तमिलनाडु के कुंडगई में मिली 2500 साल पुरानी खोपड़ियों पर रिसर्च करके वैज्ञानिकों ने दो व्यक्तियों के चेहरे डिजिटल तकनीक से फिर से बनाए हैं। लिवरपूल जॉन मूर्स यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने 3D मॉडल तैयार कर मांसपेशियां चर्बी और त्वचा की डिजिटल लेयर बनाई। रिसर्च से पता चला कि दोनों की उम्र मौत के समय लगभग 50 से 60 साल रही होगी।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तमिलनाडु के कुंडगई इलाके से मिली लगभग 2500 साल पुरानी खोपड़ियों पर रिसर्च करके वैज्ञानिकों ने दो व्यक्तियों के चेहरे फिर से बनाए हैं। ब्रिटेन की लिवरपूल जॉन मूर्स यूनिवर्सिटी के फेस लैब के विशेषज्ञों ने डिजिटल तकनीक से यह काम किया है।
इन वैज्ञानिकों ने खोपड़ियों को स्कैन कर 3D मॉडल तैयार किया और उस पर मांसपेशियां, चर्बी और त्वचा का डिजिटल लेयर बनाया। इसके बाद आंख, नाक और होंठ जैसी बनावक का अनुमान लगाकर चेहरे पूरे किए। तस्वीर में दोनों पुरुषों की आंखें गहरी और चेहरे के नक्श काफी जीवंत दिख रहे हैं। रिसर्च से यह भी पता चला कि दोनों की उम्र मौत के समय लगभग 50 से 60 साल रही होगी।
अतीत को समझने में मिलेगी मदद
फेस लैब की डायरेक्टर कैरोलीन विल्किंसन का कहना है कि इस तरह की तकनीक हमें अतीत के लोगों को समझने में मदद करती है। उन्होंने बताया कि फिलहाल चेहरे को औसत साउथ इंडियन त्वचा, आंख और बालों के रंग से बनाया गया है। आने वाले समय में डीएनए की स्टडी से और सटीक जानकारी मिल सकती है।
ये चेहरे लगभग 580 ईसा पूर्व के समय से जुड़े हैं। यह दौर तमिलनाडु में प्रारंभिक शहरी सभ्यता का था। इस रिसर्च से पता चलता है कि उस समय भी यहां एक विकसित समाज मौजूद था। कुंडगई में हुई खुदाई को कीलाड़ी सभ्यता से जोड़ा जाता है। हाल ही में यहां मिट्टी की बनी पानी की पाइप मिली है, जिससे पता चलता है कि उस समय लोग उन्नत जल प्रबंधन सिस्टम इस्तेमाल करते थे।
काफी विकसित था साउथ इंडिया
पुरातत्वविद बताते हैं कि कीलाड़ी के लोग ईंट से बने घरों में रहते थे, जिनकी छत पर टाइलें लगी होती थीं। वे प्रांरभिक तमिल लिपि का इस्तेमाल भी करते थे। इन खोजों से साबित होता है कि दक्षिण भारत की यह सभ्यता उस समय काफी विकसित थी।