मचैल यात्रियों तक सुविधाएं पहुंचाने की होड़ में मौत करीब आई है। पहले यात्री 40 किलोमीटर पैदल चलते थे। अब केवल साढ़े आठ किलोमीटर का पैदल ट्रैक रह गया है। सड़क बनाने की होड़ में पहाड़ों में विस्फोट किए गए। पेड़ों को काटा गया। इससे जलवायु परिवर्तन हुआ। नतीजा यह हुआ कि कम समय में ज्यादा बारिश हो रही है। बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं।
Trending Videos
2 of 4
किश्तवाड़ में बादल फटने से भारी तबाही
– फोटो : PTI
मचैल यात्रा का पूरा क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील
क्लस्टर यूनिवर्सिटी जम्मू की को-ऑर्डिनेटर सुगंधा महाजन के अनुसार मचैल यात्रा का पूरा क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद संवेदनशील है। ग्लेशियरों का पिघलना बढ़ गया है। पहाड़ों में विस्फोट से इनकी सहनशक्ति बेहद कम हो गई है। इसीलिए पूरे रूट पर जगह-जगह मलबा गिरता रहता है।
3 of 4
किश्तवाड़ में बादल फटने से भारी तबाही
– फोटो : PTI/ANI
बड़ी संख्या में लोग लंगर में जुटे
पहले चिशौती नाले के किनारे बहुत कम घर बने थे। लोग वहां भोजन आदि कर आगे निकल जाते थे। जैसे-जैसे धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिला, यात्रियों की सुविधा के लिए वहां कई ढांचे खड़े हो गए। वॉशरूम, रेस्टरूम जैसी व्यवस्थाएं हो गईं। लंगर लगाए जाने लगे। वीरवार को बादल फटने के हादसे में अधिक जान जाने का कारण यह भी रहा कि वहां बड़ी संख्या में लोग लंगर के लिए जुटे थे।
4 of 4
किश्तवाड़ में बादल फटने से भारी तबाही
– फोटो : अमर उजाला
20 साल में बदल गई बसावट
लंबे समय से किश्तवाड़ क्षेत्र में शोध कर रहे जम्मू विश्वविद्यालय के डॉ. युद्धबीर भी यही मानते हैं। उनका कहना है कि वर्ष 2004 से लेकर अब तक करीब 20 साल के अरसे में किश्तवाड़ का पूरी बसावट बदल गई है। पर्यटकों के बढ़ने से होटल, रेस्टरूम वगैरह बन गए हैं। इनमें बहुत से अनियोजित हैं। विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति की जरूरत को नजरअंदाज कर दिया गया है। हर तरफ बेतरतीब निर्माण हो रहा है, जो जलवायु में बदलाव का सबसे बड़ा कारण है। बेशक यात्रा जरूरी है, लेकिन प्रकृति को नष्ट करके ऐसा किया जाना ठीक नहीं।