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अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स के नौ महीने बाद धरती पर वापस लौट आने के साथ ही इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) भी चर्चा में बना हुआ है.
इंटरनेशल स्पेस स्टेशन का मिशन 2031 में ख़त्म हो जाएगा. आईएसएस 1998 में अपने प्रक्षेपण के बाद से स्पेस इंडस्ट्री की तरक्की का प्रतीक रहा है.
पृथ्वी से लगभग 400-415 किलोमीटर की ऊंचाई पर मौजूद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 109 मीटर लंबा (एक फुटबॉल मैदान के आकार का) है और इसका वजन चार लाख किलोग्राम (400 टन और लगभग 80 अफ्रीकी हाथियों के बराबर) से अधिक है.
चालीस से अधिक स्पेस प्रोग्राम ने पृथ्वी से चीजें लाकर अंतरिक्ष में जमा किया है. ऐसे में अगर ये विशाल अंतरिक्ष स्टेशन नाकाम हो जाए तो क्या होगा?
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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बंद क्यों किया जा रहा है?
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इंटरेशनल स्पेस स्टेशन 17,500 मील प्रति घंटे की गति से यात्रा करता है. इसका मतलब ये कि यह हर दिन औसतन 16 बार पृथ्वी का चक्कर लगाता है. यानी हर 90 मिनट में ये पृथ्वी की परिक्रमा करता है.
इतनी तेज गति से चक्कर लगाते हुए एक विशाल ढांचे के अचानक और अनियंत्रित तौर पर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने की कल्पना वास्तव में भयावह है.
हालांकि नासा ने ऐसी ख़तरनाक स्थिति को रोकने के लिए 2031 में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बंद करने का फ़ैसला किया है.
वजह साफ है. दरअसल, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पुराना होता जा रहा है.
रूस, अमेरिका, कनाडा, जापान और कई यूरोपीय देशों ने संयुक्त रूप से 1998 में इस अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण किया था.
बाद में कई अलग-अलग चरणों में इसमें सुधार किया गया. इसे शुरू में 15 वर्षों तक संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया था.
हालांकि वैज्ञानिक शोध में इसकी निरंतर सफलता और अंतरिक्ष उद्योग में अंतरराष्ट्रीय सहयोग की वजह से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को ख़त्म करने की अवधि कई बार बढ़ाई गई.
आख़िरकार पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन प्रशासन ( 2021) में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का कार्यकाल 2030 तक बढ़ाने का फ़ैसला किया गया.
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हालांकि 2021 में ही रूस की ओर से स्पेस स्टेशन को लेकर एक चेतावनी जारी की गई थी.
इसमें कहा गया था कि उपकरण और हार्डवेयर के कारण इसमें ऐसी समस्याएं आ सकती हैं, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है.
पूर्व रूसी अंतरिक्ष यात्री व्लादिमीर सोलोव्योव ने कहा कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के रूसी हिस्से का 80 फ़ीसदी इंस्ट्रूमेशन सिस्टम पुराना पड़ चुका है.
इसके अलावा इसमें छोटी दरारें दिखाई दे रही हैं जो समय के साथ बड़ी हो सकती हैं.
इस बीच, एलन मस्क ने फ़रवरी में अपने एक्स पोस्ट में कहा था कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को 2030 की समय सीमा भी नहीं दी जानी चाहिए और इसे दो साल के भीतर ही बंद कर देना चाहिए. उन्होंने लिखा कि इस संबंध में फ़ैसला राष्ट्रपति ट्रंप को ही लेना चाहिए.
एलन मस्क ने अपने पोस्ट में कहा, “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को कक्षा से हटाने का काम शुरू करने का समय आ गया है. जिस मक़सद से इसे बनाया गया था वो पूरा हो चुका है. अब हम मंगल ग्रह पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.”
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कैसे ख़त्म हो जाएगा
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जैसा कि पहले ही बताया गया है कि फुटबॉल मैदान के आकार का इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी की परिक्रमा करता है, तो उसकी कक्षा समय-समय पर वायुमंडलीय खिंचाव से प्रभावित होती है.
यदि इसे ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो इस पर सूरज का असर होगा और एक या दो साल के भीतर यह अपनी कक्षा से पूरी तरह विचलित होकर धरती की ओर गिर जाएगा.
इससे पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा पैदा हो जाएगा. इसीलिए ‘री-बूस्ट’ की प्रक्रिया जारी है, जिसका मतलब अंतरिक्ष स्टेशन को चालू रखने की प्रक्रिया होता है.
नासा का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को बंद करने का काम जल्द ही शुरू हो जाएगा.
इसके तहत शुरुआती कदम के तौर पर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को वायुमंडलीय खिंचाव के तहत खुद ही नष्ट होने दिया जाएगा. इसका मतलब ये है कि री-बूस्ट की प्रक्रिया घटा दी जाएगी.
इसके अलावा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की गति धीमी करने की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी. इसके लिए अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशन में मौजूद प्रोग्रेस (रूस का अंतरिक्ष यान) जैसे अन्य प्रपल्शन मॉड्यूलों का इस्तेमाल किया जाएगा.
इसके गैर-ज़रूरी मॉड्यूलों को अलग किया जा सकता है और एक-एक करके कक्षा से हटाया जा सकता है.
इस अवधि (2026 से 2030) के दौरान इसकी ऊंचाई 415 किलोमीटर से धीरे-धीरे कम होती जाएगी.
इसके बाद अंतरिक्ष स्टेशन की ऊंचाई 280 किलोमीटर तक कम हो जाएगी. फिर एक विशेष अंतरिक्ष यान की मदद से इसकी दूरी को 120 किलोमीटर तक कम करने के लिए अंतिम बूस्ट दिया जाएगा.
अगर ये कोशिश योजना के मुताबिक़ कामयाब होती है तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के पृथ्वी से 120 किलोमीटर की दूरी तक पहुंचने की उम्मीद है.
यदि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन 120 किलोमीटर की दूरी तक पहुंचता है तो ये 29 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की भयावह गति से पृथ्वी के वायुमंडल से टकराएगा.
हालांकि, नासा का कहना है कि वायुमंडल में दोबारा घुसने के दौरान बहुत ज्यादा गर्मी से इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के अधिकतर हिस्से जल कर खुद ही नष्ट हो जाएंगे.
इसका बचा हुआ हिस्सा प्रशांत महासागर के ‘प्वाइंट नीमो’ कहे जाने वाले इलाके में गिरेगा. नासा का कहना है कि इससे कोई नुक़सान नहीं होगा क्योंकि ये आबादी वाली जगह नहीं है. अमूमन अवांछित अंतरिक्ष यान यहां गिरते हैं.
पिछले वर्ष जून में नासा ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को बंद करने और इसे नष्ट करने के लिए एलन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स का चुनाव किया था. इसके लिए इस कंपनी के साथ 84.30 करोड़ डॉलर का करार किया गया था.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन का विकल्प क्या है?
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नासा का कहना है कि इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के बंद होने से पहले प्राइवेट स्पेस स्टेशन चालू हो जाएंगे. इससे पृथ्वी की निचली कक्षा में कॉमर्शियल स्पेस सर्विस शुरू हो सकेंगी.
इसके लिए एक्सिओम स्पेस और ब्लू ओरिजिन जैसी कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं. नासा ने यह भी कहा है कि 2031 के बाद वह पृथ्वी की निचली कक्षा से परे चंद्रमा और मंगल जैसे स्थानों पर मानवों को भेजने पर ध्यान केंद्रित करेगा.
इसके साथ ही दूसरे देश भी अपने स्पेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहे हैं.
भारत की योजना 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन नाम से एक स्पेस स्टेशन स्थापित करने की है. इसरो के पूर्व चेयरमैन एस सोमनाथ ने पिछले साल कहा था कि इसका पहला हिस्सा 2028 में काम करना शुरू कर देगा.
पहला हिस्सा शुरू होन के सात साल बाद भारत अपने अंतरिक्ष केंद्र पूरी तरह से संचालित करने लायक हो जाएगा.
चीन ने 2022 में अपने अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल, तियांगोंग (स्वर्ग का महल) को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित कर दिया था. मौजूदा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को कई देशों ने मिलकर बनाया है. लेकिन चीन ने अकेले स्पेस स्टेशन बनाया है.
चीन का मानना है कि 2031 के बाद ये पक्के तौर पर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की जगह ले लेगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.