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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की विकास दर को ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ कहे जाने को ग़ुलाम मानसिकता का प्रतीक बताया है.
नई दिल्ली में शनिवार को हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट के दौरान पीएम मोदी ने कहा, “भारत आज दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था है…लेकिन क्या आज कोई इसे हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ कहता है क्या?”
उन्होंने कहा, “‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ उस समय कहा गया जब भारत दो-तीन प्रतिशत की ग्रोथ रेट के लिए तरस गया था. किसी देश की अर्थव्यवस्था को उसमें रहने वाले लोगों की आस्था और पहचान से जोड़ना गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब था.”
“एक पूरे समाज और पूरी परंपरा को ग़रीबी का पर्याय बना दिया गया. ये साबित करने का प्रयास किया गया कि भारत की धीमी विकास दर का कारण हमारी हिंदू सभ्यता और हिंदू संस्कृति है. आज जो बुद्धिजीवी हर बात में सांप्रदायिकता ढूंढते हैं उन्हें ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ में ये नहीं दिखा?”
पीएम मोदी ने आर्थिक विकास के ताज़ा आंकड़ों का ज़िक्र करते हुए कहा कि भारत दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन गया है. इन आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की विकास दर 8.2 फ़ीसदी रही.
आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि ये ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ क्या है और इसकी शुरुआत कब हुई थी.
ग्रोथ रेट क्या है और कैसे की जाती है गणना
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‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ को समझने से पहले ये जान लेते हैं कि विकास दर यानी ग्रोथ रेट क्या है और कैसे कैलकुलेट होती है.
ग्रोथ रेट यानी विकास दर का मतलब होता है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था किस रफ़्तार से बढ़ रही है.
जाने-माने अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, “उदाहरण के लिए अगर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी आज 100 है और अगले साल 105 हो गई तो इसका मतलब है ग्रोथ रेट पांच प्रतिशत है.”
ग्रोथ रेट का आकलन कई तरीक़े से किया जाता है.
जैसे, आर्थिक वृद्धि दर में देश की सभी आर्थिक गतिविधियों को शामिल किया जाता है. इसे आम तौर पर जीडीपी ग्रोथ रेट कहा जाता है.
लेकिन आर्थिक विकास का मोटामोटी दो पैमाना होता है. एक नॉमिनल और दूसरा रियल.
नॉमिनल ग्रोथ रेट इसमें महंगाई को भी शामिल किया जाता है, यानी कुल जीडीपी में महंगाई भी शामिल होती है. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अगर दाम बढ़े तो जीडीपी भी बढ़ जाती है.
रियल ग्रोथ रेट या वास्तविक विकास दर- इसमें महंगाई हटाकर जीडीपी की गणना की जाती है. यानी साल भर में पैदा हुए वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य की गणना की जाती है, जैसे कारों, मशीनरी, अनाज, कपड़े आदि का उत्पादन.
आज़ादी के बाद तेज़ी से बढ़ी अर्थव्यवस्था
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अलग-अलग कालखंडों में भारतीय अर्थव्यवस्था के कई चरण रहे हैं.
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार बताते हैं कि सन् 1900 से 1950 के बीच ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भारत की विकास दर एक प्रतिशत से कम, लगभग 0.75 प्रतिशत बनी रही. लेकिन जब देश आज़ाद हुआ तो विकास दर एकदम तेज़ी से बढ़ी.
वो इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, “औपनिवेशिक दौर में अंग्रेज़ यहां से लूट कर ले जाते थे, जिससे यहां निवेश और बचत बहुत कम होती थी. “
उनके अनुसार, सन् 1950 से 1965 के बीच भारत की विकास दर काफ़ी तेज़ रही. इसमें छह सात गुना उछाल आया और यह क़रीब 4 प्रतिशत हो गई थी, जो उस समय बहुत अच्छी मानी जाती थी.
लेकिन 1965 से 1975 के बीच यह विकास दर काफ़ी गिर गई. उसके कई कराण थे- सन् 1965-66 में पूर्वी भारत में अकाल, 1965 और 1971 की लड़ाई और फिर 1974-75 में इमरजेंसी.
इस बीच पश्चिम एशिया में यौम कुपर युद्ध की वजह से तेल के दाम बहुत बढ़ गए थे, जिसने महंगाई बढ़ाने का काम किया.
1971 की लड़ाई में बांग्लादेश से लगभग सवा करोड़ शरणार्थी भारत आए थे.
इसमें भारत की ग्रोथ रेट बहुत गिर गई और 2 से 2.5 प्रतिशत पर पहुंच गई.
‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ क्या है?
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प्रोफ़ेसर अरुण कुमार बताते हैं कि 1965 से 1975 के बीच भारत की विकास दर के बहुत कम होने के बाद दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर राजकृष्णा ने इसे ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ का नाम दिया.
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार ने कहा, “उनका आशय था कि ग्रोथ रेट अब ज़्यादा बढ़ नहीं रही है और जिस तरह भारतीय समाज बहुत धीमी गति से बदलावों से गुजरता है, अर्थव्यवस्था भी उसी स्थिति का शिकार हो गई है.”
वो कहते हैं, “हालांकि हमने बार-बार कहा कि आज़ादी के बाद भारत की विकास दर में काफ़ी उतार चढ़ाव आते रहे हैं और इसके बहुत स्पष्ट कारण रहे हैं और ‘हिंदू रेट ऑफ़ ग्रोथ’ अपने आप में सही परिभाषा नहीं है.”
प्रोफ़ेसर अरुण कुमार के अनुसार, लेकिन 1975 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार देखा गया और अस्सी के दशक में तो विकास दर पांच प्रतिशत से ऊपर चली गई थी.
“सन् 1990 के बाद जब नई आर्थिक नीतियां आईं तब भी लगभग एक दशक तक विकास दर कमोबेश इतनी ही बनी रही. इसमें उछाल आता है 2003 के बाद और 2008 में सबप्राइम संकट के बाद 2011 से 2013 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था डगमगाई लेकिन उसके बाद हालात बेहतर हुए. भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ गति से आगे बढ़ने वाली चुनिंदा अर्थव्यवस्था में शुमार होने लगी.”
भारत सरकार ने हाल ही में बताया है कि वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारत की वास्तविक जीडीपी दर 8.2 प्रतिशत रही है.
प्रधानमंत्री मोदी ने बीते शनिवार को हुए कार्यक्रम में इन आंकड़ों को ‘भारत की प्रगति का नया प्रतिबिंब’ बताया.
उन्होंने कहा, “ये आंकड़े तब आए हैं जब वैश्विक विकास दर महज तीन प्रतिशत है. जी-7 की अर्थव्यवस्थाएं औसतन डेढ़ प्रतिशत के आस-पास हैं.”
भारत की जीडीपी गणना पर क्यों उठे सवाल
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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने भारत की जीडीपी के आकलन के तरीक़ों पर कुछ सवालिया निशान लगाए हैं.
आईएमएफ़ ने हाल ही में जारी अपनी रिपोर्ट में भारत की जीडीपी और नेशनल अकाउंट्स यानी आँकड़ों को ‘सी’ रेटिंग दी है.
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि नेशनल अकाउंट्स के आंकड़ों की फ़्रीक्वेंसी सही है और पर्याप्त बारीकी में उपलब्ध हैं. लेकिन इसमें मेथोडोलॉजिकल ख़ामियां हैं जो इसके सर्विलांस में बाधा डालती हैं.
इसमें कहा गया है कि भारत प्रोड्यूसर प्राइस इंडेक्स (पीपीआई) का नहीं बल्कि थोक मूल्य सूचकांकों (होलसेल प्राइस इंडेक्स- डब्ल्यूपीआई) का इस्तेमाल करता है, जिससे डेटा में फ़र्क़ आ सकता है.
आईएमएफ़ चार श्रेणियों में डेटा को विभाजित करता है. सी ग्रेड का मतलब है कि डेटा में कुछ कमियाँ हैं, जो निगरानी की प्रक्रिया को कुछ हद तक प्रभावित करती हैं.
इसे लेकर कांग्रेस ने भी सवाल उठाए, जिसके जवाब में बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि ‘भारत को फ़्रीक्वेंसी और सामयिकता के लिए ‘ए’ ग्रेड मिला है इसको नज़रअंदाज़ किया गया.’
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.