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‘हाई कोर्ट के जज को क्रिमिनल केस न देने और वरिष्ठ के साथ खंडपीठ में बैठाने के निर्देश’, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक

Byadmin

Aug 6, 2025


सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के बारे में अभूतपूर्व आदेश दिया है। वहीं शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से ये भी कहा है कि उन न्यायाधीश को किसी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाए और यदि कभी उन्हें अकेले पीठ में भी बैठाया जाए तो भी आपराधिक मामले न सौंपे जाएं।

 जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश के बारे में अभूतपूर्व आदेश दिया है। कोर्ट ने दीवानी विवाद में आपराधिक कार्यवाही और समन को बरकरार रखने के हाई कोर्ट न्यायाधीश के आदेश को पूर्णत: गलत करार देते हुए रद करने के साथ ही गहरी नाराजगी भी जताई है।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि हाई कोर्ट के उक्त न्यायाधीश से आपराधिक मामले वापस ले लिए जाएं और उनके सेवानिवृत्त होने तक उन्हें आपराधिक मामले न सौंपे जाएं।

शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से ये भी कहा है कि उन न्यायाधीश को किसी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाए और यदि कभी उन्हें अकेले पीठ में भी बैठाया जाए तो भी आपराधिक मामले न सौंपे जाएं।

ये ऐतिहासिक अभूतपूर्व आदेश

न्यायमूर्ति जेबी पार्डीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने मैसर्स शिखर केमिकल्स बनाम उत्तर प्रदेश व अन्य के मामले में दिया है। इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने शिखर केमिकल्स के वाणिज्यिक विवाद में आपराधिक कार्यवाही को रद करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, यह आदेश हाई कोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत कुमार की पीठ ने पारित किया था।

दीवानी विवाद में आपराधिक कार्यवाही को सही ठहराने का मामला

सुप्रीम कोर्ट ने दीवानी विवाद में आपराधिक कार्यवाही जारी रहने को सही ठहराने वाले हाई कोर्ट के आदेश पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसा खराब और गलत आदेश उन्होंने अपने न्यायाधीश के करियर में नहीं देखा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह हाई कोर्ट के उस आदेश के पैराग्राफ 12 में दर्ज निष्कर्षों से स्तब्ध है, जिसमें हाई कोर्ट के न्यायाधीश ने यहां तक कहा है कि शिकायतकर्ता से दीवानी उपाय अपनाने के लिए कहना बहुत अनुचित होगा क्योंकि दीवानी मुकदमों में लंबा समय लगता है। इसलिए शिकायतकर्ता को वसूली के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है।

कहा, ऐसा खराब और गलत आदेश उन्होंने अपने न्यायाधीश के करियर में नहीं देखा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट से अपेक्षा की जाती है कि उसे कानून की तय स्थित का ज्ञान होगा कि दीवानी मामलों में आपराधिक कार्यवाही की इजाजत नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा करना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। लेकिन हाई कोर्ट के आदेश से निष्कर्ष निकलता है कि दीवानी मामले में शिकायतकर्ता द्वारा आपराधिक कार्यवाही शुरू करना न्यायोचित है क्योंकि दीवानी सूट के जरिये बकाया धन की वसूली में काफी समय लग सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में उसके पास उस आदेश को रद करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश रद करते हुए मामला वापस नए सिरे से तय करने के लिए हाई कोर्ट को भेज दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध किया है कि वह इस मामले को अब किसी और न्यायाधीश को सुनवाई के लिए सौंपे।

 शिखर केमिकल्स ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी

इस मामले में हाई कोर्ट ने मेसर्स शिखर केमिकल्स की वाणिज्यिक लेने-देन से उत्पन्न विवाद में आपराधिक कार्यवाही रद करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी। जिसके बाद शिखर केमिकल्स ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।

इस मामले में याचिकाकर्ता फर्म को 5234385 रुपये मूल्य का धागा आपूर्ति किया गया था। जिसका कथित तौर पर 4775000 रुपये का भुगतान किया गया और बाकी का भुगतान नहीं हुआ। इसके बाद मजिस्ट्रेट के समक्ष आपराधिक विश्वास भंग के लिए शिकायत दर्ज कराई गई।

 हाई कोर्ट ने उक्त आदेश में खारिज कर दिया

मजिस्ट्रेट ने कंपनी की प्रोपराइटर को आइपीसी की धारा 406 विश्वास भंग के तहत समन किया। इसके बाद कंपनी ने वाणिज्यिक विवाद के मामले में आपराधिक कार्यवाही को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की और केस रद करने की मांग की थी। जिसे हाई कोर्ट ने उक्त आदेश में खारिज कर दिया था।

हाई कोर्ट ने कहा था कि शिकायतकर्ता को दीवानी मुकदमा चलाने के लिए बाध्य करना बहुत अनुचित होगा क्योंकि दीवानी मुकदमे को समाप्त होने में वर्षों लग जाते हैं। इसलिए आपराधिक मुकदमा चलाना उचित है।

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