शरणार्थियों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहाँ दुनिया भर के शरणार्थियों को रखा जाए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होते हैं।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। शरणार्थियों कें मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। सोमवार को एक श्रीलंकाई नागरिक की भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है, जहां दुनिया भर से शरणार्थियों को रखा जा सके।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ एक श्रीलंकाई नागरिक की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता को 2015 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था।
श्रीलंका वापस क्यों नहीं जाना चाहता याचिकाकर्ता?
2018 में एक ट्रायल कोर्ट ने उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया और उसे 10 साल जेल की सज़ा सुनाई। 2022 में, मद्रास उच्च न्यायालय ने उसकी सज़ा को घटाकर सात साल कर दिया। हालांकि, सजा पूरा होते ही उसने श्रीलंका वापस जाने से मना कर दिया।
उसने दलील दी कि श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है इसलिए उसे भारत में शरणार्थी के तौर पर रहने की इजाजत दी जाए। याचिकाकर्ता ने ये भी बताया कि उसकी पत्नी और बच्चे भी भारत में ही हैं।
क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है: कोर्ट
याचिकाकर्ता के इस तर्क पर न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।”
अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 सिर्फ भारतीयों पर लागू होता है: अदालत
अदालत ने पूछा, “यहां बसने का आपका क्या अधिकार है?” जब याचिकाकर्ता के वकील ने जोर देकर कहा कि वह एक शरणार्थी है और श्रीलंका में उसकी जान को खतरा है, तो अदालत ने उसे दूसरे देश में चले जाने के लिए कहा।यह भी पढ़ें: ये घड़ियाली आंसू? MP के मंत्री विजय शाह की माफी पर SC की फटकार; अब SIT के हवाले केस
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