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जब लियोनिद ब्रेझनेव पहली बार 15 दिसंबर, 1961 को भारत आए तो वह सुप्रीम सोवियत प्रेसीडियम के अध्यक्ष थे. वह आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति के पद पर नहीं थे, लेकिन उनका ओहदा शासनाध्यक्ष का ही था. यह यात्रा अचानक सिर्फ़ एक सप्ताह के नोटिस पर आयोजित की गई थी.
भारत आने से पहले ब्रेझनेव ने इच्छा प्रकट की थी कि वह भारतीय संसद को संबोधित करना चाहेंगे और विशाखापट्टनम जाना चाहेंगे जहां के बंदरगाह पर भारतीय परियोजनाओं के लिए सोवियत उपकरण उतारे जा रहे थे. ब्रेझनेव की यह दोनों इच्छाएं पूरी नहीं हो सकीं.
उस समय संसद का सत्र नहीं चल रहा था और वह फ़रवरी, 1962 तक के लिए स्थगित की जा चुकी थी. ब्रेझनेव को विशाखापट्टनम भेजने के लिए भारत सरकार इसलिए राज़ी नहीं हुई क्योंकि उस समय वहां किसी शासनाध्यक्ष के ठहरने लायक आरामदायक जगह नहीं थी.
राष्ट्रपति भवन सचिवालय के दस्तावेज़ों के अनुसार, “आंध्रप्रदेश के मुख्य सचिव ने विदेश मंत्रालय से अनुरोध किया था कि ब्रेझनेव को विशाखापट्टनम में न ठहराया जाए.”
ब्रेझनेव इल्यूशन-18 विमान पर सवार होकर दिल्ली पहुंचे थे. दिल्ली से 50 मील पहले भारतीय वायुसेना के आठ युद्धक विमानों ने ब्रेझनेव के विमान को दिल्ली के पालम हवाईअड्डे तक एसकॉर्ट किया था. जैसे ही ब्रेझनेव पालम पर उतरे उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई.
सोवियत नेता का स्वागत करने की ज़िम्मेदारी उप राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को दी गई क्योंकि उन दिनों राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बीमार चल रहे थे.
भारत के कई शहरों का दौरा
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टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने 16 दिसंबर, 1961 के अंक में लिखा, “पालम हवाई अड्डे से राष्ट्रपति भवन के रास्ते के दोनों ओर आम लोग ब्रेझनेव के स्वागत में खड़े थे. उन्होंने उन पर फूल बरसाए और ब्रेझनेव ने उनके स्वागत का जवाब नमस्ते से दिया. जब ब्रेझनेव की कारों का काफ़िला विजय चौक पहुंचा तो राष्ट्रपति के घुड़सवार अंगरक्षकों ने उनका स्वागत किया और वह उन्हें एसकॉर्ट कर राष्ट्पति भवन ले गए.”
ब्रेझनेव को राष्ट्रपति भवन के द्वारका स्वीट में ठहराया गया. ब्रेझनेव के साथ उनका अपना रसोइया भी भारत आया था. उसने राष्ट्रपति भवन के रसोइयों के साथ मिल कर ब्रेझनेव के लिए भोजन तैयार किया. रात्रि भोज के बाद सॉन्ग एंड डांस डिवीज़न के कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया. अगले दिन ब्रेझनेव ने तीन मूर्ति भवन जाकर जवाहरलाल नेहरू के साथ निशस्त्रीकरण, जर्मनी, उपनिवेशवाद और विश्व शांति जैसे मुद्दों पर बातचीत की.
शाम को वह भारतीय उद्योग मेला देखने गए जहां उन्हें मेले के आयोजकों ने हाथी दांत का बना एक टेबल लैंप और उनकी पत्नी को बनारसी सिल्क का एक स्कार्फ़ उपहार में दिया गया. इस यात्रा में ब्रेझनेव आगरा, बंबई, अंकलेश्वर, बड़ौदा, कलकत्ता, मद्रास, जयपुर और महाबलिपुरम गए.
इस दौरान 19 दिसंबर को अंकलेश्वर में उन्होंने अपना 55वां जन्मदिन भी मनाया. जयपुर में हाथी की सवारी करने के बाद ब्रेझनेव ने हिंदी में लोगों को “शुक्रिया” कह कर आश्चर्यचकित कर दिया. लाल क़िले पर आयोजित किए गए नागरिक सम्मान में जवाहरलाल नेहरू ने ब्रेझनेव को गोआ ऑपरेशन में समर्थन देने के लिए धन्यवाद दिया. जाते जाते ब्रेझनेव ने आकाशवाणी पर भारत के लोगों को संबोधित किया.
1971 की लड़ाई के दो वर्ष बाद फिर भारत पहुंचे
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ब्रेझनेव दूसरी बार नवंबर, 1973 में भारत आए. यह यात्रा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण थी कि 1971 की लड़ाई को पूरे हुए अभी दो साल भी नहीं बीते थे. ब्रेझनेव यूं तो उस समय सोवियत संघ के सबसे बड़े नेता थे लेकिन उन्हें शासनाध्यक्ष का दर्जा नहीं प्राप्त था. इसलिए प्रोटोकॉल का पालन करते हुए ब्रेझनेव को हवाईड्डे पर राष्ट्पति नहीं बल्कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रिसीव किया.
अंग्रेजी अख़बार स्टेट्समैन ने अपने 17 नवंबर, 1973 के अंक में लिखा, “सड़क के किनारे खड़े लोगों ने कॉमरेड ब्रेझनेव का द्रूज़बा (कॉमरेड ब्रेझनेव दोस्त) कहकर उनका स्वागत किया. हवाई अड्डे पर पूरे स्वागत समारोह के दौरान ब्रेझनेव मुस्कारते रहे.”
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने दिलचस्प सुर्ख़ी दी, “स्माइल देट ब्रोक ऑल रिकॉर्ड्स.” ब्रेझनेव को छह दरवाज़ों वाली बुलेटप्रूफ़ मर्सिडीज़ कार में बैठा कर 32 कारों के काफ़िले में राष्ट्रपति भवन लाया गया. रास्ते में कई जगह बच्चों ने भांगड़ा नाच के साथ ब्रेझनेव का स्वागत किया.
दिल्ली पहुंचने से पहले राष्ट्रपति भवन को सोवियत दूतावास की तरफ़ से दो अजीब से अनुरोध प्राप्त हुए. पहला यह कि सोवियत मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन के हर बाथरूम में “लाइफ़ब्वॉय” साबुन रखवाया जाए.
भारत के राष्ट्रपति सचिवालय रिकॉर्ड्स के फ़ाइनल नंबर 30 के मुताबिक तब राष्ट्रपति भवन का स्टाफ़ यह अनुरोध सुनकर थोड़ा चकित हुआ क्योंकि विदेशी मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन के बाथरूम में दुनिया के बेहतरीन साबुनों की व्यवस्था की जाती है. लाइफ़ब्वॉय साबुन उस समय भारतीय बाज़ार में मिलने वाला सबसे सस्ता साबुन हुआ करता था. लेकिन राष्ट्रपति भवन के हाउज़होल्ड कम्ट्रोलर ने हर बाथरूम में लाइफ़ब्वॉय की एक टिक्की के साथ साथ साबुनों के टॉप ब्रांड भी रखवा दिए.
खाने से पहले भोजन की जांच
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सोवियत पक्ष की तरफ़ से दूसरी मांग यह आई कि जिस द्वारका स्वीट में ब्रेझनेव रह रहे थे उसकी खिड़कियों में मोटे पर्दे लगवाए जाएं. इस मांग से भी राष्ट्रपति भवन के स्टाफ़ को थोड़ा अचंभा हुआ क्योंकि राष्ट्रपति भवन कई सौ एकड़ के प्रांगण में फैला हुआ था. उसके सामने कोई सड़क नहीं थी जिससे ट्रैफ़िक का शोर ब्रेझनेव के शयनकक्ष तक पहुंच पाता. वैसे भी किसी भी विदेशी मेहमान की यात्रा के दौरान वहां की सुरक्षा व्यवस्था और चौकस कर दी जाती है.
बहरहाल सोवियत दूतावास की तरफ़ से आई इस मांग को भी पूरा किया गया. राष्ट्रपति भवन में रहने वाले लोगों को निर्देश दिए गए कि वह अपनी खिड़कियों से न झांकें और न ही कोई आवाज़ करें. एक और दिलचस्प मांग की गई कि ब्रेझनेव के कमरे में दो बेहतरीन बिजली की इस्त्रियों और आयरन बोर्ड की व्यवस्था भी रहे.
जहां तक खाने की बात है हर कमरे के फ़्रिज में अन्नानास, अमरूद और अंगूर के जूस रखवाए गए. यह मांग भी आई कि ब्रेझनेव को परोसे जाने वाले गोश्त, चिकन और मुर्गे को बनाने से पहले डाक्टर उसकी गुणवत्ता की जांच करें. ब्रेझनेव के प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य को ख़ासतौर से इसकी जांच करने की ज़िम्मेदारी दी गई.
राष्ट्रपति भवन के स्टाफ़ को बताया गया कि ब्रेझनेव उबले हुए आलुओं के साथ हिल्सा मछली खाना पसंद करते हैं. इसके अलावा वह स्नैक के तौर पर बिना मेयोनीज़ और मसालों वाला सलाद खाना पसंद करते हैं. इसके अलावा उन्हें पत्ता गोभी का सूप पीना भी पसंद है.
यह जानकारी भी दी गई कि ब्रेझनेव सिर्फ़ “सिनांडली” और “मुकुज़ानी” ड्राई वाइन पीते हैं और “बोरज़ोमी” और “नर्ज़ान” मिनरल वॉटर का इस्तेमाल करते हैं. विदेश मंत्रालय की मदद से राष्ट्रपति भवन में इन सब चीज़ों की व्यवस्था करवाई गई.
लाल क़िले पर ब्रेझनेव का नागरिक सम्मान
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उस ज़माने में पूरी दुनिया में लेटर बमों की घटनाएं देखने को मिली थीं. इसलिए राष्ट्रपति भवन के पोस्ट मास्टर को निर्देश दिए गए कि सोवियत मेहमानों के लिए आने वाली डाक को सीधे उन्हें न भेजकर सोवियत दूतावास भेज दिया जाए.
ब्रेझनेव की यात्रा के लिए एक अलग संचार प्रणाली स्थापित की गई. इसके लिए ख़ासतौर से सोवियत संघ से उपकरण मंगवाए गए. करीब 20 टन वज़न के उपकरणों को सात ट्रकों में लाद कर राष्ट्रपति भवन पहुंचाया गया.
ब्रेझनेव के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिए सोवियत संघ से डाक्टरों की एक पूरी टीम भी आई. अगले दिन ब्रेझनेव इंदिरा गांधी से मिलने उनके दफ़्तर गए. 35 मिनट की मुलाक़ात के बाद साउथ ब्लॉक के कॉन्फ़्रेंस रूम में दोनों प्रतिनिधिमंडलों की मुलाकात हुई.
शाम को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ब्रेझनेव के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में भोज दिया. स्टेट्समैन ने भोज के मेन्यू का विवरण देते हुए लिखा, “भोज में शामिल था क्रीम डोडियु, कबाब के साथ तंदूरी चिकन, नान, गोभी की भुजिया. भरवां टमाटर, हरी मटर, सलाद, पापड़, फल और कॉफ़ी. भोज के बाद गहरे पीले रंग की सिल्क की साड़ी पहने हुए इंदिरा गांधी ने हिंदी में भाषण दिया. उन्होंने कहा कि 1971 में हुई भारत सोवियत मित्रता संधि किसी देश के ख़िलाफ़ नहीं है.”
भोज के बाद अशोक हॉल में संगीत कला अकादमी के कलाकारों ने मेहमानों के सामने कत्थक और मणिपुरी नृत्य किया. अगले दिन इंदिरा गांधी अपनी पोती प्रियंका को ब्रेझनेव से मिलवाने राष्ट्रपति भवन लाईं. लाल क़िले में ब्रेझनेव का नागरिक सम्मान किया गया. वहां ब्रेझनेव ने 90 मिनट लंबा भाषण दिया जिसका एक दुभाषिए ने हिंदी में अनुवाद किया.
अगले दिन इंदिरा गांधी अपने पोते राहुल को ब्रेझनेव से मिलवाने लाईं. राहुल ने ब्रेझनेव को एक बोलने वाली मैना भेट की. शाम को ब्रेझनेव ने भारतीय संसद को संबोधित किया जिसे पिछली यात्रा में उन्हें संबोधित करने का मौका नहीं मिला था.
अफ़गानिस्तान पर मतभेद
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ब्रेझनेव की तीसरी भारत यात्रा सात साल बाद दिसंबर, 1980 में इंदिरा गांधी के दोबारा सत्ता में आने के बाद हुई. इस समय तक ब्रेझनेव ख़ासे बुज़ुर्ग हो चले थे और साफ़ दिखने लगा था कि उनका स्वास्थ्य ढ़लान की तरफ़ है.
अफ़गानिस्तान में सोवियत सेना भेजने के कारण ब्रेझनेव के जीवन का ख़तरा बढ़ गया था. इससे निपटने के लिए मास्को से एक विशेष कार ब्रेझनेव के इस्तेमाल के लिए लाई गई. ब्रेझनेव की सुरक्षा में कोई चूक न हो जाए इसलिए कार का ड्राइवर भी सोवियत संघ से लाया गया. सिर्फ़ एक रियायत यह बरती गई कि सोवियत कारों की नंबर प्लेट पर भारत का राष्ट्रीय चिन्ह लगाया गया.
राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी द्वारा दिए गए भोज में प्रधानमंत्री के अलावा मनमोहन सिंह भी थे जो उस समय योजना आयोग के सदस्य थे और बाद में भारत के प्रधानमंत्री बने. दूसरे मेहमानों में शामिल थे अटल बिहारी वाजपेई, भूपेश गुप्त और मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट नेता ईएमएस नंबूदरीपाद.
भोज में ब्रेझनेव को पॉमफ़्रे मछली, हुसैनी कबाब, पनीर कटलेट, पनीर कोरमा और स्विस शालेत परोसे गए. भोज के बाद दिए भाषण में संजीव रेड्डी ने अफ़गानिस्तान का कोई ज़िक्र नहीं किया. अगले दिन अफ़गानिस्तान के मुद्दे पर इंदिरा गांधी और ब्रेझनेव की बातचीत हुई लेकिन इस मुद्दे पर दोनों नेताओं के विचार अलग-अलग थे.
जी के रेड्डी ने “द हिंदू” के 10 दिसंबर, 1980 के अंक में लिखा, “इंदिरा गांधी ने ब्रेझनेव को स्पष्ट कर दिया कि अफ़गानिस्तान में सोवियत कार्रवाई का भारत पर असर पड़ना लाज़िमी है. इंदिरा ने अफ़गानिस्तान का नाम लिए बग़ैर कहा कि भारत किसी भी देश द्वारा दूसरे देश में हस्तक्षेप किए जाने के ख़िलाफ़ है.”
न्यूयॉर्क टाइम्स ने बहुत दिलचस्प टिप्पणी की कि “ब्रेझनेव जिस “बियर हग” की उम्मीद लेकर भारत आए थे, वह उन्हें नहीं मिल पाया.” इस बार भी ब्रेझनेव का नागरिक सम्मान किया गया लेकिन सुरक्षा कारणों से स्थान को लाल क़िले से बदल कर विज्ञान भवन कर दिया गया.
ब्रेझनेव की यात्रा का समापन उनके द्वारा भारतीय राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के सम्मान में सोवियत दूतावास में दिए गए भोज के साथ हुआ. पालम हवाई अड्डे जाते समय सड़कों पर खड़े लोगों ने “लाल सलाम”, “हिंदी रूसी भाई-भाई” का नारा लगा कर ब्रेझनेव को विदाई दी.
ब्रेझनेव अगले दो वर्ष तो सोवियत संघ का नेतृत्व करते रहे, लेकिन 10 नवंबर, 1982 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. उस समय उनकी उम्र थी 75 वर्ष. उनकी पत्नी विक्टोरिया ब्रेझनेवा सन 1995 तक जीवित रहीं.
(इस आलेख में जिन आधिकारिक जानकारियों का जिक्र है, वह भारत के राष्ट्रपति सचिवालय के रिकॉर्ड्स से जुटाई गई हैं.)
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.