अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग बंद होने जा रही है. कंपनी के संस्थापक नेट एंडरसन ने इसकी जानकारी दी है.
हिंडनबर्ग रिसर्च की वेबसाइट पर पर्सनल नोट में नेट एंडरसन ने कहा, “जैसा कि मैंने पिछले साल के अंत से ही अपने परिवार, दोस्तों और अपनी टीम को बताया था, मैंने हिंडनबर्ग रिसर्च को भंग करने का फ़ैसला किया है.”
एंडरसन ने साल 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च का गठन किया था. एंडरसन ने अपने नोट में कहा है कि ये फ़ैसला काफ़ी सोच-विचार कर किया गया. उन्होंने कहा कि इस फ़ैसले की कोई एक वजह नहीं है.
इस समय कंपनी को बंद करने के फ़ैसले पर एंडरसन ने लिखा- कोई एक वजह नहीं है. कोई ख़ास डर नहीं, कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं और कोई निजी मुद्दा भी नहीं.
एंडरसन ने ये भी कहा कि हिंडनबर्ग उनके जीवन का बस एक अध्याय है, ये उनके जीवन का मुख्य केंद्र नहीं.
अदानी ग्रुप के चीफ़ फ़ाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफ़ओ) जुगेशिंदर सिंह ने सोशल मीडिया वेबसाइट एक्स पर लिखा, “कितने ग़ाज़ी आए, कितने ग़ाज़ी गए”
एंडरसन का ये फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. साथ ही हाल ही में अमेरिकी संसद की जूडिशियरी कमेटी के सदस्य और रिपब्लिकन लांस गूडेन ने न्याय विभाग से अदानी केस से जुड़े सभी दस्तावेज सुरक्षित रखने को कहा था.
शॉर्ट सेलिंग कंपनी हिंडनबर्ग को जून 2024 में भारत की बाज़ार नियामक संस्था सेबी ने कारण बताओ नोटिस भी जारी किया था. सेबी का कहना था कि हिंडनबर्ग ने रिसर्च एनालिस्ट के लिए तय नियमों का उल्लंघन किया है
हिंडनबर्ग ने भारत में उस समय सुर्ख़ियाँ बटोरी थी, जब उसने अदानी पर एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें अदानी समूह के मालिक गौतम अदानी और विनोद अदानी पर गंभीर आरोप लगाए गए थे.
हालाँकि अदानी ग्रुप ने इन आरोपों से इनकार किया था. इसके बाद पिछले साल हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में सेबी की चेयरपर्सन माधबी बुच और उनके पति पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए थे.
माधबी बुच और उनके पति ने इससे इनकार किया था और सेबी ने भी इस मामले में बयान जारी किया था.
अदानी पर रिपोर्ट
भारत में ये तब चर्चा में आई जब इसने 24 जनवरी 2023 को देश के प्रमुख औद्योगिक घराने अदानी समूह के ख़िलाफ़ रिपोर्ट जारी की.
रिपोर्ट में कहा गया था कि अदानी समूह के मालिक गौतम अदानी ने 2020 से ही अपनी सात लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में हेरफेर के ज़रिये 100 अरब डॉलर कमाए.
रिपोर्ट में गौतम अदानी के भाई विनोद अदानी पर भी गंभीर आरोप लगाए गए थे और कहा गया था कि वो 37 शैल कंपनियां चलाते हैं, जिनका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग में हुआ है.
हालाँकि अदानी समूह ने इन आरोपों को निराधार बताया था.
इस रिपोर्ट के बाद अदानी समूह की कंपनियों को 150 अरब डॉलर का नुक़सान हो गया था.
रिपोर्ट आने के एक ही महीने के भीतर अदानी की नेटवर्थ में 80 बिलियन डॉलर यानी 6.63 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा की गिरावट आई थी.
हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के दस दिनों के भीतर वो रईसों की टॉप 20 लिस्ट से भी बाहर हो गए थे.
इसके अलावा गौतम अदानी को कंपनी के 20 हज़ार करोड़ रुपये के एफ़पीओ को भी रद्द करना पड़ा था. कंपनी भारी नुक़सान में चली गई थी.
इस रिपोर्ट ने भारत में राजनीतिक तूफान मचा दिया था. कंपनी की कथित वित्तीय अनियमितता को लेकर संसद में सवाल पूछे गए. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा.
3 जनवरी, 2024 को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने अदानी समूह के ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग की ओर से लगाए गए आरोपों की जाँच के लिए विशेष जाँच दल (एसआईटी) बनाने या केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के अनुरोधों को ख़ारिज कर दिया था.
कोर्ट ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) पर भरोसा जताया था.
फ़ैसले के बाद अदानी समूह के चेयरमैन गौतम अदानी ने एक्स पर पोस्ट किया था, “सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पता चलता है कि सत्य की जीत हुई है. मैं उन लोगों का आभारी हूँ जो हमारे साथ खड़े रहे. भारत की विकास गाथा में हमारा विनम्र योगदान जारी रहेगा.”
माधबी बुच पर अनियमितता के आरोप
इसके बाद हिंडनबर्ग ने पिछले साल अगस्त में अपनी एक रिपोर्ट में भारत में सिक्योरिटी मार्केट रेगुलटर (नियामक) सेबी की मौजूदा चेयरमैन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया था.
हिंडनबर्ग ने व्हिसलब्लोअर दस्तावेज़ों का हवाला देते हुए आरोप लगाया था कि सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच की उन ऑफ़शोर कंपनियों में हिस्सेदारी रही है, जो अदानी समूह की वित्तीय अनियमितताओं से जुड़ी हुई थीं.
बाद में सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने दो पन्नों का एक बयान जारी कर हिंडनबर्ग के दावों पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी.
उन्होंने कहा था कि रिपोर्ट में जिस फ़ंड का ज़िक्र है, उसमें 2015 में निवेश किया गया था और ये माधबी के सेबी का सदस्य बनने से दो साल पहले का मामला है.
सेबी ने भी इस मामले पर कहा था कि ऐसी रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया देने से पहले उस जानकारी का सही से आकलन कर लेना चाहिए.
सेबी ने उस समय कहा था, “निवेशकों को पता होना चाहिए कि हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में एक डिस्क्लेमर शामिल है, जिसमें कहा गया है कि कंपनी जिन बॉन्ड्स की चर्चा कर रही है, उनमें शॉर्ट पोज़ीशन रख सकती है.”
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया था कि सेबी के चेयरपर्सन की उन ऑफ़शोर कंपनियों में हिस्सेदारी रही है जिनका इस्तेमाल अदानी ग्रुप की कथित वित्तीय अनियमतताओं में हुआ था.
इसमें कहा गया था कि सेबी ने अदानी की दूसरी संदिग्ध शेयरहोल्डर कंपनियों पर कोई कार्रवाई नहीं की है जो इंडिया इन्फोलाइन की ईएम रिसर्जेंट फ़ंड और इंडिया फोकस फ़ंड की ओर से संचालित की जाती है.
रिपोर्ट में माधबी पुरी बुच के निजी हितों और बाजार नियामक प्रमुख के तौर पर उनकी भूमिका पर सवाल उठाए गए थे. हिंडनबर्ग रिसर्च का कहना था कि अदानी ग्रुप को लेकर सेबी ने जो जाँच की है, उसकी व्यापक जाँच होनी चाहिए.
हिंडनबर्ग रिसर्च ने कहा था कि व्हिसलब्लोअर से उसे जो दस्तावेज़ हासिल हुए हैं, उनके मुताबिक़ सेबी में नियुक्ति से कुछ सप्ताह पहले माधबी पुरी बुच के पति धवल बुच ने मॉरीशस के फ़ंड प्रशासक ट्रिडेंट ट्रस्ट को ईमेल किया था. इसमें उनके और उनकी पत्नी के ग्लोबल डायनेमिक ऑप्चर्यूनिटीज फ़ंड में निवेश का ज़िक्र था.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है माधबी बुच के सेबी अध्यक्ष बनने से पहले उनके पति ने अनुरोध किया था कि संयुक्त खाते को वही ऑपरेट करेंगे. इसका मतलब ये कि वो माधबी बुच के सेबी अध्यक्ष बनने से पहले पत्नी के खाते से सभी एसेट्स हटा देना चाहते थे.
प्रतिक्रिया
बाद में सेबी चीफ़ माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने बयान जारी कर हिंडनबर्ग के आरोपों का खंडन किया था.
उन्होंने आरोपों को दुर्भावना से प्रेरित बताया था.
बयान में कहा गया था, “हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में जिस फ़ंड का ज़िक्र है उसमें निवेश करने का फ़ैसला साल 2015 में किया गया था. दोनों उस समय आम नागरिक थे और सिंगापुर में रहते थे. ये माधबी पुरी के सेबी में काम करने के क़रीब दो साल पहले की बात है.”
“इस फ़ंड में निवेश करने का फै़सला इसलिए किया गया क्योंकि फ़ंड के चीफ़ इनवेस्टमेंट ऑफ़िसर अनिल आहूजा, धवल के बचपन के दोस्त हैं और वे दोनों एक दूसरे को स्कूल और आईआईटी दिल्ली के समय से जानते हैं. जब आहूजा ने 2018 में उस फ़ंड हाउस को छोड़ दिया तो हमने भी अपने निवेश को भुना लिया.”
बयान में कहा गया था,”अनिल आहुजा ने ये स्पष्ट किया कि किसी भी समय फ़ंड हाउस ने किसी भी अदानी समूह की कंपनी के किसी भी बॉन्ड, इक्विटी या डेरिवेटिव में निवेश नहीं किया था.”
सेबी ने कहा था कि अदानी समूह के मामले में सेबी ने 24 में से 23 जाँचों को पूरा कर लिया है और आख़िरी जाँच भी लगभग पूरी होने वाली है.
सेबी के अनुसार उसने अदानी समूह को 100 से ज़्यादा समन्स लगभग 1,100 पत्र और ईमेल जारी किए हैं. इसके अलावा सेबी ने घरेलू और विदेशी नियामकों से 300 से ज़्यादा बार बातचीत की गई है. साथ ही 12,000 पन्नों के दस्तावेज़ों की समीक्षा भी की गई है.
माधबी पुरी बुच को घेरने वाली हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर अदानी समूह ने भी प्रतिक्रिया दी थी. ग्रुप ने एक बयान जारी कर कहा था कि हिंडनबर्ग की ओर से लगाए गए आरोप में दुर्भावना और शरारतपूर्ण तरीक़े से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का चयन किया गया है. ताकि निजी लाभ के लिए पहले से तय निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके. यह तथ्यों और क़ानूनों का उल्लंघन है.
बयान में कहा गया था, “हम अदानी समूह पर लगाए गए आरापों को पूर्ण रूप से ख़ारिज करते हैं. यह आरोप उन बेबुनियाद दावों की री-साइकलिंग है जिनकी पूरी तरह से जाँच की जा चुकी है. इन आरोपों को जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से पहले ही खारिज़ किया जा चुका है.”
क्या करती रही है कंपनी
अमेरिकी कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च वैसे तो अब बंद होने जा रही है. लेकिन इसका एक प्रमुख काम शॉर्ट सेलिंग भी था. ये कंपनियों पर अपनी रिपोर्ट के ज़रिए उनमें अपनी पोजीशन बनाती थी. इससे पता चल सकता था कि क्या कुछ कंपनियों के बाज़ार मूल्य में गिरावट आ सकती है.
कंपनी के फाउंडर नेट एंडरसन ख़ुद को एक एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर बताते रहे हैं.
हिंडनबर्ग रिसर्च 2017 से काम कर रही है और उसका दावा है कि उसने अब तक कई ऐसी रिपोर्ट्स जारी की हैं, जिनमें अमेरिका की सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज कमिशन के अलावा देश-विदेश की कंपनियों में ग़ैर क़ानूनी लेनदेन और वित्तीय अनियमितताओं को उजागर किया गया है.
हिंडनबर्ग रिसर्च अफिरिया, परशिंग गोल्ड, निकोला और कुछ दूसरी नामी-गिरामी कंपनियों में वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करने का दावा करती है.
हिंडनबर्ग का दावा है कि हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी अपनी रिपोर्ट्स और दूसरी तरह की कार्रवाइयों से पहले भी कई कंपनियों के शेयर्स गिरा चुकी है.
अदानी से पहले हिंडनबर्ग का नाम जिस बड़ी कंपनी के साथ जुड़ा था वो थी- ट्रक कंपनी निकोला. ये मामला जब अदालत तक पहुंचा था, तब निकोला कंपनी के फाउंडर को दोषी पाया गया था.
हिंडनबर्ग के पीछे कौन?
हिंडनबर्ग रिसर्च के प्रमुख नेथन उर्फ नेट एंडरसन हैं.
एंडरसन ने साल 2017 में इस कंपनी की स्थापना की थी. नेट एंडरसन ने अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है.
एंडरसन ने इंटरनेशनल बिजनेस की पढ़ाई की थी और करियर की शुरुआत फैक्ट-सेट रिसर्च सिस्टम नाम की एक डेटा कंपनी से की थी. इस कंपनी में एंडरसन ने इंवस्टमेंट मैनेजमेंट कंपनियों के साथ काम किया था.
साल 2020 में वॉल स्ट्रीट जनरल को दिए इंटरव्यू में एंडरसन ने कहा था, ”मैंने महसूस किया कि ये लोग साधारण सा विश्लेषण कर रहे थे.”
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, एंडरसन ने इसराइल में कुछ वक़्त के लिए एंबुलेंस भी चलाई थी.
एंडरसन के लिंक्डइन प्रोफाइल में लिखा है, ”एंबुलेंस ड्राइवर के तौर पर काम करते हुए मैंने सीखा कि कैसे बहुत प्रेशर में काम किया जाता है.”
एंडरसन के इसी प्रोफाइल में लिखा है कि उनके पास 400 घंटों का मेडिक अनुभव भी है.
कई इंटरव्यू में एंडरसन अपना रोल मॉडल अमेरिकी अकाउंटेंट हैरी मॉर्कोपोलोस को बताते हैं.
एंडरसन के रोल मॉडल हैरी ने भी साल 2008 के बेर्नार्ड मैडॉफ पोंजी स्कीम से जुड़े भ्रष्टाचार के बारे में लोगों को बताया था.
इसी मैडॉफ पर हाल ही में नेटफ्लिक्स की सिरीज़ भी रिलीज़ हुई थी. इस सिरीज़ का नाम था- द मॉन्स्टर ऑफ वॉल स्ट्रीट.
हिंडनबर्ग नाम कहाँ से आया था?
साल 1937. जर्मनी में हिटलर का राज था. इस दौर में एक एयरशिप था. नाम था- हिंडनबर्ग एयरशिप.
एयरशिप के पीछे नाज़ी दौर की गवाही देता स्वास्तिक बना हुआ था. अमेरिका के न्यूजर्सी में इस एयरशिप को ज़मीन से जो लोग देख रहे थे, उन्हें तभी कुछ असामान्य दिखा.
एक तेज़ धमाका हुआ और आसमान में दिख रहे हिंडनबर्ग एयरशिप में आग लग गई. लोगों के चीखने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं. एयरशिप ज़मीन पर गिर गया. 30 सेकेंड से कम वक़्त में सब तबाह हो चुका था.
वहां मौजूद लोगों को बचाने के लिए कुछ लोग आगे बढ़े. कुछ लोगों को बचाया जा सका और कुछ को बचाने के लिए काफी देर हो चुकी थी.
जलते एयरशिप के धुएं ने आसमान को काला कर दिया था. अब जो बचा था, वो एयरशिप के अवशेष थे.
इस एयरशिप में 16 हाइड्रोजन गैस के गुब्बारे थे. एयरशिप में क़रीब 100 लोगों को जबरन बैठा दिया गया था और हादसे में 35 लोगों की जान चली गई थी.
माना जाता है कि हाईड्रोजन के गुब्बारों में पहले भी हादसे हुए थे, ऐसे में सबक लेते हुए इस हादसे से बचा जा सकता था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित