सेविंग्स अकाउंट खाली कर लोग क्यों करा रहे हैं फ़िक्स्ड डिपॉज़िट?
रिज़र्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, कुल बैंक डिपॉजिट में फिक्स्ड डिपॉजिट की हिस्सेदारी बढ़कर दो साल के उच्चतम स्तर 62% पर पहुंच गई है. यह आंकड़ा इसी साल की सितंबर तिमाही का है. मार्च 2023 में यह 57% था. सितंबर तिमाही के दौरान सेविंग्स अकाउंट की हिस्सेदारी 33% से गिरकर 29% रह गई है.
तो इस बढ़ते चलन की सबसे बड़ी वजह है ज्यादा ब्याज का फायदा उठाना.
आजकल का कस्टमर स्मार्ट है अपने रिटर्न्स को लेकर जागरूक भी. डिजिटल या ऑनलाइन बैंकिंग सर्विसेज ने उसे और भी ज़्यादा एम्पावर्ड कर दिया है.
कस्टमर को एफडी खुलवाने या फिर इसे ब्रेक करने के लिए बैंकों के चक्कर लगाने की ज़रूरत नहीं रह गई है… बस ऑनलाइन बैंकिंग से कुछ ही स्टेप्स के ज़रिए सेविंग्स अकाउंट में पड़ी रकम को वो एफडी में बदल सकते हैं.
फ़ाइनेंशियल एक्सपर्ट इसकी एक और वजह देखते हैं.
उनका कहना है कि कस्टमर्स को लग रहा है कि RBI आने वाले समय में ब्याज दरें घटा सकता है, इसलिए, इंटरेस्ट रेट कम होने से पहले ही वे ऊंचे ब्याज दर पर अपनी एफडी लॉक कर लेना चाहते हैं.
सेविंग्स से एफडी में जाने की एक और वजह है इंटरेस्ट रेट में बड़ा अंतर. अधिकतर बैंक सेविंग्स अकाउंट पर 2 से 3 फ़ीसदी का ही ब्याज देते हैं, जबकि एफडी में ये रेट दोगुने से अधिक 6 से 8 परसेंट तक है.
बैंकों की मजबूरी
फ़ाइनेंशियल एक्सपर्ट का कहना है कि इस साल की शुरुआत से ही बैंकों को कैश की तंगी का सामना करना पड़ रहा है.
लोन की डिमांड डिपॉजिट्स से ज़्यादा है. शेयर बाज़ारों में तेज़ी के कारण भी कई लोग अपना पैसा बैंक में रखने के बजाय SIP के ज़रिये म्यूचुअल फंड्स में लगा रहे हैं. बैंकों पर डिपॉजिट बढ़ाने का दबाव है और उनके मुनाफ़े पर भी इसका असर दिख रहा है.
बैंकर्स का कहना है कि फरवरी 2025 से आरबीआई ने रेपो रेट में एक परसेंट (100 बेसिस पॉइंट) की कटौती की है, फिर भी बैंकों ने एफडी रेट्स उस हिसाब से कम नहीं किए.
बैंक एफडी रेट्स घटाने से हिचकिचा रहे हैं, क्योंकि लोन की बढ़ती मांग को पूरा करने और अपने पास पर्याप्त कैशफ्लो बनाए रखने के लिए उन्हें डिपॉजिट की सख्त जरूरत है.
प्रोड्यूसरः दिनेश उप्रेती
प्रेज़ेंटरः प्रेरणा
वीडियोः जमशैद अली
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)