• Sat. Sep 13th, 2025

24×7 Live News

Apdin News

सुप्रीम कोर्ट ने वास्तविक फ्लैट खरीदारों और मुनाफाखोरों के बीच बताया फर्क, इस बात पर दिया जोर

Byadmin

Sep 13, 2025


सुप्रीम कोर्ट ने घर खरीदारों के हित में महत्वपूर्ण फैसला दिया है जिसमें फंसी हुई हाउसिंग प्रोजेक्टों को बचाने के लिए रिवाइवल फंड स्थापित करने का सुझाव दिया गया है। कोर्ट ने वास्तविक खरीदारों और मुनाफाखोर निवेशकों के बीच अंतर स्पष्ट किया है ताकि दिवालिया कार्यवाही का दुरुपयोग रोका जा सके।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पैसा देने के बाद फ्लैट पाने के लिए दर दर भटक रहे होम बायर्स यानी घर खरीदारों के हित सुरक्षित करने के बारे में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने वास्तविक घर खरीदारों की समस्याएं खत्म करने और उन्हें समय पर मकान मिलने के लिए पूरी व्यवस्था को ठीक करने पर जोर दिया है।

विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

कोर्ट ने केंद्र सरकार को फंसे हुए प्रोजेक्टों यानी संकटग्रस्त हाउसिंग प्रोजेक्टों को बचाने और फ्लैट बायर्स के हित सुरक्षित करने के लिए एक रिवाइवल फंड स्थापित करने का भी सुझाव दिया है। ताकि जिन परियोजनाओं में संभावना बची होगी, उनका लिक्वीडेशन रुकेगा और घर खरीदारों के हित सुरक्षित होंगे। साथ ही कोर्ट ने वास्तविक खरीदार और मुनाफाखोर निवेशक खरीदारों के बीच फर्क और पहचान भी बताई है।

अदालत ने क्या कहा?

कोर्ट ने जहां एक ओर वास्तविक घर खरीदारों के हित सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न निर्देश जारी किए हैं। वहीं कहा है कि मुनाफाखोर निवेशकों को दिवालिया कार्यवाही का दुरुपयोग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि ये कानून वास्तव में संकटग्रस्त बीमार कंपनियों के रिवाइवल और प्रोटेक्शन और अगर रियल एस्टेट को देखा जाए तो वास्तविक घर खरीदारों के संरक्षण का फ्रेमवर्क देता है।

कोर्ट ने बताया अंतर

ये फैसला न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने 12 सितंबर को दिया। कोर्ट ने वास्तविक घर खरीदारों के व्यापक हित और रियल एस्टेट सेक्टर की स्थिरता के लिए संबंधित अथॉरिटीज को कई निर्देश जारी किये हैं। कोर्ट ने वास्तविक खरीदारों और मुनाफाखोर यानी भारी मुनाफा कमाने के लिए निवेश करने वाले घर खरीदारों में अंतर बताया है और किन आधारों पर उनकी पहचान की जा सकती है वो भी बताए हैं।

कोर्ट ने कहा है कि वास्तविक खरीदार का जोर फ्लैट पर कब्जा लेने का होता है जबकि मुनाफा कमाने के उद्देश्य से संपत्ति में निवेश करने वाले खरीदार की रुचि एकमुश्त रकम भुगतान के बदले कम अवधि में ही बहुत अधिक ब्याज दर से पैसे वापस करने के डेवलपर के वादे को लागू कराने और पैसा वापस पाने में होती है।

कोर्ट ने बताई मुनाफाखोर निवेशक की पहचान

मुनाफाखोर निवेशक की पहचान के संकेत बताते हुए कोर्ट ने कहा है कि अगर एग्रीमेंट में कब्जा के विकल्प में बाईबैक या रिफंड का विकल्प या इसी तरह का कोई और अनुमान शामिल हो तो वह मुनाफाखोर निवेशक हो सकता है।

इसके अलावा अगर वह कब्जा लेने से मना करता है और ज्यादा दर से पैसे वापसी पर जोर देता है तो वह मुनाफाखोर हो सकता है। अगर कई यूनिट खरीदता है विशेषकर दो अंकों की संख्या में हालांकि इसकी गहराई से जांच की जरूरत होगी।

स्पेशल राइट, विशेष प्राथमिकता या आवंटी को दी गई असामान्य विशेषाधिकार हों तो ये मुनाफाखोर निवेशक होने का संकेत हो सकता है।

रेरा मॉडल एग्रीमेंट से इतर एग्रीमेंट होना भी एक महत्वपूर्ण संकेतक है। अवास्तविक ब्याज दर का वादा जिसमें थोड़ी अवधि में ही 20-25 प्रतिशत रिटर्न होना, मुनाफाखोर निवेशक होने का संकेतक है।

हालांकि कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वास्तविक खरीदार और मुनाफाखोर निवेशक खरीदार के अंतर का महत्व सिर्फ सीआईआरपी प्रक्रिया के लिए ही सुसंगत है। मुनाफाखोर निवेशकों पर भी अपने निवेश किये गए धन को वापस पाने का दावा करने पर कोई रोक नहीं है। वे अन्य फोरम पर कानून के मुताबिक इसके लिए कार्यवाही कर सकते हैं।

कोर्ट ने कहा वैसे तो निवेशक किसी भी उद्योग का अभिन्न हिस्सा होते हैं और उनके हितों का संरक्षण होना चाहिए लेकिन जो निवेशक सिर्फ मुनाफे के इरादे से आते हैं उन्हें इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के दुरुपयोग की इजाजत नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने कहा है कि ऐसे निवेशक उपभोक्ता कानून या रेरा या फिर किसी उचित मामले में दीवानी मामले में राहत लेने का वैकल्पिक उपचार अपना सकते हैं। दिवालियेपन की कार्यवाही में ऐसे मुनाफाखोर निवेशक खरीदारों को स्वीकार करने से विधायी योजना में अंतर्निहित स्पष्ट अंतर कमजोर हो जाएगा। इससे आवासीय रियल एस्टेट सेक्टर अस्थिर होगा और आवास का मौलिक अधिकार होने का सामाजिक उद्देश्य नष्ट हो जाएगा।

यह भी पढ़ें- ‘आवास का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा’, सुप्रीम कोर्ट ने मिडिल क्लास का दर्द बयां किया

By admin