वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब आम बजट पेश करने संसद पहुंचीं, तो उनकी साड़ी ने ही बिहार के लिए घोषणाओं की बारिश के संकेत दे दिए.
दरअसल, निर्मला सीतारमण ने मिथिला पेंटिंग वाली साड़ी पहनी थी. कुछ माह पहले जब वह बिहार आई थीं, तब पद्मश्री दुलारी देवी ने उन्हें ये साड़ी तोहफ़े में दी थी.
बिहार म्यूजियम के अतिरिक्त निदेशक अशोक कुमार सिन्हा इस साड़ी के बारे में कहते हैं, “ये भागलपुरी सिल्क पर बनी साड़ी है, जिसमें मिथिला की कचनी स्टाइल का इस्तेमाल किया गया है. कचनी स्टाइल में लकीरों का इस्तेमाल ज्यादा होता है, इसलिए यह ज्यादा गरिमामय लगती है. दुलारी जी इस शैली में माहिर हैं.”
हालांकि, बिहार की झलक सीतारमण की साड़ी तक ही सीमित नहीं थी बल्कि उनके भाषण में भी कई बार बिहार का ज़िक्र आया. बिहार में इस साल अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं.
बिहार को क्या मिला?
सबसे पहले नज़र डालते हैं कि इस बजट में बिहार के लिए कौन-कौन सी घोषणाएं की गई हैं:
1. मखाना के उत्पादन, प्रोसेसिंग, कीमतों और मार्केटिंग के लिए मखाना बोर्ड का गठन किया जाएगा.
2. बिहार में राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान की स्थापना होगी.
3. आईआईटी पटना में हॉस्टल और बुनियादी ढांचे का विस्तार किया जाएगा.
4. पटना एयरपोर्ट का विस्तार किया जाएगा और बिहटा में एक ब्राउनफील्ड एयरपोर्ट की स्थापना होगी. ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों की सुविधा विकसित की जाएगी.
5. मिथिलांचल में पश्चिमी कोसी नहर परियोजना के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी, जिससे 50,000 हेक्टेयर से अधिक ज़मीन पर खेती करने वाले किसानों को लाभ मिलेगा.
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मखाना बोर्ड बनने से क्या होगा?
अपने बजटीय भाषण में निर्मला सीतारमण ने बिहार का नाम कई बार लिया.
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर विद्यार्थी विकास इसे पॉपुलर पॉलिटिक्स का हिस्सा मानते हैं. वो बजट में बिहार पर हुई घोषणाओं को ‘छलावा’ कहते हैं.
विद्यार्थी विकास कहते हैं, “इस बजट से बिहार के लोगों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आने वाला. कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य पर कोई निवेश नहीं है. आईआईटी का विस्तार एक रेग्युलर प्रक्रिया है. मखाना किसानों को जीआई टैग मिला, लेकिन इसका फायदा किसानों को नहीं मिला. ऐसे में मखाना बोर्ड बनने से क्या होगा?”
वह कहते हैं, “परिवर्तन तो तब होता जब हमें स्पेशल पैकेज मिलता. केंद्र प्रायोजित योजनाओं में जो 60:40 का अनुपात है, उसे 80:20 कर दिया जाता. अभी तो हम लेबर बास्केट हैं और वही बने रहेंगे. बाकी बिहार का बार-बार नाम लेना तो पॉपुलर पॉलिटिक्स का हिस्सा है. सेंटीमेंट्स को उभारना है.”
विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं?
बिहार चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष पीके अग्रवाल कहते हैं, “ये हम लोगों की उम्मीद से अच्छा बजट है. बिहार को इस बजट में बहुत कुछ मिला है. हमारा राज्य एक नेचुरल या आर्टिफिशियल सपोर्ट वाला स्टेट नहीं है. इसे बाहर से सपोर्ट की जरूरत है. ऐसे में जो अब मिला, वो हमें बहुत पहले मिलना चाहिए था.”
पीके अग्रवाल कहते हैं, “सरकार ने टैक्स रिबेट देकर सभी को राहत दी है, एमएसएमई में क्रेडिट गारंटी कवर को बढ़ाकर बिजनेस आसान कर दिया है. ये छोटे उद्यमियों को मिली बड़ी सौगात है, जिसकी मांग हम लोग लंबे समय से कर रहे थे.”
क्या बिहार के लिए घोषणाएं आगामी विधानसभा चुनाव से ताल्लुक रखती हैं?
इस सवाल पर पीके अग्रवाल इनकार करते हैं. वह कहते हैं, “1952 से ही भाड़ा समानीकरण की नीति की वजह से बिहार का बहुत नुकसान हो चुका है. अब नहीं मिलेगा तो कब मिलेगा?”
भाड़ा समानीकरण नीति के तहत देश के किसी भी हिस्से में लौह अयस्क, लोहा या किसी दूसरे खनिजों की ढुलाई का खर्च एक समान किया गया है.
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
बजट में बिहार को लेकर हुई घोषणाओं पर अलग अलग राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आई हैं.
राज्य के कृषि मंत्री मंगल पांडेय ने कहा, ” मखाना बोर्ड के गठन का एलान ऐतिहासिक है. इससे हमारे मखाना किसानों को मदद मिलेगी.”
वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने कहा, “बजट में बिहार का ख़याल रखा गया है. बजट में बिहार के लिए उड़ान योजना के तहत एयरपोर्ट शुरू करने, मेडिकल कॉलेज और एक्सप्रेसवे बनाने की चर्चा है. बिहार के विकास के लिए केंद्र सरकार हर तरह से मदद कर रही हैं.”
वहीं जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन ने बीबीसी से कहा, “बिहार की 14 करोड़ आबादी की अपेक्षाओं पर खरा उतरा है. बिहार को जहां सौगातें मिली हैं, वहीं हर वर्ग का ख्याल रखा गया है. ये एक संतुलित बजट है.”
वहीं प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा, “बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. पिछले बजट को ही फिर से दोहरा दिया गया है. ये बजट गांव और गरीब विरोधी है. हम लोग कैबिनेट में थे तभी बिहटा में अतिरिक्त ज़मीन एयरपोर्ट अथॉरिटी को दे दिया था लेकिन अभी तक उस पर काम शुरू नहीं हुआ.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित