मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक स्कूलों में फीस के निर्धारण और इसमें वृद्धि के एक स्टैंडर्ड मानक को तैयार करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया है। इसे लेकर नीति की सिफारिशों सहित उत्तर प्रदेश सहित देश भर में स्कूली फीस को नियंत्रित करने से जुड़े कानूनों का भी अध्ययन किया गया है। केंद्र सरकार अब एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था खड़ी करना चाहती है।
अरविंद पांडेय, जागरण, नई दिल्ली। शिक्षा वैसे तो राज्य का विषय है, लेकिन नए शैक्षणिक सत्र के शुरू होने के साथ दिल्ली सहित देश के अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि को लेकर जिस तरह से हर साल निजी स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों के बीच टकराव की स्थिति निर्मित हो रही है, उस पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार अब एक पारदर्शी और जवाबदेह व्यवस्था खड़ी करना चाहती है।
इसे लेकर वह एक मॉडल ड्राफ्ट तैयार करने की कोशिश में जुटी है, जिसे सभी राज्य अपने यहां स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि पर रोकथाम के लिए अमल में ला सकेंगे। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पास ही मनमानी फीस पर रोकथाम के लिए कानून है। इनमें सबसे सख्त कानून उत्तर प्रदेश में है, जिसे 2018 में लाया गया था।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रयास
शिक्षा मंत्रालय ने यह पहल नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ( एनईपी) की सिफारिशों का लागू करने के क्रम में शुरू की है। जिसमें साफ कहा गया है कि स्कूलों का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। नीति ने अभिभावकों के आर्थिक शोषण व शिक्षा के बढ़ते व्यवसायीकरण पर अंकुश न लगा पाने के लिए मौजूदा नियामक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए है।
इस बीच मनमानी फीस वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए जो ड्राफ्ट का स्वरूप सामने आया है, उसमें सभी स्कूल अब एक ही मानक के आधार पर न फीस वसूल सकेंगे न ही फीस में वृद्धि कर सकेंगे।
शैक्षणिक प्रदर्शन से तय होगी रैंकिंग
बल्कि स्कूलों को स्टैंडर्ड के हिसाब से इस निर्धारित करने का अधिकार मिलेगा। इसके लिए सबसे पहले सभी राज्यों को अपने स्कूलों की एक रैंकिंग तैयार करने होगी। यह रैंकिंग उनके इंफ्रास्ट्राक्चर, शिक्षकों स्तर व स्कूल के शैक्षणिक प्रदर्शन से तय की जाएगी। इसके लिए प्रत्येक राज्य व केंद्र शासित प्रदेश में एक राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण ( ट्रिपलएसए) नामक एक स्वतंत्र निकाय स्थापित करना होगा।
इन मुद्दों पर हो रहा काम
- फीस के अतिरिक्त और किसी भी तरह फीस स्कूल नहीं ले सकेंगे।
- स्कूलों की अपनी फीस, ड्रेस, किताबों आदि से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। और इसकी जानकारी हर साल सत्र शुरू होने से पहले जिला शुल्क नियामक समिति को देनी भी होगी।
- स्कूल एक मुश्क साल भर की फीस नहीं ले सकेंगे। उन्हें अभिभावकों को छह, तीन और एक माह का विकल्प देना होगा।
- फीस से जुड़े किसी भी विषय को अभिभावक समिति के समझ चुनौती दे सकेगा। जिस पर समिति को पंद्रह दिन के भीतर फैसला लेना होगा। समिति सिविल कोर्ट की तरह सुनवाई करेगी।
- समिति का निर्णय सभी को मानना होगा। साथ ही इसे महीने भर के अंदर मंडल फीस नियामक समिति के सामने चुनौती भी दी जा सकती है। यदि उसके फैसले से भी सहमत नहीं तो राज्य फीस नियामक समिति के सामने इसे चुनौती दी जा सकती है।
- इन नियमों के तहत फैसले को न मानने पर स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है। इनमें जुर्माना और सजा दोनों है। जुर्माना भी पहले बार एक लाख होगा। यदि दूसरी बार भी गलती की तो पांच लाख होगा।
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