विजय दशमी के दिन दशानन मंदिर के कपाट खोले जाते है। रावण की प्रतिमा को दूध और पानी से नहलाया जाता है। दशानन का श्रंगार किया जाता है, और पूरे मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। दशानन की पूरे विधी विधान से आरती की जाती है। रवान के दर्शन के लिए कानपुर ही नहीं आसपास के जिलों से भी आते हैं
अलौकिक ऊर्जा का संचार
इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालू दर्शन करने के लिए आते है, और पूजापाठ करते है। श्रद्धालू सरसों के तेल के दीपक जलाते है। विद्धानों का मानना है कि रावण प्रकांड ज्ञानी था, दशानन चारों वेदों का ज्ञाता था। उसके दर्शन मात्र से सकारात्मक-अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है, बुद्धि और विवेक का विकास होता है।
शिव के परम भक्त का मंदिर
उन्नाव मे रहने गुरूप्रसाद शुक्ल भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त थे। गुरूप्रसाद शुक्ल प्रतिदिन उन्नाव से शिवाला मंदिर दर्शन के लिए आते थे। गुरूप्रसाद का मानना था कि शिवाला भगवान शिव का पावन स्थान है, ऐसे में यह स्थान भगवान शिव के सबसे बडे़ भक्त के बिना अधूरा है। दशानन जैसी भगवान शिव की अराधना कोई नहीं कर सकता है। गुरूप्रसाद शुक्ल ने 1868 में दशानन मंदिर का निर्माण कराया था।
जन्म और मृत्यु से जुड़ा इतिहास
पुजारी ने बताया कि प्रकांड पंडित रावण का जन्म विजय शुक्ल दशमी को हुआ था और उसकी मृत्यु भी विजय शुक्ल दशमी को हुई थी । विजय दशमी की सुबह दशानन मंदिर के पट खोलकर जन्मोत्सव मनाते है। इसके साथ ही सूर्यअस्त की अंतिम किरण के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते है।