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दिवाली आई और साथ में सोन पापड़ी लाई. यह लाइन अक्सर सोशल मीडिया पर या आपसी बातचीत में व्यंग्य के रूप में इस्तेमाल की जाती है.
थोड़ा और आगे बढ़कर लोग हंसी-मज़ाक में यहां तक कहते हैं कि कई बार तो एक ही डिब्बा अलग-अलग घरों के चक्कर लगा लेता है.
मतलब लोग गिफ़्ट में मिले सोन पापड़ी के पैकेट को खोले बिना ही उसे अपने क़रीबी दोस्त, परिवार या रिश्तेदार को दे देते हैं.
सोन पापड़ी को देखकर कुछ लोगों के मुंह में पानी आता है तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका मुंह बन जाता है.
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लेकिन सच्चाई यह है कि आपको सोन पापड़ी पसंद हो या नापसंद, दिवाली के आसपास आप इसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं.
सोन पापड़ी जिसे- सोहन पापड़ी, पतीसा, शोणपापड़ी, सन पापड़ी, शोमपापड़ी के नामों से भी जाना जाता है, जो बेसन, घी और चीनी से बनती है.
लेकिन क्या आपको यह पता है कि मुंह में झट से घुलने वाली यह मिठाई आख़िर कहां से आई?
बीबीसी ने इस सवाल के जवाब तलाशने के लिए भारतीय खानों के विशेषज्ञ पुष्पेश पंत और खान पान की संस्कृति के इतिहास पर रिसर्च करने वाले चिन्मय दामले से बातचीत की.
‘सिर्फ़ दिवाली की मिठाई नहीं है’
क्या आपको लगता है कि सोन पापड़ी सिर्फ़ दिवाली के लिए है?
भारतीय व्यंजनों की गहरी जानकारी रखने वाले जेएनयू के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेश पंत कहते हैं, “यह एक बड़ी ग़लतफ़हमी है कि सोन पापड़ी सिर्फ़ दिवाली की मिठाई है. यह मिठाई साल के 12 महीने हर जगह मिलती है. मोहल्ले की दुकानों से लेकर एयरपोर्ट और ट्रेन स्टेशनों पर आपको सोन पापड़ी का पैकेट बड़ी आसानी से मिल जाएगा.”
प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं, “सोहन पापड़ी में दूध नहीं होता. यह बेसन और चीनी से बनती है, जिससे यह छह महीने तक ख़राब नहीं होती है. यही वजह है कि कई बड़े ब्रांड इसे बड़े पैमाने पर देश-विदेश भेजते हैं. यह मोतीचूर लड्डू या काजू कतली की तरह हर मौके़ की मिठाई है.”
खाने की परंपराओं पर शोध करने वाले चिन्मय दामले कहते हैं कि इसका सस्ता होना और बड़े पैमाने पर उत्पादन इसे दिवाली में सबसे ज़्यादा बांटी जाने वाली मिठाई बनाता है, यही वजह है कि लोग इसे ‘हर घर की मिठाई’ कहकर मज़ाक भी उड़ाते हैं.
पुष्पेश पंत का कहना है कि इस मिठाई की जड़ें पंजाब में हैं और वह इसे पतीसा से जोड़ते हैं.
प्रोफ़ेसर पंत का कहना है, “पतीसा बनाना कोई आसान काम नहीं था. पंजाब के पुराने परिवारों को याद होगा कि चीनी की चाशनी को बार-बार पीटकर और फैलाकर इसमें बारीक रेशे बनाए जाते थे. यह रेशेदार बनावट ही सोहन पापड़ी को ख़ास बनाती है.”
“क्या आपको बचपन में खाए जाने वाले ‘बुढ़िया के बाल’ या गजक याद हैं? यह ठीक वैसी ही तकनीक थी. पहले यह सब हाथ से बनता था, लेकिन अब मशीनों ने काम आसान कर दिया.”
पुष्पेश पंत कहते हैं, “पंजाब में बेसन लड्डू के साथ पतीसा बनता था, जो धीरे-धीरे सोहन पापड़ी में बदल गया. दोनों में एक बात कॉमन है- रेशेदार बनावट और चीनी की मिठास.”
प्रोफ़ेसर पंत के मुताबिक़, “हर चीज़ हिंदुस्तान में बाहर से नहीं आई है. कई चीज़ें अविभाजित भारत में पहले से ही थीं.”
क्या सोन पापड़ी का संबंध सिर्फ़ भारत से है?
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इस बारे में चिन्मय दामले कहते हैं, “सोहन पापड़ी का मूल फ़ारस की पश्मक मिठाई से है. पश्मक का मतलब है ‘ऊन जैसा’, जो इसकी रेशेदार बनावट को दर्शाता है. 19वीं सदी में फ़ारसी व्यापारी मुंबई की गलियों में पश्मक बेचते थे. एसएम एडवर्ड्स की किताब ‘बाइ-वेज़ ऑफ बॉम्बे’ में इसका ज़िक्र है. पश्मक में चीनी, ड्राई फ्रूट्स, पिस्ता और इलायची की ख़ुशबू होती थी.”
दामले ‘सोहन’ शब्द को संस्कृत के ‘शोभन’ (सुंदर) से जोड़ते हैं. वह बताते हैं, “मिर्ज़ा ग़ालिब के एक पत्र में ‘सोहन’ का ज़िक्र मिलता है, जिसमें वह बाजरे के हलवे की बात करते हैं.”
चिन्मय दामले सोन पापड़ी का एक संभावित कनेक्शन फ़ारसी सोहन हलवा से भी बताते हैं. उनका कहना है कि यह मिठाई फ़ारस, तुर्किस्तान से होते हुए भारत आई है.
सोहन हलवा और सोहन पापड़ी में क्या फ़र्क़ है?
दामले बताते हैं, “सोहन हलवा गेहूं से बनता है और गाढ़ा होता है, जबकि सोहन पापड़ी बेसन से बनती है और रेशेदार भी होती है. 18वीं सदी में अवध में सोहन पापड़ी बनने लगी थी और इसे चार तरह की ‘सोहन’ मिठाइयों में गिना जाता था. 20वीं सदी तक बिहार और बंगाल, ख़ासकर बक्सर में इसकी दुकानें मशहूर थीं.”
दामले एक और मिठाई का ज़िक्र करते हैं- सौंध हलवा, जो 18वीं सदी में नाइजीरिया से रामपुर आया, लेकिन यह सोन पापड़ी से अलग था.
दिवाली, सोन पापड़ी और हंसी-मज़ाक
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दिवाली के मौक़े पर सोन पापड़ी हंसी-मज़ाक और मीम कल्चर का हिस्सा बन जाती है.
दामले बताते हैं, “इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है. यह सस्ती है और बिना दूध के बनने के कारण लंबे समय तक ख़राब नहीं होती है. यही वजह है कि दिवाली में लोग इसे जमकर बांटते हैं. हर घर में सोहन पापड़ी का डिब्बा पहुंच जाता है, और लोग इसे ‘दिवाली का फ़िक्स्ड गिफ़्ट’ कहकर मज़ाक बनाते हैं.
सोन पापड़ी की कहानी इसे दुनिया के दो हिस्सों से जोड़ती है. पुष्पेश पंत इसे भारत में पंजाब के पतीसा से जोड़ते हैं, वहीं चिन्मय दामले इसका संबंध फ़ारस की पश्मक मिठाई से बताते हैं.
लेकिन दोनों इस बात पर सहमत हैं कि इसके बारीक रेशे और मुंह में घुलने वाला स्वाद इसे अनोखा बनाते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित