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दिल्ली विधानसभा में राज्य की पिछली सरकार की शराब नीति से जुड़ी कैग (सीएजी) की रिपोर्ट पेश की गई है. राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद यह रिपोर्ट सदन में पेश की गई है.
यह रिपोर्ट दिल्ली की उसी शराब नीति से जुड़ी हुई है, जिसमें हुए कथित घोटाले के आरोप में आम आदमी पार्टी की पिछली सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को जेल भी जाना पड़ा था.
जहां सीएजी की रिपोर्ट पेश होने के बाद आम आदमी पार्टी दिल्ली की पूर्व कांग्रेस सरकार की शराब नीति को राजस्व में नुक़सान के लिए दोषी ठहरा रही है तो वहीं बीजेपी एक बार फिर से राज्य की पिछली आप सरकार को घेर रही है.
सीएजी के मुताबिक़ दिल्ली को आबकारी विभाग से मिलने वाले कर राजस्व का एक बड़ा हिस्सा हासिल होता है, जो कुल टैक्स रेवेन्यू का क़रीब 14% है .
दिल्ली में शराब की सप्लाई और इसकी बिक्री में कई स्तर पर लोग शामिल होते हैं. इसकी शुरुआत शराब बनाने वाले से होती है, जो दिल्ली के बाहर हैं.
वहां से शराब दिल्ली के थोक विक्रेताओं के पास आती है. इसके बाद शराब अलग-अलग कॉरपोरेशन वेंडर्स, निजी वेंडर्स, होटल, क्लब और रेस्तरां के ज़रिए उपभोक्ताओं तक पहुंचती है.
दिल्ली को शराब से एक्साइज़ ड्यूटी, लाइसेंस फ़ी, परमिट फ़ी, आयात-निर्यात शुल्क वगैरह के तौर पर राजस्व मिलता है.
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा है?
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सीएजी की जिस रिपोर्ट को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हंगामा मचा हुआ है वह साल 2017-18 से 2020-21 के बीच का लेखा-जोखा है. इसी दौरान नवंबर 2021 के बाद दिल्ली में शराब नीति में बदलाव किए गए थे, जिसे 1 सितंबर 2022 को वापस ले लिया गया था.
सीएजी ने अपने ऑडिट में दिल्ली में एक्साइज़ विभाग के अधीन शराब की सप्लाई में कई अनियमितताओं के बारे बताया है.
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में एक्साइज़ विभाग के कामकाज पर कई सवाल भी खड़े किए हैं और इससे क़रीब 2027 करोड़ रुपये के नुक़सान का अनुमान लगाया है.
दिल्ली में शराब नीति का मुद्दा लंबे समय से एक राजनीतिक मुद्दा रहा है और इस पर बीजेपी ने उस वक़्त की आम आदमी पार्टी की सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे.
इस मामले की प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी और सीबीआई ने भी जांच की है और आप के कई नेताओं को गिरफ़्तार भी किया गया था.
हालांकि आम आदमी पार्टी लगातार किसी भी भ्रष्टाचार से इनकार करती रही है.
दिल्ली की पुरानी शराब नीति से जुड़े मुद्दे
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सीएजी ने अपनी इस रिपोर्ट में साल 2017 से 21 के बीच दिल्ली की पुरानी शराब नीति से जुड़े कई नियमों के उल्लंघन की बात की है. इसमें आबकारी विभाग की तरफ से लाइसेंस देने में नियमों के उल्लंघन के बारे में बताया गया है.
आबकारी विभाग शराब के थोक विक्रेताओं से लेकर खुदरा विक्रेता, होटल, क्लब और रेस्तरां इत्यादि को ज़रूरी शर्तों को पूरा करने के बाद उस साल के लिए लाइसेंस देता है.
सीएजी ने अपने ऑडिट में पाया है कि इस प्रक्रिया में दिल्ली एक्साइज़ रूल- 35 का पालन नहीं किया गया, जो कई तरह के लाइसेंस जारी करने पर पाबंदी लगाता है.
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक्साइज़ डिपार्टमेंट इस दौरान ज़रूरी नियम और शर्तों की जांच के बिना ही लाइसेंस जारी कर रहा था.
सीएजी ने शराब की कीमतों को तय करने में पारदर्शिता की कमी, शराब की क्वालिटी कंट्रोल में कमी की तरफ भी अपनी रिपोर्ट में इशारा किया है.
इस रिपोर्ट में कमज़ोर रेग्यूलेटरी फंक्शनिंग, एनफ़ोर्समेंट एजेंसी के काम में खामियां भी गिनाई हैं.
सीएजी की नज़र में दिल्ली की नई शराब नीति
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सीएजी के मुताबिक़ साल 2021-22 की नई शराब नीति को शराब के कारोबार में मनमानी रोकने, दिल्ली के सभी इलाकों में शराब की सप्लाई को पुख्ता करने, कारोबार में पारदर्शिता लाने जैसे मक़सद से तैयार किया गया था.
सीएजी ने कहा है कि दिल्ली की नई शराब नीति बनाने में इसके लिए बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी के सुझावों को अनदेखा कर दिया गया.
इस नीति में दिल्ली में शराब के थोक व्यापार का लाइसेंस सरकारी थोक विक्रेताओं की जगह निजी विक्रेताओं को दे किया गया. इन नीति में शराब बेचने वालों को 2 की जगह शराब बिक्री केंद्र के अधिकतम 54 लाइसेंस दिए गए.
सीएजी की कहना है कि दिल्ली में नई शराब नीति बनाने के पीछे एक मक़सद मनमानी या कार्टेल पर रोक लगाना था, लेकिन हुआ उलट. इस नीति ने दिल्ली में कुल लाइसेंसधारियों की संख्या सीमित कर दी.
सीएजी ने बताया है कि नई नीति की वजह से कई लाइसेंसधारियों ने समय से पहले अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिए. इस तरह की खामियों की वजह से सरकार को 890 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ.
इसके अलावा नई नीति के तहत ज़ोनल लाइसेंसधारियों को जो छूट दी जानी थी, उससे क़रीब 941 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ.
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि नई शराब नीति के टेंडर के दस्तावेजों में व्यवसायिक जोखिम से जुड़ी जो शर्त रखी गई थी, उस पर ध्यान नहीं दिया गया और कोविड-19 की पाबंदियों के आधार पर ज़ोनल लाइसेंसधारकों के 144 करोड़ रुपये लाइसेंस फ़ी माफ़ कर दिए गए.
इसके साथ ही सेक्यूरिटी डिपॉज़िट को जमा कराने में ग़लतियों की वजह से 27 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ.
इस तरह से सीएजी ने नई शराब नीति की वजह से राज्य सरकार को कुल क़रीब 2002 करोड़ रुपये के नुक़सान का आकलन किया है.
सीएजी की रिपोर्ट के बाद गर्म हुई राजनीति
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मंगलवार को दिल्ली विधानसभा में राज्य की नई मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सीएजी की रिपोर्ट पेश की.
दिल्ली शराब नीति से जुड़ी सीएजी की रिपोर्ट राज्य विधानसभा में पेश किए जाने के समय विधानसभा के अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने कहा, “यह जानकर हैरानी हो रही है कि साल 2017-18 के बाद सदन में सीएजी की रिपोर्ट रखी ही नहीं गई है.”
इस रिपोर्ट के पेश होने के बाद दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष आतिशी ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेस में कहा, “सीएजी की जो रिपोर्ट पेश की गई है उसमें आठ अध्याय हैं और इसके पहले 7 अध्याय दिल्ली की पुरानी शराब नीति पर हैं.”
“मैं यह कहना चाहती हूं कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने दिल्ली की पुरानी शराब नीति में भ्रष्टाचार की बात लगातार की थी, जिसपर सीएजी ने अपनी मोहर लगा दी है.”
आतिशी ने सीएजी की रिपोर्ट में पाए गए क़रीब 2000 करोड़े रुपये के नुक़सान का आरोप दिल्ली के एलजी, सीबीआई और ईडी पर लगाया है.
प्रवेश वर्मा ने कहा, “इनके जितने भी भ्रष्टाचार थे, चाहे वो शीश महल था, चाहे वो जल बोर्ड का घोटाला था, चाहे वो क्लासरूम का घोटाला था, चाहे वो स्कूलों का घोटाला था, जो भी इनके घोटाले थे सारे घोटाले सामने आएंगे.”
दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा, “सीएजी की रिपोर्ट में एक-एक सच लिखा हुआ है कि कैसे इन्होंने अपने लोगों को शराब के ठेके दिए, शराब का कमीशन बढ़ाया, यह रिपोर्ट पहले ही विधानसभा में सामने आ जानी चाहिए थी. अभी तो जनता की अदालत में न्याय हुआ है, क़ानून की अदालत में भी न्याय होगा ये हम सुनिश्ति करेंगे.
इस मुद्दे पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा है, “यह लोगों के लिए नहीं बल्कि राजनीति के लिए किया गया है. अगर सीएजी की ऐसी रिपोर्ट है तो इसकी जांच होनी चाहिए, लेकिन इस पर जिस तरह की राजनीति हो रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित