ष यात्री मर चुके थे.
बाद में यह बताया गया कि अंतरिक्ष यान के केबिन में वायु दबाव की कमी के कारण तीन रूसी अंतरिक्ष यात्रियों की मृत्यु हो गई.
‘रेडियो ब्लैकआउट’ के कारण वे नियंत्रण केंद्र से कोई निर्देश प्राप्त करने में असमर्थ थे.
नासा मजबूत और आधुनिक ताप-रोधी शीट के साथ प्लाज़्मा आवरण के प्रभाव को कम करने का प्रयास कर रहा है.
इस ‘रेडियो ब्लैकआउट’ की अवधि अंतरिक्ष यान की गति के आधार पर भिन्न हो सकती है. साथ ही, अधिक रफ़्तार से तापमान भी अधिक होता है.
इसका मतलब है, अधिक गति, अधिक गर्मी और अधिक ‘ब्लैकआउट टाइम’. इसलिए अंतरिक्ष यान के ताप-रोधी कवच को इसी के मुताबिक़ डिज़ाइन किया जाना चाहिए.
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उदाहरण के लिए, नासा का ओरियन अंतरिक्ष यान अपने चालक दल को ‘वायुमंडलीय पुनःप्रवेश’ की गर्मी से बचाने के लिए अपनी ऊष्मा-रोधी प्रणाली में एवकोट टाइल्स का इस्तेमाल करता है.
ये विशेष टाइलें 2760 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकती हैं.
डॉ. वेंकटेश्वरन कहते हैं, “यह ‘रेडियो ब्लैकआउट’ अंतरिक्ष यात्रा में सबसे चुनौतीपूर्ण परिघटनाओं में से एक है. नासा और स्पेसएक्स जैसी कंपनियां उन कुछ मिनटों को और भी कम करने के लिए कई प्रयास कर रही हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि अभी तक बहुत अधिक प्रगति नहीं हुई है.”
वह कहते हैं, “यही कारण है कि वायुमंडल में पुनः प्रवेश के प्रभावों, विशेषकर गर्मी से अंतरिक्ष यात्रियों को बचाने पर इतना ध्यान दिया जाता है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.