देश में तेजी से हो रहे शहरीकारण की बड़ी वजह शहरी आबादी का असमान तरीके से बढ़ना है। इस वजह से छोटे शहर और पिछड़ते जा रहे हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर की समस्या बढ़ गई है। सरकार स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट जैसे कदम उठा रही है फिर भी शहरों में समस्या जस की तस बनी हुई है। देश के शहरों की समस्याओं को कम करने के लिए क्या जरूरी है एक्सपर्ट से जानें…
जागरण टीम, नई दिल्ली। भारत में शहरीकरण की खास बात यह है कि यहां शहरी आबादी असमान तरीके से तेजी से बढ़ रही है। बड़े शहरों और मेट्रो शहरों में आबादी ज्यादा बढ़ रही है। 2001-2011 के दशक आंकड़ों से पता चलता है कि देश के मध्य, पूर्वी और उत्तर पूर्व के हिस्से में शहरीकरण का स्तर बहुत कम है। इन इलाकों में आर्थिक विकास की रफ्तार भी कमजोर रही है।
भारत के शहर कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं के लिए जाने जाते हैं। जीवन की गुणवत्ता के स्तर की बात करें तो यहां रहने वालों के बीच बहुत अधिक असमानता है। बड़े शहर ही नहीं छोटे और मझोले कस्बों में भी बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं जैसे सड़कों, जल आपूर्ति, सीवेज और शिक्षा और चिकित्सा के इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव है।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट है फिर क्यों शहरों में समस्या त्यों की त्यों?
केंद्र सरकार स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में सूचना एवं संचार तकनीक और इसकी सेवाओं का इस्तेमाल कर रही है। उसको लगता है कि इससे शहरों की सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। हालांकि, यह सिर्फ टूल और तकनीक हैं।

कहीं पैसा तो कहीं प्लानिंग बन रही रोड़ा
सबसे अहम मुद्दा है शहरी गवर्नेंस से जुड़े फंड का अंतरण और इससे जुड़े कार्यकलाप का। इन विषयों को 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 में शामिल किया गया था। संशोधन के 32 वर्ष बाद भी ज्यादातर राज्यों ने इसे सही तरीके से लागू नहीं किया है।स्थानीय निकाय और दूसरी ज्यादातर एजेंसियों का प्रशासन राज्य सरकारों के अधीन हैं। कुछ राज्यों में शहरी नीतियां और दिशा निर्देश तय करने के लिए शहरी नियामकीय तंत्र नहीं है।
कुछ राज्यों में प्लानिंग के कानून बहुत पुराने हैं जो आज के समय के लिहाज से प्रासंगिक नहीं रह गए हैं। बिल्डिंग कोड्स को अमीर और ताकतवर लोगों के फायदे के लिए कमजोर किया जाता है। कुछ राज्यों में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग का विभाग ही नहीं है। इसके अलावा सभी राज्यों के लिए व्यापक टाउन एंड रीजनल प्लानिंग एक्ट की तत्काल जरूरत है।ग्रामीण और शहरी बस्तियों को प्लानिंग के स्तर पर समान रूप से देखना होगा। ग्रामीण और शहरी बस्तियों के एकीकरण और समन्वय से उनमें निहित संभावनाओं का दोहन किया जा सकता है। इससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सुविधाओं के स्तर पर अंतर कम होगा।
शहर या 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहर के लिए योजना बनाते समय मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र की योजना भी बनानी होगी।शहर या रीजन के विकास का प्लान तैयार करने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण और समय सीमा का पालन होना चाहिए। इसमें स्थानीय समुदायों की सहभागिता भी होनी चाहिए।डेवलपमेंट कंट्रोल और बिल्डिंग कोड्स के नियमों को सही तरीके से लागू न करने से काफी अधिक नुकसान हुआ है।यह भी पढ़ें- झुग्गी झोपड़ी, ट्रैफिक जाम और प्रदूषण से जूझ रहे शहर; फिर नगर निगम का बजट कहां खर्च हो रहा है?
(Source: हरियाणा पूर्व चीफ टाउन प्लानर केके यादव से बातचीत)
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