भारत को हासिल हुई कूटनीतिक जीत
भारत को तब एक बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल हुई थी, जब रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर मतभेदों के बावजूद जी-20 शिखर सम्मेलन में सर्वसम्मति से एक घोषणापत्र स्वीकार कर लिया गया था। पीएम मोदी ने प्रमुख विकसित और विकासशील देशों के समूह के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन के पहले दिन दूसरे सत्र की शुरुआत में 37 पृष्ठ वाले घोषणापत्र पर आम सहमति और उसके बाद उसके अपनाये जाने की घोषणा की थी।
अमिताभ कांत ने बुक में किया खुलासा
अमिताभ कांत का कहना है कि हालांकि, नई दिल्ली जी20 लीडर्स डिक्लेरेशन (NDLD) के अंतिम मसौदे तक पहुंचना बिल्कुल भी आसान नहीं था। रूपा प्रकाशन से प्रकाशित किताब में कांत लिखते हैं कि 250 द्विपक्षीय बैठकों में 300 घंटे की चर्चा के बाद भी पाठ में लगातार संशोधन और आपत्तियां आती रहीं। सभी प्रतिभागियों ने बातचीत के महत्व और गंभीरता को महसूस किया, लेकिन पारस्परिक रूप से सहमत परिणाम की तलाश अब भी दूर की कौड़ी लग रही थी।
हर दो घंटे पर पीएम मोदी ने मांगी रिपोर्ट
अमिताभ कांत ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का पूरा अहसास था कि इसमें क्या-क्या दांव पर लगा है। उन्होंने मुझसे हर दो घंटे में स्थिति रिपोर्ट भेजने को कहा था। यह एक ऐसा काम था जिसके लिए कई तरह के कार्य करने और त्वरित विश्लेषण की जरूरत थी। इस निरंतर कम्यूनिकेशन से न केवल प्रधानमंत्री मोदी को हर बात की जानकारी मिल रही थी, बल्कि हम भी काम में लगातार लगे हुए थे, जिससे हमें वार्ता की रूपरेखा तैयार करने और हमारी प्रगति का जायजा लेने में मदद मिली।
रूस को मनाने के लिए हुई कवायद
अमिताभ कांत के अनुसार, रूस ने ‘प्रतिबंध’ शब्द को शामिल करने पर जोर दिया। इसके परिणामस्वरूप रूसी परिसंघ के विदेश मामलों के उप मंत्री अलेक्जेंडर पैनकिन के साथ व्यापक चर्चा हुई, जो ढाई घंटे तक चली, ताकि उन्हें पुनर्विचार करने के लिए राजी किया जा सके। उन्होंने बताया कि काफी कुछ दांव पर था, क्योंकि सहमत नहीं होने पर रूस अलग-थलग पड़ जाता और उसके खिलाफ 19-1 वोट पड़ते। हमें आखिरकार रूस को बताना पड़ा कि यह संभव नहीं है और अन्य देश इसे स्वीकार नहीं करेंगे। हमने रूस को यह स्पष्ट कर दिया कि इस मामले पर उसके जोर देने से भारत पर काफी दबाव पड़ेगा और इससे हमारे लिए आगे बढ़ना असंभव हो गया है।
ऐसे आई रूस के रुख में नरमी
अमिताभ कांत ने कहा कि पूरी वार्ता के दौरान जी7 देश भारत पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को आमंत्रित करने के लिए दबाव डाल रहे थे, लेकिन भारत का रुख यह था कि गेस्ट लिस्ट केवल जी20 नेताओं तक ही सीमित रहे। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री डॉ. जयशंकर की सलाह पर मुझे रूसी वार्ताकार को बताना पड़ा कि अगर वे सहमत नहीं हुए तो प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के बाद पहले वक्ता जेलेंस्की होंगे। यह साहसिक और दृढ़ वार्ता रणनीति अंततः काम आई और रूस के रुख में नरमी आयी।