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भारत के दो अनुभवी राजनेताओं के बीच पिछले कुछ दिनों में एक-दूसरे पर राज्य में निवेश के मुद्दे पर तीख़ी बयानबाज़ी देखने को मिली है.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कर्नाटक के ग्रामीण विकास और आईटी मंत्री प्रियांक खड़गे के लिए और जवाब में प्रियांक खड़गे ने सरमा के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया है.
इस तरह की भाषा का इस्तेमाल इसलिए हुआ क्योंकि हाल में सेमीकंडक्टर उद्योग से जुड़े निवेश दक्षिणी राज्यों, जैसे कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु में नहीं आ रहे हैं. यहां गैर-भाजपा पार्टियों जैसे कांग्रेस और डीएमके का शासन है.
ये निवेश भाजपा-शासित राज्यों जैसे गुजरात, असम और ओडिशा की ओर जा रहे हैं, जिससे विपक्षी पार्टियां नाराज़ हैं.
इसका कारण यह बताया जा रहा है कि ये भाजपा-शासित राज्य उन कंपनियों को ज़्यादा सब्सिडी दे रहे हैं जो पहले दक्षिणी राज्यों में निवेश करने वाली थीं.
प्रियांक खड़गे ने बीबीसी हिंदी से कहा, ”राज्य सरकारें सेमीकंडक्टर निवेश के लिए सब्सिडी देती हैं और भारत सरकार की अपनी ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ योजना भी है. निवेशक जब हमारे राज्य में यूनिट लगाने की रुचि दिखाता है तो प्रस्ताव केंद्र के पास जाता है. लेकिन फिर हमें पता चलता है कि परियोजना यहां की बजाय गुजरात या असम चली गई है.”
खड़गे कहते हैं, ”सेमीकंडक्टर डिज़ाइन में देश का 40 फ़ीसदी टैलेंट कर्नाटक में है. मैं ये नहीं कह रहा कि निवेश दूसरे राज्यों में न जाएं. पहले वहां इकोसिस्टम तैयार करें फिर प्रोजेक्ट ले जाएं. अगर समान अवसर पर प्रतिस्पर्द्धा हो तो हमें कोई दिक्कत नहीं है.”
ज़ुबानी जंग की शुरुआत कैसे हुई?
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कुछ दिनों पहले गूगल ने घोषणा की कि वह आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एक आर्टिफ़िशयल इंटेलिजेंस हब बनाएगा.
अगले पांच साल में बनने वाले इस हब पर 15 अरब डॉलर यानी 87,520 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे. इस हब से 1.88 लाख नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है. माना जा रहा है कि इससे राज्य की जीडीपी (जीएसडीपी) में सालाना दस हजार करोड़ रुपये का भी योगदान होगा.
बताया जा रहा है कि यह हब समुद्र के नीचे केबल के ज़रिये सिंगापुर, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया और 12 अन्य देशों से जुड़ा होगा.
इस घोषणा के बाद भाजपा नेता अमित मालवीय ने एक्स पर प्रियांक खड़गे पर निशाना साधा. उन्होंने लिखा, ”खड़गे जूनियर की वजह से कर्नाटक बुरी तरह हार रहा है. कर्नाटक अब गूगल के 15 अरब डॉलर के डेटा सेंटर निवेश से चूक गया, जो अब विशाखापट्टनम जा रहा है. इलेक्ट्रॉनिक्स,आईटी और बीटी (इंफ़ोर्मेशन टेक्नोलॉजी और बायो टेक्नोलॉजी) के तथाकथित मंत्रालय के तहत ऐसा हो रहा है. दो सेमीकंडक्टर यूनिट्स जो अरबों डॉलर का निवेश करने वाले थे वो भी कर्नाटक छोड़कर असम और गुजरात चली गईं.”
इस पर प्रियांक खड़गे ने बेंगलुरु में मीडिया से कहा, ”सेमीकंडक्टर कंपनियां असम और गुजरात क्यों जा रही हैं, जबकि वे बेंगलुरु आना चाहती हैं? मैंने यह मुद्दा पहले भी उठाया है. जो निवेशक कर्नाटक आना चाहते हैं, उन्हें जबरदस्ती गुजरात भेजा जा रहा है. गुजरात में ऐसा क्या है? क्या वहां टैलेंट है? असम में क्या टैलेंट है? बताइए तो सही.”
इस पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा मुद्दे को अलग स्तर पर ले गए. उन्होंने इसे असम के युवाओं का अपमान बताया.
उन्होंने एक्स पर लिखा, ”कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक खड़गे ने असम के युवाओं का अपमान किया है. असम कांग्रेस में इतना साहस नहीं कि वे इसकी निंदा करे.”
बीबीसी हिन्दी ने जब पूछा कि वो हिमंत बिस्वा सरमा की भाषा पर क्या कहेंगे तो प्रियांक खड़गे ने कहा, ”यही तो जातिगत विशेषाधिकार यानी कास्ट प्रिविलेज है. उन्हें ये गवारा नहीं कि कोई उनकी ग़लतियों की ओर ध्यान दिलाए. ये ताक़त उनकी कुर्सी और दुस्साहस उनके वैचारिक गुरुओं से आता है.”
जवाब देते हुए दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया.
प्रियांक ने आगे कहा, “वह (सरमा) कहते हैं कि 1500 से ज़्यादा असमिया युवक बेंगलुरु में ट्रेनिंग ले रहे हैं. मैं तो यही कह रहा हूं. टैलेंट पूल यहीं है, ट्रेनिंग यहीं होती है, इकोसिस्टम यहीं है. तो फिर कंपनियों को असम क्यों भेजा जा रहा है?”
असल मुद्दा क्या है?
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प्रियांक खड़गे के मुताबिक़, हाल के महीनों में कर्नाटक से चार सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियां, तमिलनाडु से कम से कम दो कंपनियां और तेलंगाना से दो कंपनियां निवेश की योजना रद्द कर चुकी हैं.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी हिन्दी से कहा कि प्रियांक की बात पूरी तरह ग़लत नहीं है.
उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार की सेमीकंडक्टर नीति है जिसके तहत सब्सिडी मिलती है. कर्नाटक भी निवेशकों को सब्सिडी देता है क्योंकि यहां बेंगलुरू में देश का सबसे बड़ा टैलेंट पूल मौजूद है.”
एक दूसरे अधिकारी ने भी नाम न ज़ाहिर करने की शर्त पर बीबीसी हिन्दी से कहा, ”ये स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है. निवेशक कर्नाटक आता है और यहां यूनिट खोलने में दिलचस्पी दिखाता है. फिर हम निवेश के हिसाब से सब्सिडी तय करते हैं. अगर निवेश 3,000 करोड़ या 5,000 करोड़ रुपये से अधिक है तो हम ज़्यादा सब्सिडी देते हैं.”
अधिकारी ने ऐसी पांच कंपनियों के नाम लिए. उन्होंने कहा, ”राज्य सरकार की तरफ से मिल रही सब्सिडी से ये कंपनियां खुश थीं, लेकिन फिर भी यहां नहीं आईं.”
ये कंपनियां हैं –
- टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स) यूनिट का सेमीकंडक्टर फ्रैब्रिकेशन प्रोजेक्ट (धोलेरा) गुजरात. निवेश – 91 हज़ार करोड़ रुपये
- माइक्रॉन सेमीकंडक्टर टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स) का साणंद, गुजरात में सेमीकंडक्टर प्रोजेक्ट. निवेश – 23 हज़ार करोड़ रुपये
- वडोदरा, गुजरात में एयरबस सी295 (एयरक्राफ्ट) प्रोजेक्ट. निवेश – 22 हज़ार करोड़ रुपये
- सीजी पावर एंड इंडस्ट्रियल सॉल्यूशन लिमिटेड (इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स) का सेमीकंडक्टर्स प्रोजेक्ट (साणंद, गुजरात). निवेश – 7600 करोड़ रुपये
- केन्स सेमीकॉन प्राइवेट लिमिटेड (इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स) का सेमीकंडक्टर्स प्रोजेक्ट (साणंद, गुजरात). निवेश – पांच हज़ार करोड़ रुपये
प्रियांक खड़गे का आरोप है, ”निवेशक कर्नाटक में आने की इच्छा जताता है. हम सब्सिडी देते हैं. लेकिन जब वह केंद्र सरकार से सब्सिडी मांगने जाता है, तो उससे कहा जाता है अगर गुजरात या असम जाओगे तो ज़्यादा सब्सिडी देंगे.”
वो कहते हैं, ”अगर निवेशक फिर भी कर्नाटक में रहना चाहता है, तो उसकी फ़ाइल एक साल तक लटका दी जाती है. यह सीधे तौर पर उन पर दबाव है.”
निवेश के लिए इतनी होड़ क्यों?
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गुलाटी इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ाइनेंस के पूर्व निदेशक प्रोफ़ेसर डी. नारायण ने कहा, ”राज्यों के बीच निवेश पाने की होड़ समझ में आती है. हर राज्य आर्थिक विकास चाहता है क्योंकि विकास से राजस्व बढ़ता है.”
वो कहते हैं, ”कर्नाटक की तेज़ आर्थिक वृद्धि ही विदेशी कंपनियों और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) को आकर्षित कर रही है. इसके साथ रियल एस्टेट और अन्य क्षेत्रों में भी पैसा आता है. कोई भी राज्य पीछे नहीं रहना चाहता. कर्नाटक की इस मामले में बढ़त है कि इसके पास ऐसा टैलेंट पूल है जो निवेश लाने में अहम भूमिका अदा करता है. इसके साथ ये नहीं भूलना चाहिए कि यहां स्टार्ट-अप का इकोसिस्टम है.”
प्रोफ़ेसर डी. नारायण ने बेंगलुरु की अहमियत के बारे में समझाते हुए कहा, ”उदाहरण के लिए बेंगलुरु के पास ऐसे आधार हैं जो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस (आईआईएससी) जैसे टैलेंट पूल को समर्थन देते हैं. देश में कहीं भी आईआईएससी जैसा संस्थान विकसित नहीं किया गया है. इसलिए इस मामले में दूसरे राज्य कर्नाटक से पीछे हैं.”
उन्होंने कहा, ”भले ही मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का निवेश कहीं और चला जाए लेकिन सभी तकनीक का विकास तो बेंगलुरु में ही होगा.”
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