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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में 130वाँ संविधान संशोधन बिल, 2025 पेश किया है.
इस बिल में केंद्र और राज्य के उन मंत्रियों को हटाने का प्रावधान है, जो भ्रष्टाचार या गंभीर अपराध के मामले में कम से कम 30 दिनों के लिए हिरासत में या गिरफ़्तार किए गए हैं.
इस बिल के ज़रिए संविधान के अनुच्छेद 75 में संशोधन करना है, जिसमें प्रधानमंत्री के साथ मंत्रियों की नियुक्ति और ज़िम्मेदारियों की बातें हैं.
इस बिल में प्रावधान है कि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के मंत्री अगर लगातार 30 दिनों के लिए हिरासत में या गिरफ़्तार किए जाते हैं तो उन्हें 31वें दिन पद से हटा दिया जाएगा.
ड्राफ्ट बिल के मुताबिक़, अगर किसी मंत्री को पद पर रहते हुए लगातार 30 दिन के लिए किसी क़ानून के तहत अपराध करने के आरोप में गिरफ़्तार किया जाता है और हिरासत में लिया जाता, जिसमें पाँच साल या उससे ज़्यादा की सज़ा का प्रावधान है, उसे राष्ट्रपति की ओर से प्रधानमंत्री की सलाह पर पद से हटा दिया जाएगा. ऐसा हिरासत में लिए जाने के 31वें दिन हो जाना चाहिए.
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यह बिल तमिलनाडु की डीएमके सरकार में मंत्री रहे वी सेंथिल बालाजी की गिरफ़्तारी के बाद उपजे विवाद के बाद लाया गया है. मनी लॉन्डरिंग केस में बालाजी की गिरफ़्तारी के बाद तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि ने उन्हें पद से हटा दिया था. सुप्रीम कोर्ट से बालाजी को जमानत मिलने के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने उन्हें फिर से मंत्री बना दिया था. बालाजी को फिर से मंत्री बनाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई थी. इसके बाद उन्हें फेरबदल में हटा दिया गया था.
अमित शाह ने लोकसभा कार्यालय को मंगलवार को सूचित किया था कि संसद के जारी सत्र में ये तीन बिल- 130वाँ संविधान संशोधन बिल, 2025, जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाइज़ेशन (संशोधन) बिल, 2025 और द गवर्नमेंट ऑफ़ यूनियन टेरिटरीज़ (संशोधन) बिल 2025 पेश किए जाएंगे.
क्या सरकार पास करा पाएगी बिल?
संसद के मानसून सत्र में अब केवल दो दिन ही बचे हैं. 21 अगस्त को मानसून सत्र समाप्त हो रहा है. अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं था कि आरोप के आधार पर ही किसी मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को पद से हटा दिया जाए. अभी तक दोषी ठहराए जाने के बाद ही सांसदों की सांसदी और विधायकों की विधायकी जाती है.
अमित शाह ने बिल के मक़सद और वजह की जो जानकारी भेजी है, उसे लोकसभा सांसदों के बीच बाँटा गया गया था.
इसमें कहा गया है, ”निर्वाचित प्रतिनिधि भारत की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनसे उम्मीद की जाती है कि राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर केवल जनहित का काम करें. यह उम्मीद की जाती है कि पद पर रहते हुए मंत्रियों का चरित्र संदेह से परे हो.”
इसमें कहा गया है कि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे, गिरफ़्तार और हिरासत में लिए गए किसी मंत्री से संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतों को नुक़सान पहुँच सकता है. ऐसे में लोगों का व्यवस्था पर भरोसा कम होता है.
बयान में कहा गया है, ”गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण गिरफ़्तार और हिरासत में लिए गए किसी मंत्री को हटाने का संविधान में कोई प्रावधान नहीं है. इसे देखते हुए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्यों के मंत्रियों को हटाने के लिए अनुच्छेद 75, 164 और 239एए में संशोधन की ज़रूरत है.
अब तक गिरफ़्तारी या हिरासत में लिए जाने के बाद भी कई मंत्री इस्तीफ़ा नहीं देते हैं. विपक्ष का कहना है कि इस क़ानून का दुरुपयोग हो सकता है. अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए गिरफ़्तार किया गया था. इनकी गिरफ़्तारी पर विपक्ष ने कहा था कि इन्हें जानबूझकर फँसाया गया है.
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सरकार की रणनीति क्या है?
इस बिल पर कांग्रेस सांसद और सुप्रीम कोर्ट के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने लिखा है, ”यह विपक्ष को निशाना बनाने के लिए है. गिरफ़्तारी में कोई नियम का पालन नहीं होता है. विपक्षी नेताओं की गिरफ़्तारी बढ़ी है और इनमें काफ़ी असंगति भी है. नया प्रस्तावित क़ानून मौजूदा मुख्यमंत्री को गिरफ़्तारी के तुरंत बाद हटा देगा. विपक्ष को अस्थिर करने का यह सबसे अच्छा तरीक़ा है.”
सिंघवी ने लिखा है, ”पक्षपाती केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी मुख्यमंत्रियों को गिरफ़्तार करने के लिए उकसाना और उन्हें चुनाव में हराने में नाकाम रहने के बावजूद, मनमाने ढंग से गिरफ़्तार करके उन्हें हटाना! दूसरी तरफ़ सत्ताधारी दल के किसी भी मौजूदा मुख्यमंत्री को कभी कुछ नहीं हुआ.”
मानसून सत्र 21 अगस्त को ख़त्म होने जा रहा है और सरकार के पास संसद में दो तिहाई बहुमत भी नहीं है, ऐसे में इस बिल को लाने का क्या मतलब है?
इस सवाल के जवाब में अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा कहते हैं, ”ये बस पेश कर देंगे और फिर बिल सिलेक्ट कमिटी के पास चला जाएगा. मुझे नहीं लगता है कि इस बिल पर चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी सहमत होगी. टीडीपी के समर्थन से ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हुए हैं. इस बिल का मक़सद एक माहौल बनाने की कोशिश है कि सरकार राजनीति के अपराधीकरण और भ्रष्टाचार को लेकर बहुत सख़्त है.”
विनोद शर्मा कहते हैं, ”इस बिल के पास हो जाने के बाद राज्यपाल को किसी भी मुख्यमंत्री को हटाने का अधिकार मिल जाएगा. यह दूसरी बात है कि राज्यपाल पर अपने पद का दुरुपयोग करने का सबसे ज़्यादा आरोप लगता है. हालांकि राज्यपाल को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है.”
इस बिल पर राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा, ”अभियुक्त और दोषी का फ़र्क़ मिटाने की तैयारी है. ईडी को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आप राजनीतिक गेम का हिस्सा बन रहे हैं. जहाँ आप चुनाव नहीं जीत सकते हैं, वहां विपक्ष को हटाने का तरीक़ा है. मुझे तो लगता है कि अपने भी दल में कुछ लोगों को गृह मंत्री निपटाने की तैयारी कर रहे हैं.”
सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने इस बिल की आलोचना करते हुए कहा कि यह संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सीधा हमला है. दीपांकर ने कहा कि इस बिल के ज़रिए केंद्रीय एजेंसियों ईडी, सीबीआई, आईटी और एनआईए का दुरुपयोग बढ़ेगा.
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