इमेज स्रोत, Getty Images
इस फ़ेस्टिव सीज़न में भारतीय सर्राफ़ा बाज़ारों की चमक सिल्वर की शॉर्टेज के आगे फीकी पड़ रही है.
रिकॉर्ड हाई क़ीमतों के बावजूद भी लोग सिल्वर ख़रीदने को तैयार हैं लेकिन दुकानदारों के पास चांदी है ही नहीं.
इंडियन बुलियन जूलर्स असोसिएशन की वेबसाइट के मुताबिक़, 14 अक्तूबर को चांदी 1,78,100 रुपये प्रति किलो के भाव पर बिक रही थी.
दिलचस्प बात यह है कि ये रिकॉर्ड कीमतें ही इसकी शॉर्टेज का कारण हैं.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
ऑल इंडिया ज्वैलर्स एंड गोल्डस्मिथ फ़ेडरेशन (एआईजेजीएफ़) के नेशनल सेक्रेटरी और दिल्ली में मेहता ज्वैलर्स के मालिक बिमल मेहता ने बताया कि “मार्केट में अचानक से डिमांड आई है. चांदी के सिक्कों, बार और सिल्लियों की मांग आ रही है. लोग पैसे लेकर घूम रहे हैं लेकिन उन्हें चांदी मिल नहीं रही.”
उन्होंने बताया कि आज की तारीख़ में लोग चार-पांच हज़ार रुपये ज़्यादा देने को भी तैयार हैं, लेकिन चांदी की उपलब्धता ही नहीं है.
मार्केट में इस समय चांदी 30 हज़ार रुपये के प्रीमियम पर बिक रही है. इसके बाद भी कस्टमर लेने को तैयार बैठे हैं, लेकिन मार्केट में उपलब्धता नहीं है.
30 हज़ार रुपये प्रीमियम का मतलब है लोग चांदी ख़रीदने के लिए तीस हज़ार तक एक्स्ट्रा दाम देने को तैयार हैं.
क्या पहले भी हुई ऐसी कमी?
इमेज स्रोत, Getty Images
क्या पहले भी चांदी की इस तरह की डिमांड आती रही है?
इस सवाल पर बिमल मेहता ने कहा, “30 सालों के करियर में पहली बार चांदी की इतनी डिमांड देखी है. चांदी पिछले साल 75 हज़ार रुपये किलो औसत भाव पर मिल रही थी. एक साल के अंदर ये 2 लाख रुपये किलो पर पहुंच गई है. किसी ने उम्मीद ही नहीं की थी.”
वो कहते हैं, “पंजाब से लेकर कन्याकुमारी तक, हर किसी को चांदी चाहिए, हमने बाहर से (विदेश से) चांदी ख़रीदने की कोशिश की लेकिन वहां भी शॉर्टेज है. हर जगह चांदी की मांग बनी हुई है.”
दरअसल, फ़ेस्टिव सीज़न की ख़रीदारी हो या निवेश, दोनों ही लिहाज़ से निवेशक गोल्ड को ज़्यादा पसंद करते थे. लेकिन हालिया तेज़ी के बाद गोल्ड फ़िलहाल आम आदमी की पहुंच से बाहर हो चुका है.
आईबीजेए के मुताबिक़, 14 अक्तूबर को 99.9 फ़ीसदी शुद्धता वाला 10 ग्राम गोल्ड 1,26,152 रुपये में बिक रहा था.
भारतीय शेयर बाज़ारों में भी निवेशकों को इस साल कुछ ख़ास रिटर्न नहीं मिला है. इस माहौल में चांदी में दिखी अचानक तेज़ी निवेशकों के लिए उम्मीद की किरण बनकर उभरी है.
साल 2025 के शुरुआती 9 महीनों में, चांदी में 61 फ़ीसदी की तेज़ी आ चुकी है.
इन्वेस्टमेंट के लिए चांदी बन रही पसंद
इमेज स्रोत, Getty Images
बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक़, जनवरी 2025 में एक औंस चांदी का भाव 28.92 डॉलर था, जो सितंबर के आख़िर तक 46 डॉलर पर पहुंच गया.
इसलिए इन्वेस्टमेंट के लिहाज़ से चांदी की मांग बढ़ी है. एक्सपर्ट्स का दावा है कि सिल्वर की क़ीमतों में अभी तेज़ी बनी रहेगी.
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज़ लिमिटेड में कमोडिटी रिसर्च हेड वंदना भारती बताती हैं कि चांदी अब ज्वैलरी, बर्तन, सिक्कों जैसी चीज़ों के अलावा कई इंडस्ट्रियल चीज़ों में भी इस्तेमाल हो रही है.
एआई से लेकर सोलर, इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स में इसका ख़ूब इस्तेमाल हो रहा है. लिहाज़ा, चांदी की मांग पहले के मुक़ाबले बढ़ी है.
एआईजेजीएफ़ के नेशनल जनरल सेक्रेटरी और केडिया फिनकॉर्प के फाउंडर नितिन केडिया ने बताया कि कारोबारी ज़रूरतों के अलावा दुनिया भर के रिज़र्व बैंक अपने पास गोल्ड-सिल्वर का रिज़र्व बढ़ा रहे हैं.
टैरिफ़ वॉर और जियोपॉलिटिकल टेंशन की वजह से सेफ़ असेट के तौर पर भी चांदी की मांग बढ़ती जा रही है. इन सभी कारणों से चांदी की क़ीमतों में तेज़ी बनी हुई है.
दुकानदारों को इतनी डिमांड की उम्मीद नहीं थी
इमेज स्रोत, Getty Images
अब सवाल उठता है कि रिकॉर्ड स्तरों पर भी लोग चांदी ख़रीदने को तैयार बैठे हैं, बावजूद इसके उन्हें चांदी क्यों नहीं मिल रही है? इसका जवाब है, वैश्विक स्तर पर चल रही चांदी की क़ीमतें.
दरअसल, भारत चांदी की ज़रूरतें आयात से पूरी करता है. नितिन केडिया ने बताया कि आमतौर पर कारोबारी पुराने ट्रेंड को देखकर अंदाज़ा लगाते हैं कि इस साल कितनी डिमांड रहने वाली है, उसी हिसाब से स्टॉक रखा जाता है.
चांदी की क़ीमतें बढ़ रही थीं, इसलिए किसी दुकानदार को ज़्यादा डिमांड आने की उम्मीद नहीं थी. लिहाज़ा ज़्यादा स्टॉक नहीं रखा गया.
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2025 के शुरुआती 8 महीनों में चांदी का आयात 42 पर्सेंट घटकर 3,302 टन पर आ गया था.
केडिया आगे बताते हैं कि चांदी ने जैसे ही 1 लाख रुपये प्रति किलो का आंकड़ा पार किया, डिमांड में ऐसी तेज़ी आई, जिसकी दुकानदारों को भी उम्मीद नहीं थी.
आयात क्यों नहीं बढ़ा पा रहे ज्वैलर?
इमेज स्रोत, Getty Images
हमने पूछा कि आयात बढ़ाया भी तो जा सकता है. इस पर वंदना कहती हैं कि 2020-21 से ही चांदी का उत्पादन उस हिसाब से नहीं बढ़ा है जिस हिसाब से डिमांड बढ़ी है. यानी सप्लाई पहले से ही सीमित चल रही है.
अब बाज़ार में पहले से जो चांदी उपलब्ध है उसी की ख़रीद-बिक्री हो सकती है. और इसकी क़ीमतें लंदन बुलियन मार्केट असोसिएशन (एलबीएमए) तय करता है.
ज़बरदस्त मांग को देखते हुए एलबीएमए कारोबारियों से बहुत हाई प्रीमियम मांग रहा है. उदाहरण के तौर पर एक किलो चांदी अगर 8 लाख रुपये की है तो उनसे 12 लाख रुपये मांगे जा रहे हैं.
इतनी ऊंची लागत पर चांदी मंगा लेने के बाद चांदी पूरी की पूरी बिक ही जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. भारी नुक़सान के डर से वो आयात करने से बच रहे हैं.
अभी बनी रहेगी चांदी की डिमांड
इमेज स्रोत, Getty Images
वंदना बताती हैं कि मौजूदा समय में चांदी हाज़िर बाज़ार में रिकॉर्ड प्रीमियम पर बिक रही है. मगर वायदा बाज़ार, जिसमें भविष्य की क़ीमतों के अनुमान पर ट्रेडिंग होती है, उसमें चांदी की क़ीमतें बैकवर्डेशन में हैं.
यानी आने वाले समय में सप्लाई कुछ बढ़ने पर ये प्रीमियम कम होगा लेकिन, मांग में तेज़ी बनी रहेगी. क्योंकि, उत्पादन का क़रीब 55% चांदी, औद्योगिक क्षेत्र में इस्तेमाल होता है और ये काफ़ी तेज़ी से बढ़ रहा है.
चांदी के सस्ता होने की संभावना कम
इमेज स्रोत, Getty Images
चांदी की क़ीमतें पहले भी रिकॉर्ड स्तरों पर पहुंची हैं, और उस लेवल से बुरी तरह टूटकर नीचे भी आई हैं. इस बार भी ऐसा हो सकता है क्या? वंदना का कहना है कि इसकी संभावना कम है.
1980 में पहली बार चांदी 50 डॉलर औंस के पार गई थी. उसके बाद इसमें 90 पर्सेंट की गिरावट आई थी. फिर, 2011 में चांदी के दाम रिकॉर्ड स्तर पर गए थे. उसके बाद इसमें 70 पर्सेंट की गिरावट आई थी.
2025 में इसके दाम 80 पर्सेंट बढ़ चुके हैं. पिछले ट्रेंड को देखकर निवेशकों में डर भी है कि गिरावट आ सकती है लेकिन ऐसा नहीं होगा.
इस बार चांदी के दाम बढ़ने के पीछे ठोस कारण हैं. इसलिए क़ीमतों में भारी गिरावट की संभावना काफ़ी कम है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.