टेस्ट के अलावा वह टीम इंडिया के लिए 15 वनडे मैच भी खेले। इस फॉर्मेट में उन्होंने 3.96 की इकोनॉमी रेट से 22 विकेट हासिल किए। दोशी ने सौराष्ट्र, बंगाल, वारविकशायर और नॉटिंघमशायर के लिए प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी खेला था। दोशी 1970 के दशक के प्रसिद्ध स्पिन चौकड़ी के नक्शेकदम पर चले और 32 साल की उम्र में टेस्ट डेब्यू किया।
गैरी सोबर्स से प्रभावित थे दिलीप दोशी
दिलीप दोशी नॉटिंघमशायर के लिए खेलते हुए वेस्टइंडीज के दिग्गज गैरी सोबर्स से भी बहुत प्रभावित हुए थे। दिलीप दोशी ने जब तक खेले वह मैदान पर छाए रहे, लेकिन 1980 के दशक में उन्होंने अचानक इंटरनेशनल क्रिकेट से विदाई ले ली। इसके पीछे का एक बड़ा कारण ये था कि वह उस समय भारतीय क्रिकेट के संचालन के तरीके से सहमत नहीं थे। दिलीप दोशी ने एक किताब भी लिखी है। उनके इस किताब का नाम ‘स्पिन पंच’ है।
इस किताब में उन्होंने स्पिन गेंदबाजी की बारीकियों के बारे में विस्तार से बताया है। 2008 में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि, ‘स्पिन गेंदबाजी बुद्धिमत्ता की लड़ाई है।’ बता दे कि दोशी एक ‘थिंकिंग क्रिकेटर’ के रूप में जाने जाते थे और उन्होंने 1981 के मेलबर्न टेस्ट में इन विशेषताओं को सामने लाया था, जिससे भारत ने जीत दर्ज की थी। इस जीत में उन्होंने पांच विकेट लेकर प्रमुख भूमिका निभाई थी। दिलीप दोशी की गेंदबाजी की खास बात ये थी कि वह अक्सर चश्मा पहनकर गेंदबाजी करते थे।