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सेंधा नमक एक प्राकृतिक खनिज है, जिसे समुद्री नमक की तरह समुद्र से नहीं, बल्कि चट्टानों (खनिज खदानों) से निकाला जाता है.
यह भारत में खासतौर पर व्रत (उपवास) में इस्तेमाल होता है, क्योंकि इसे “शुद्ध” माना जाता है.
इसका रंग सफेद से लेकर हल्का गुलाबी या नीला भी हो सकता है.
इसमें सोडियम क्लोराइड के अलावा कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम जैसे खनिज भी पाए जाते हैं.
यह नमक हिमालय क्षेत्र (भारत, नेपाल, पाकिस्तान) से मिलता है, इसलिए इसे अक्सर हिमालयन पिंक सॉल्ट भी कहा जाता है.
भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में भी सेंधा नमक की खदानें हैं.
अमेरिकी मैगज़ीन ‘फ़ूड एंड वाइन’ के मुताबिक़ पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित खेवड़ा सॉल्ट माइन सेंधा नमक का बड़ा स्रोत है.
सेंधा नमक: कम सोडियम वाला नमक
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बाज़ार में सेंधा नमक को पिंक सॉल्ट, हिमालयन सॉल्ट, लाइट सॉल्ट या लो सोडियम सॉल्ट के नाम बेचा जा रहा है.
यह नमक उन लोगों के लिए एक समाधान जैसा देखा जाता है जिन्हें ज़्यादा नमक खाने की आदत होती है.
हिमालय से निकाले जाने वाले इस नमक में भी तुलनात्मक रूप से सोडियम कम और मैग्नेशियम व पोटैशियम जैसे खनिज लवण ज़्यादा होते हैं.
एम्स की पूर्व डाइटीशियन और वन डाइट टूडे की संस्थापक डॉ. अनु अग्रवाल बताती हैं, “सेंधा नमक सीमित मात्रा में इस्तेमाल करने पर स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो सकता है. इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे ज़रूरी खनिज होते हैं, जो पाचन में मदद कर सकते हैं, हाइड्रेशन में सुधार कर सकते हैं और इलेक्ट्रोलाइट्स को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं. “
विशेषज्ञों के मुताबिक नमक को लेकर एक सीधी सी बात यह है कि इसका संतुलित प्रयोग ही बेहतर है. बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रिजर्व्ड चीजें जैसे आचार, पापड़, मुरब्बा से बचा जाए और टेबल सॉल्ट का प्रयोग कतई भी न किया जाए.
वरिष्ठ सलाहकार आहार विशेषज्ञ और एसएपी डायट क्लीनिक की संस्थापक डॉ. अदिति शर्मा कहती हैं, “जिस तरह से हम कपड़े बदल बदलकर पहनते हैं और खाना बदल बदलकर खाते हैं. उसी तरह से नमक भी बदल बदलकर खाना चाहिए. कम सोडियम वाले नमक के नाम पर अंधाधुंध सेंधा नमक का इस्तेमाल स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है.”
सेंधा नमक का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
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किसी भी नमक में सबसे अहम तत्व होता है सोडियम होता है. ये हमारे शरीर के लिए बहुत ज़रूरी है.
सोडियम शरीर में पानी का सही स्तर बनाने से लेकर ऑक्सीजन और दूसरे पोषक तत्व सभी अंगों तक पहुंचाने के काम में मददगार होता है.
सोडियम हमारी तंत्रिकाओं में बिजली सी फुर्ती डालता है. लेकिन नमक को हमेशा ही कम खाने की सलाह दी जाती है.
इसे लेकर डॉ. अनु अग्रवाल कहती हैं कि संतुलन बहुत जरूरी है. इसे ज़्यादा खाने से शरीर के कई अंगों को नुकसान हो सकता है.
वह बताती हैं, “सेंधा नमक में आयोडीन बिल्कुल भी नहीं होता है. यही इस नमक की सबसे बड़ी कमी है. आयोडीन की कमी से घेंघा रोग हो सकता है. इतना ही नहीं हाई ब्लड प्रेशर, वॉटर रिटेंशन और थायराइड जैसी समस्याएं हो सकती हैं. यह मेटाबॉलिज्म को भी प्रभावित करता है .”
हार्ट: इस नमक में भी सोडियम सफ़ेद नमक की तुलना में कम ज़रूर होता है लेकिन उसकी प्रचुर मात्रा होती है. ऐसे में इसे ज्यादा खाने से ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है. इससे दिल का दौरा पड़ने से लेकर दिल की दूसरी और बीमारियां होने का अंदेशा बढ़ जाता है.
किडनी: सेंधा नमक ज़्यादा खाने से हमारे शरीर में ज़्यादा पानी बनेगा और इससे किडनी पर दबाव भी बढ़ जाएगा. उन्हें ये पानी साफ़ करने के लिए ज़्यादा मेहनत करनी पड़ती है. इसे शरीर में सूजन या एडिमा की समस्या हो सकती है.
दिमाग: आयोडीन की कमी से नर्व सिग्नल सही तरीके से काम नहीं कर पाते हैं. इसके कारण याददाश्त और सीखने की क्षमता कम हो जाती है.
हार्मोन : सेंधा नमक लंबे तक खाने पर टी 3 और टी 4 हार्मोन में कमी आ सकती है.
सेंधा नमक कितना और कैसे खाएं?
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विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वस्थ लोगों को रोज़ाना पांच ग्राम से कम नमक खाने की सलाह देता है. ये क़रीब-क़रीब एक चम्मच के बराबर हुआ.
ऑस्ट्रेलिया के जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ़ ग्लोबल हेल्थ के मुताबिक़ औसत भारतीय रोज़ाना क़रीब 11 ग्राम नमक इस्तेमाल करता है यानी डब्ल्यूएचओ की सलाह से क़रीब-क़रीब दोगुना ज़्यादा.
अध्ययनों से पता चला है कि शहरी इलाक़ों में रहने वाले भारतीय औसतन 9.2 ग्राम नमक रोज़ खाते हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह मात्रा करीब 5.6 ग्राम प्रतिदिन है.
डाइटीशियन डॉ.अनु अग्रवाल कहती हैं, “किसी भी चीज़ का शरीर में ज़्यादा या फिर कम होना नुकसानदायक है. नमक भी उसी में से एक है.”
वह बताती हैं, “इस समय पैकेज्ड फूड और ज़्यादा स्वाद की चाह में नमक का उपयोग बढ़ा है. ऐसे में खाने में आयोडीन की सही मात्रा बनाए रखने के लिए घर के खाने में सामान्य नमक प्रयोग करें और पापड़, अचार, चटनी या फिर दही में अलग से जो नमक हम डालते हैं उसमें सेंधा नमक का प्रयोग करें तो संतुलन बना रहेगा.”
वह बताती हैं कि सेंधा नमक को लगातार नहीं खाना चाहिए और इसे डॉक्टरी सलाह पर ही खाना चाहिए. इसे तब खाना चाहिए जब आपको कुछ विशेष बीमारियां हों क्योंकि इसे खाने से आपकी डाइट में पोटेशियम की मात्रा बढ़ सकती है.
डिटॉक्सिफायर का काम करता है सेंधा नमक
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सेंधा नमक को हैलाइट भी कहते हैं इसका प्रयोग केवल रसोई तक सीमित नहीं है, इसे डिटॉक्सिफायर के रूप में भी प्रयोग किया जाता है.
बेहतर पाचन और गले की खराश को कम करने से लेकर त्वचा सुधार और मांसपेशियों के दर्द से राहत पाने तक, सेंधा नमक एक बहुमुखी प्राकृतिक उपचार है.
मलेशिया की पोषण विशेषज्ञ सोंग यिन वा कहती हैं, “सेंधा नमक एक डिटॉक्सिफायर का काम करता है. इसे सीमित मात्रा में गर्म पानी में मिलाकर पिया जाए तो यह पाचन प्रक्रिया को बेहतर कर आंतों से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकाल देता है. अगर कोई इसे पानी में मिलाकर नहाए तो यह त्वचा के रोमछिद्र खोलकर विषाक्त पदार्थ निकाल देता है और रक्त संचार भी बेहतर करता है.”
वह बताती हैं कि सेंधा नमक में मौजूद मैग्नीशियम और सल्फर जैसे सूक्ष्म खनिज शरीर की प्राकृतिक डिटॉक्स प्रक्रियाओं में सहायक होते हैं और पीएच स्तर को संतुलित करने में मदद करते हैं. फिर चाहे इसे खाया जाए या इसे बाहरी रूप से इस्तेमाल किया जाए, सेंधा नमक डिटॉक्सिफिकेशन को बेहतर बना सकता है.
सेंधा नमक को शहद, नारियल तेल या दही के साथ मिलाकर एक प्राकृतिक फेस या बॉडी स्क्रब के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह त्वचा से मृत कोशिकाओं को हटा इसे बेहतर बनाता है.
सेंधा नमक की भाप एलर्जी, सर्दी-ज़ुकाम या पुरानी सांस संबंधी समस्या में सुधार कर सकती है. इससे फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित