क्या है आम आदमी पार्टी का प्लान?
आम आदमी पार्टी (आप) ने बिहार विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर खुद को ‘INDIA’ गठबंधन से अलग कर विपक्ष के रणनीतिकारों को चौंका डाला है। यह दीगर है कि ‘इंडिया’ गठबंधन के भीतर कई लोगों ने अपनी डफली राग अलापना पहले ही शुरू कर दिया था। अब ‘आप’ ने भी यह कहा कि ‘इंडिया’ गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए बना था। विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य की पार्टी अपना अलग दृष्टिकोण के साथ चुनाव लड़ सकती हैं। हाल ही के दिल्ली चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ी थी।
मिली जानकारी के अनुसार, अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया आम आदमी पार्टी के वे प्रमुख किरदार हैं, जो विधान सभा चुनाव 2025 को लेकर अपने दम पर चुनावी अभियान के लिए रणनीति बना रहे हैं।
महागठबंधन के वोटों में बिखराव?
राजनीतिज्ञों की माने तो समग्रता में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के 243 सीटों पर तात्कालिक रूप से लगता है कि महागठबंधन के वोटों में बिखराव स्पष्ट है। इसका सीधा फायदा एनडीए को हो सकता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का अलग-अलग चुनाव लड़ना, भाजपा की सरकार बनने का एक मुख्य कारण बना था। बिहार में भी ‘आप’ का अलग होना महागठबंधन के वोट विभाजन के कारण बन सकता है। हालांकि ये बिखराव तब और स्पष्ट होगा, जब आम आदमी पार्टी उम्मीदवारों की घोषणा करेगी। बिहार के जातीय समीकरण में आम आदमी पार्टी किस सोशल इंजीनियरिंग के साथ उम्मीदवार उतारेगी, वह वोट बंटवारा का कारण बनेगा।
‘आप’ की तैयारियां तो काफी जोर शोर से
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी के रणनीतिकार काफी गंभीर है। वह जानते हैं, अकेले दम पर लड़ना और बेहतर परफॉर्म करना आसान नहीं है। इसलिए जातीय जकड़न से भरे चुनावी समीकरण को समझने के लिए आम आदमी पार्टी भी बिहार में पद यात्रा की राह चल पड़ी है। राज्य में आम आदमी पार्टी ने अपनी पद यात्रा की शुरुआत 31 मई से कर दी है। यह पदयात्रा सात चरणों में होगी। आम आदमी पार्टी ने इस पदयात्रा को ‘केजरीवाल जनसंपर्क यात्रा’ का नाम दिया है। इस पद यात्रा के दौरान जनता के बीच जाकर आम आदमी पार्टी के रणनीतिकार अभी अपनी पैठ बनाने में लगे हैं।
क्या है आम आदमी का तात्कालिक उद्देश्य?
आम आदमी पार्टी इस चुनावी अभियान के जरिए विधान सभा में खाता खोलने की तैयारी कर रही है। लेकिन इनके निशाने पर वर्ष 2030 का विधानसभा चुनाव है।इस चुनाव में पार्टी प्राप्त वोटों के सहारे अपना मत प्रतिशत बढ़ाना चाहती है, ताकि पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाने के लिए सहायक हो। दरअसल एक नेशनल पार्टी बनने के लिए कई तरह के कैटिगरी रखी गई हैं। पहला ये है कि किसी भी पार्टी की कम से कम तीन राज्यों में लगभग 11 लोकसभा सीटें होनी चाहिए। इसके अलावा एक कैटिगरी ये भी है कि अगर कोई पार्टी 4 राज्यों में राज्य पार्टी की कैटिगरी में शामिल हो जाती है तो उसे मान्यता मिल जाती है। अब राज्य पार्टी की कैटिगरी में शामिल होने के लिए पार्टी को एक राज्य के विधानसभा चुनाव में 6 प्रतिशत वोट/2 सीटें निकालनी होती हैं। अगर उसका वोट प्रतिशत 6 से कम है तो सीटों की संख्या 3 होनी चाहिए।
आम आदमी पार्टी को चार राज्यों-दिल्ली, गोवा, पंजाब और गुजरात में उसके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया था। तब अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी दिल्ली और पंजाब में सत्ता में थी। अब दिल्ली की सत्ता से आम आदमी पार्टी बाहर हो गई है। अब बिहार उनका नया ठिकाना बना है। अब कितना प्रभाव पड़ता है, यह तो चुनाव परिणाम पर निर्भर करता हे।