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दिल्ली विधानसभा के चुनाव की मतगणना आठ फ़रवरी, शनिवार को सुबह से शुरू हो जाएगी. यहां पांच फ़रवरी को एक चरण में मतदान संपन्न हुआ था.
ज़्यादातर एग्ज़िट पोल में बीजेपी को भारी बहुमत मिलने का अनुमान लगाया गया है जबकि सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने का अनुमान लगाया है.
दिल्ली में मतदान प्रतिशत में इस बार कमी आई है. साल 2013 में मतदान 66 प्रतिशत था, 2015 में 67% और 2020 में 63% जबकि इस बार 60.4% रहा.
दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 12 आरक्षित हैं और बाकी 58 जनरल सीटें हैं.
दिल्ली में कुल 1.55 करोड़ मतदाता हैं. इनमें से 83.49 लाख पुरुष और 71.74 लाख महिला वोटर हैं. दिल्ली में पहली बार वोट करने वाले मतदाताओं की संख्या दो लाख है. वहीं, राजधानी में 13 हज़ार से अधिक पोलिंग बूथ हैं.
लोकसभा चुनाव में जहां कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, वहीं अब वो एक-दूसरे के सामने हैं और एग्ज़िट पोल के अनुमानों में इस बार कांग्रेस का खाता खुलने की बात कही गई है.
चुनाव से ठीक पहले आतिशी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया गया था और केजरीवाल अपने ऊपर लगे ‘भ्रष्टाचार के आरोपों को ग़लत साबित’ करने के लिए जनता के बीच गए.
एग्ज़िट पोल में किसके आने का अनुमान
बुधवार को मतदान ख़त्म होने के बाद जो एग्ज़िट पोल जारी किए गए थे, लगभग सभी में बीजेपी को आम आदमी पार्टी पर भारी बढ़त दिखाई गई थी.
बुधवार को जारी 11 में से 8 एग्ज़िट पोल में भारतीय जनता पार्टी को बढ़त मिलती दिखाई गई और सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के बारे में दूसरे बड़े दल के रूप में सामने आने का अनुमान लगाया गया था.
इसके बाद गुरुवार को भी दो एजेंसियों ने एक्ज़िट पोल के अनुमान जारी किए. उसमें भी बीजेपी को भारी बढ़त मिलने का अनुमान लगाया गया.
हालांकि आम आदमी पार्टी ने 2013 और 2015 के एक्ज़िट पोल का हवाला देते हुए इन एग्ज़िट पोल के आंकड़ों को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया है.
शुक्रवार को आम आदमी पार्टी की ओर से कहा गया कि उसे कम से कम 50 सीटें मिलने की उम्मीद है.
एग्ज़िट पोल के अनुमानों पर बीजेपी ने कहा है कि आठ फ़रवरी को उसकी सरकार आ रही है. अगर ऐसा होता है तो ढाई दशक बाद बीजेपी को दिल्ली की सत्ता नसीब होगी.
दिल्ली में किसके बीच में मुख्य मुकाबला है?
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दिल्ली में मुख्य मुकाबला आप, बीजेपी और कांग्रेस के बीच माना जा रहा है.
हालांकि आप एक दशक से अधिक समय से दिल्ली की सत्ता पर काबिज है. 2014 में केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी.
इसके बाद से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी उन जगहों पर भी मजबूत हुई, जहां उन्हें एक समय मुकाबले में भी नहीं देखा जाता था, लेकिन दिल्ली में पहले पार्टी लगातार तीन बार शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी और फिर आम आदमी पार्टी की सरकार लगातार सत्ता में है.
कांग्रेस ने उस आप का 2013 में साथ दिया था जो उसके ख़िलाफ़ खड़ी हुई थी. इसके बाद से कांग्रेस के वोट में गिरावट आती गई. कांग्रेस के वोट आप के खाते में चले गए क्योंकि बीजेपी के वोट तो 30 फ़ीसदी से अधिक बने हुए हैं.
ऐसे में कांग्रेस को अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने के लिए आप और बीजेपी की चुनौती को पार करना होगा.
पिछले तीन विधानसभा चुनाव में क्या परिणाम रहे?
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साल 2011 में कांग्रेस के नेतृ्त्व वाली यूपीए सरकार के दौरान हुए कथित भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ दिल्ली में आंदोलन हुआ था और इसका मुख्य चेहरा अन्ना हज़ारे थे. अन्ना हज़ारे के साथ इसमें अरविंद केजरीवाल भी शामिल थे और वो खुलकर कांग्रेस की आलोचना करते थे.
कहते हैं ना राजनीति में कोई भी स्थाई दुश्मन और दोस्त नहीं होता. 2013 में अरविंद केजरीवाल की आप विधानसभा चुनाव में उतरी और उसने अपने पहले ही चुनाव में 70 में 28 सीटें जीत ली. कांग्रेस ने चौंकाते हुए आप का साथ दिया और इस तरह अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन गए.
साल 2013 वो आखिरी साल था कि दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 30 से अधिक जीती थी. इसके बाद तो वो दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई.
2013 के बाद आप ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पार्टी ने 2015 और 2020 में अपने दम पर दिल्ली में बहुमत की सरकार बनाई.
साल 2013 में आप ने 28 सीटें जीती और उन्हें 29 फ़ीसदी से अधिक मत मिले. वहीं कांग्रेस का वोट शेयर क़रीब 25 प्रतिशत रहा और उसने 8 सीटें जीती. इसके अलावा बीजेपी के खाते में 30 फ़ीसदी से अधिक वोट गए और उसने 31 सीट पर जीत हासिल की.
हालांकि 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी 2015 में तीन सीट पर सिमट गई. इस बार भी उसका वोट प्रतिशत 30 फ़ीसदी से अधिक बना रहा. वहीं आप ने 67 सीटें जीती और उसे 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले. कांग्रेस वोट प्रतिशत के मामले में दस प्रतिशत के आंकड़े को भी नहीं छू पाई.
साल 2020 में भी आप ने 60 से अधिक सीटें 50 फीसदी से ज्यादा वोट के साथ जीती. बीजेपी के खाते में गई तो आठ सीटें ही, लेकिन उसका वोट 30 प्रतिशत से अधिक बना रहा.
कांग्रेस का 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुला.
लोकसभा चुनाव में क्या हुआ?
2014, 2019 और 2024 तीनों लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में गई. हालांकि बीजेपी के खिलाफ एकजुट हुए विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल कांग्रेस और आप 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़े, लेकिन फिर भी बीजेपी ने सातों सीट जीत ली.
2013 के विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए आप का साथ देने वाली कांग्रेस फिर उसके साथ 2024 के लोकसभा चुनाव में तो आई, लेकिन कुछ ही महीने बाद केजरीवाल ने साफ कर दिया कि हम दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगे.
फिर क्या था कांग्रेस और आप ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतार दिए.
किन सीटों पर रहेगी नज़र?
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पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को नई दिल्ली सीट से कांग्रेस ने चुनावी मैदान में उतारा है. यहां से आप की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे हैं.
केजरीवाल ने 2013 में इस सीट से शीला दीक्षित को चुनाव में हराया था और तब से वो इस सीट से लगातार विधायक हैं.
वहीं दिल्ली की कमान संभाल रहीं आतिशी के ख़िलाफ़ कालकाजी से बीजेपी ने पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को उम्मीदवार बनाया है. इसके अलावा कांग्रेस ने अपनी महिला इकाई की अध्यक्ष अलका लांबा को उम्मीदवार बनाया है.
दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को आप ने इस बार जंगपुरा सीट से चुनावी मैदान में उतारा है. पार्टी ने उनकी जगह अवध ओझा को पटपड़गंज से टिकट दिया है.
इस बार का दिल्ली का चुनाव अलग कैसे हैं?
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आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने सितंबर में इस्तीफ़ा देने का एलान करने हुए कहा कि जब तक जनता उनको इस पद पर बैठने के लिए नहीं कहेगी, तब तक वो फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठेंगे.
आप ने आतिशी को दिल्ली का नया मुख्यमंत्री चुना, लेकिन इस चुनाव में अभी तक पार्टी ने ये नहीं साफ किया कि चुनाव जीतने पर अगला सीएम कौन होगा?
दिल्ली शराब नीति में हुए कथित घोटाले में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जेल गए. दोनों नेता और आप कहती रही है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है.
आप ने कहा कि जनता उनका साथ देगी. हालांकि लोकसभा चुनाव में तो लोगों ने बीजेपी का साथ दिया, लेकिन अब विधानसभा चुनाव में देखना होगा कि लोग किसका साथ देते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.