इमेज कैप्शन, सुब्रमण्यम “सुबु” वेदम को अपने पूर्व रूममेट के क़त्ल के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था….में
सुब्रमण्यम “सुबु” वेदम एक ऐसे क़त्ल के आरोप में 43 साल से जेल में बंद थे, जो उन्होंने किया ही नहीं था. आख़िरकार उन्हें क़ैद से आज़ादी मिल गई है.
इस महीने की शुरुआत में नए सबूतों के आधार पर उन्हें उनके पूर्व रूममेट की हत्या के मामले से बरी कर दिया गया.
लेकिन परिवार से मिलने से पहले ही अमेरिकी इमिग्रेशन और कस्टम्स एन्फ़ोर्समेंट यानी आईसीई ने उन्हें हिरासत में ले लिया. एजेंसी उन्हें भारत भेजना चाहती है, वह देश जहां वह बचपन के बाद कभी नहीं रहे.
अब वेदम की क़ानूनी टीम इस निष्कासन आदेश के ख़िलाफ़ लड़ रही है. उनका परिवार चाहता है कि उन्हें हमेशा के लिए हिरासत से बाहर निकाला जाए.
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उनकी बहन सरस्वती वेदम ने बीबीसी को बताया कि उनका परिवार अब एक नई और ‘बहुत अलग’ स्थिति से निपटने की कोशिश कर रहा है.
उनके भाई अब उस जेल से निकलकर एक ऐसे केंद्र में हैं जहां वह किसी को नहीं जानते. पहले वह ऐसी जगह थे, जहां क़ैदी और गार्ड दोनों उन्हें जानते थे.
वह वहां क़ैदियों के मार्गदर्शक थे और उनका अपना सेल था. अब वह 60 लोगों के साथ एक ही कमरे में रहते हैं और वहां उनके अच्छे व्यवहार या काम की कोई जानकारी नहीं है.
नई स्थिति में वेदम अपनी बहन और परिवार को बार-बार एक ही बात कह रहे हैं कि “हमें अपनी जीत पर ध्यान देना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “मैं अब बेगुनाह साबित हो चुका हैं. मैं अब क़ैदी नहीं, बल्कि हिरासत में रखा गया इंसान हूं.”
साल 1980 का क़त्ल का मामला
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इमेज कैप्शन, सुब्रमण्यम वेदम क़त्ल के अलावा ड्रग मामले में भी सज़ा काट रहे थे
40 साल से ज़्यादा समय पहले सुब्रमण्यम वेदम को उनके रूममेट टॉम किन्सर की हत्या का दोषी ठहराया गया था. टॉम किन्सर 19 साल के कॉलेज छात्र थे.
किन्सर का शव नौ महीने बाद एक जंगल में मिला था, जिनके सिर पर गोली के निशान थे.
जिस दिन किन्सर लापता हुए, उस दिन मिस्टर वेदम ने उनसे लिफ़्ट मांगी थी. किन्सर की गाड़ी उनकी सामान्य जगह पर वापस मिल गई, लेकिन किसी ने यह नहीं देखा कि उसे कौन वापस लाया.
वेदम पर किन्सर की हत्या का आरोप लगा. उन्हें ज़मानत नहीं मिली. अधिकारियों ने उनका पासपोर्ट और ग्रीन कार्ड ज़ब्त कर लिया और उन्हें ‘विदेशी जो भाग सकता है’ बताया गया.
दो साल बाद उन्हें हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई.
1984 में उन्हें एक ड्रग मामले में भी दो साल छह महीने से पांच साल की सज़ा सुनाई गई, जो साथ-साथ पूरी की जानी थी. इस पूरे समय वेदम ने हत्या के आरोपों से इनकार किया.
उनके समर्थक और परिवार का कहना था कि इस अपराध से उन्हें जोड़ने वाला कोई ठोस सबूत नहीं था.
वेदम की बेगुनाही साबित होना
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इमेज कैप्शन, कोर्ट के बाहर माइक्रोफ़ोन पर बोलती सरस्वती वेदम, वहीं प्रदर्शनकारियों के हाथों में “फ्री सुबु” लिखे पोस्टर
सुब्रमण्यम वेदम ने हत्या के मामले में बार-बार अपील की थी. कुछ साल पहले इस केस में नए सबूत सामने आए, जिन्होंने उन्हें बरी कर दिया.
इस महीने की शुरुआत में सेंटर काउंटी के डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी बर्नी कैंटोर्ना ने कहा कि वेदम के ख़िलाफ़ नया मुक़दमा नहीं चलाया जाएगा.
लेकिन वेदम का परिवार जानता था कि उनकी रिहाई से पहले एक अड़चन अब भी बाक़ी है, जो था 1988 में जारी किया गया निष्कासन आदेश. यह आदेश हत्या और ड्रग मामले में उनके दोषी ठहराए जाने के आधार पर दिया गया था.
वेदम की बहन सरस्वती ने कहा कि परिवार को उम्मीद थी कि उन्हें इमिग्रेशन केस को दोबारा खोलने के लिए अपील करनी पड़ेगी. उन्होंने कहा कि अब केस के तथ्य पहले से बिल्कुल अलग हैं.
लेकिन जब आईसीई ने उन्हें गिरफ़्तार किया, तो एजेंसी ने इसी पुराने निष्कासन आदेश का हवाला देते हुए उन्हें पेंसिल्वेनिया के एक अन्य केंद्र में हिरासत में ले लिया.
आईसीई का कहना है कि वेदम हत्या के आरोप से बरी हो गए हैं, लेकिन ड्रग केस में उनका दोष अब भी बरक़रार है. एजेंसी ने कहा कि उसने क़ानूनी आदेश के तहत कार्रवाई की है.
आईसीई ने बीबीसी के सवालों का जवाब नहीं दिया, लेकिन अन्य अमेरिकी मीडिया को बताया कि वेदम को निष्कासन की प्रक्रिया पूरी होने तक हिरासत में रखा जाएगा.
वेदम के परिवार का कहना है कि उनके मामले की जांच करते समय इमिग्रेशन कोर्ट को जेल में उनके अच्छे व्यवहार, तीन डिग्रियां पूरी करने और सामुदायिक सेवा को ध्यान में रखना चाहिए.
बहन सरस्वती ने कहा, “सबसे दुखद बात यह थी कि हमें एक पल के लिए भी उन्हें गले लगाने का मौक़ा नहीं मिला. उन्हें ग़लती से कै़द किया गया था, और उन्होंने इतने सम्मान और ईमानदारी से जीवन जिया, यह कुछ मायने तो रखता है.”
भारत भेजे जाने की संभावना
परिवार का कहना है कि भारत से वेदम का रिश्ता बहुत कमज़ोर है. वेदम का जन्म भारत में हुआ था, लेकिन वह सिर्फ़ नौ महीने की उम्र में अमेरिका आ गए थे.
उनकी बहन सरस्वती के मुताबिक़, भारत में जो कुछ रिश्तेदार हैं, वे बहुत दूर के हैं.
उनका परिवार और कुछ रिश्तेदार अमेरिका और कनाडा में रहते हैं.
सरस्वती ने कहा, “अगर उन्हें भारत भेज दिया गया तो वह फिर से अपने सबसे क़रीबी लोगों से दूर हो जाएंगे. यह ऐसे होगा जैसे उनकी ज़िंदगी दो बार छीन ली गई हो.”
वेदम अमेरिका के स्थायी निवासी हैं. उनकी नागरिकता की अर्ज़ी उनकी गिरफ़्तारी से पहले ही मंज़ूर हो चुकी थी. उनके माता-पिता भी अमेरिकी नागरिक थे.
उनकी वकील एवा बेनाच ने बीबीसी से कहा, “अब अगर उन्हें अमेरिका से निकालकर उस देश में भेजा गया जहां उनका कोई संबंध नहीं, तो यह ऐसे व्यक्ति के साथ एक और बड़ी नाइंसाफ़ी होगी जिसने पहले ही अपनी ज़िंदगी में रिकॉर्ड स्तर का अन्याय झेला है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.