सिलीगुड़ी से संदकफू की यात्रा एक अद्भुत अनुभव है। घुमावदार रास्तों चाय बागानों और बर्फ से ढकी चोटियों के साथ यह यात्रा रोमांच से भरपूर है। मानेभंजन से पुरानी लैंड रोवर कारों में यात्रा करना और भी खास है। संदकफू से हिमालय की चार सबसे ऊंची चोटियों – माउंट एवरेस्ट कंचनजंगा ल्होत्से और मकालू – का एक साथ दिखाई देना एक अविस्मरणीय अनुभव है।
मिलन कुमार शुक्ला, सिलीगुड़ी। बंगाल की धरती से आसमान छूना हो, तो संदकफू अवश्य जाएं। यकीन मानिए जैसे-जैसे गाड़ी घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर चढ़ती जाएगी आप यहां की नैसर्गिक सुंदरता में खो से जाएंगे।
सिलीगुड़ी से निकलते ही हरियाली में लिपटी पहाड़ियां आपको अपनी ओर खींचती हैं। सड़क के दोनों ओर चाय के बागान, दूर बादलों से घिरी बर्फ से आच्छादित चोटियां और ठंडी हवा, मानो आपका स्वागत करने के लिए खड़ी हों। यह वही जगह है जहां से संदकफू की असली यात्रा आरंभ होती है।
सड़कों पर चलती हैं अंग्रेजों के जमाने की लैंड रोवर कारें
दार्जिलिंग से करीब 30 किलोमीटर आगे है मानेभंजन। यह छोटा-सा कस्बा संदकफू का मुख्य प्रवेशद्वार है। यहां अब भी अंग्रेजों के जमाने की पुरानी लैंड रोवर कारें चलती हैं। आज भी ये गाड़ियां ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्तों पर सबसे भरोसेमंद मानी जाती हैं। बंगाल का यह सबसे ऊंचा स्थान संदकफू समुद्र तल से करीब 11,930 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
(संदकफू में मौसम साफ हो, तो हिमालय की चार सर्वाधिक ऊंची चोटियां एक साथ दिखती हैं।)
रोमांच से भरा संदकफू जाने का रास्ता
दार्जिलिंग से संदकफू तक जाने का रास्ता रोमांच से भरा हुआ है। कभी रास्ता इतना संकरा हो जाता है कि लगता है कि कहीं पहिया फिसल न जाए, तो कभी ऐसा मोड़ कि लगता गाड़ी बादलों में समा जाएगी। यहां बादल और वर्षा कब आ जाए यह निश्चित नहीं होता, मौसम कभी भी करवट ले लेता है। मिट्टी की खुशबू और बदलते मौसम का जादू, सब कुछ आपके सफर को अविस्मरणीय बना देते हैं। संदकफू पहुंचने पर यहां के टाप पर खड़े होकर आपको अहसास होगा कि यह जगह धरती और आसमान के बीच कहीं है।
हिमालय की चार सबसे ऊंची चोटियां एक जगह से देखें
संदकफू की चोटी पर एक छोटा-सा गांव है। कुछ होमस्टे और हास्टल, जहां गर्मागर्म सूप और पहाड़ी आतिथ्य आपका स्वागत करते हैं। सुबह जब सूरज की पहली किरणें बर्फ से ढकी चोटियों पर पड़ती हैं, तो पूरा आसमान सुनहरे रंग में रंग जाता है। रोडोडेंड्रोन के लाल और गुलाबी फूल इस दृश्य में और भी रंग भर देते हैं। साफ आसमान में आप हिमालय की चार सर्वाधिक चोटियों को यहां से देख सकते हैं। यहां से एक साथ माउंट एवरेस्ट, कंचनजंगा, ल्होत्से और मकालू की चोटियां दिखती हैं। यह पल ऐसा होता है कि हर यात्री कैमरे से ज्यादा अपनी आंखों और दिल में कैद करना चाहता है।
शेरपाओं का आतिथ्य बनाएगा आपका अनुभव खास
ठंडी हवाएं, सुबह की सुनहरी धूप और रोडोडेंड्रोन के रंग-बिरंगे फूल यहां आपकी यात्रा के हर पल को खास बना देते हैं। रास्ते में कई छोटे मगर खूबसूरत गांव भी मिलते हैं। मानेभंजन अपने शांत वातावरण और पुरानी लैंड रोवर्स के लिए जाना जाता है। चित्रे में बने मठ से कंचनजंगा की झलक किसी का भी दिल छू लेती है। तोंग्लू, समुद्र तल से करीब 10,000 फीट की ऊंचाई पर एक बेहद सुंदर ठिकाना है।
(संदकफू जाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लैंड रोवर कार। यह कार 1954 की है।)
तोंग्लू के बाद आता है तुमलिं, जो नेपाल की सीमा पर बसा एक गांव है। यहां से सिंगालीला नेशनल पार्क की शुरुआत होती है। यहां का हरियाली भरा नजारा और स्थानीय शेरपाओं का आतिथ्य आपकी यात्रा के अनुभव को बेहद खास बना देता है। संदकफू से पहले का अंतिम पड़ाव है बाइकेभंजन, जहां की खड़ी चढ़ाई और पथरीले रास्ते चुनौतीपूर्ण जरूर हैं, लेकिन दृश्य इतने मनमोहक कि आप अपनी थकान भूल जाएंगे।
संदकफू को जो बनाते हैं खास
- बंगाल की सबसे ऊंची चोटी, जहां बर्फ भी गिरती है
- मौसम साफ रहा, तो दुनिया की चार सबसे ऊंची चोटियों का नजारा
- रोमांचक ट्रेकिंग और पुराने जमाने वाली लैंड रोवर की सवारी
- खास मौसम में रोडोडेंड्रोन (बुरांश के फूल) से सजी पहाड़ियां और बेहतरीन सूर्योदय
कब और कैसे जाएं
संदकफू जाने का सबसे अच्छा समय मार्च-जून और अक्टूबर-नवंबर है। इन दिनों आसमान साफ होता है और दूर तक दृश्यता बनी रहती है। बरसात और सर्दियों में कोहरा और फिसलन यात्रा को कठिन बना देते हैं। यहां पहुंचने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा बागडोगरा (सिलीगुड़ी) है। रेल से आने वाले यात्री न्यू जलपाईगुड़ी (एनजेपी) या सिलीगुड़ी स्टेशन उतर सकते हैं। दार्जिलिंग से सड़क मार्ग से मानेभंजन और फिर लैंड रोवर या ट्रेकिंग से संदकफू की यात्रा पूरी की जा सकती है।