परिवारवाद पर PDA पड़ा भारी
जिस पीडीए के दम पर सपा ने एक साल पहले लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल की थी। वही पीडीए दांव इस उपचुनाव में भाजपा ने अपनाया। सपा ने फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाया था, जबकि भाजपा ने पीडीए प्रत्याशी चंद्रभानु पासवान पर दांव लगाया। चंद्रभानु ने उन दलित वोटरों में सेंध लगाने में कामयाबी हासिल की जो लोकसभा चुनाव में सपा संग चले गए थे।
योगी के नेतृत्व का दिखा असर
उपचुनाव का ऐलान होने से पहले ही सीएम योगी ने इस सीट की कमान संभाल ली थी। उन्होंने मिल्कीपुर और अयोध्या के कई दौरे किए। उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी के लिए जनसभा भी की और पूरे चुनावी माहौल को बदल दिया। इसके साथ ही प्रदेश सरकार के छह मंत्रियों को जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई। मंत्रियों के साथ ही दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने भी कई दौरे किए।
यह जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में डबल इंजन सरकार की लोक कल्याणकारी नीतियों एवं सेवा, सुरक्षा और सुशासन को समर्पित यूपी सरकार के प्रति आमजन के अटूट विश्वास का प्रतीक है।
-योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री
सपा के लिए खतरे की घंटी
यह पहला मौका नहीं है जब भाजपा ने सपा के गढ़ वाली सीटों पर जीत हासिल की हो। इससे पहले नवंबर में नौ सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने सात सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा के खाते में सिर्फ दो सीटें गई थीं। लोकसभा चुनाव में मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में सपा ने बढ़त हासिल की थी, लेकिन इतनी जल्दी सपा के कोर वोटों, गैर-ओबीसी वोटों का छिटकना पार्टी के लिए खतरे की घंटी है।
कांग्रेस की दूरी भी एक फैक्टर
यूपी में सपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन है। बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी का कोई बड़ा नेता सपा के समर्थन में चुनाव प्रचार के लिए नहीं गया। सिर्फ इक्का-दुक्का नेता ही मिल्कीपुर में नजर आए। ऐसे में सपा गठबंधन मजबूती से चुनाव नहीं लड़ा और बीजेपी के ताकत के सामने बेहद कमजोर साबित हुआ।