दिल्ली विधानसभा चुनाव, 2025 से क़रीब 13 साल पहले दो नेता दिल्ली जीतने की तैयारी कर रहे थे. एक बतौर राज्य दिल्ली को जीतना चाहते थे और दूसरे बतौर राजधानी.
सितंबर, 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया. इस घोषणा के तीन महीने बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे.
विधानसभा चुनाव में साल भर पहले बनी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पहली बार लड़ने जा रही थी. जब नतीजे आए तो आम आदमी पार्टी ने सभी को चौंकाते हुए 70 में से 28 सीट जीतीं. बीजेपी ने सबसे ज़्यादा 31 सीट जीतीं लेकिन बहुमत के आंकड़े से पांच सीट कम रह गई.
कांग्रेस के समर्थन से अरविंद केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने. विधानसभा चुनाव के चार महीने बाद लोकसभा चुनाव हुए. बीजेपी को पहली बार स्पष्ट बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने.
नरेंद्र मोदी दिल्ली तो जीत गए लेकिन पिछले दस साल में बीजेपी दिल्ली में सीटों के लिहाज़ से दहाई का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाई.
अब आम आदमी पार्टी लगातार चौथी बार चुनाव जीतने की उम्मीद कर रही है और बीजेपी की नज़र 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापसी पर है.
तीन दशक का इंतज़ार
उत्तर भारत पर एक नज़र डालें तो सभी राज्यों में बीजेपी के लिए दिल्ली सबसे मुश्किल दिखाई पड़ती है. लगभग तीन दशक से बीजेपी दिल्ली की सत्ता से दूर है. इस दौरान बीजेपी ने उत्तर भारत के सभी राज्यों में गठबंधन या फिर अकेले दम पर सरकार बनाई है.
बीजेपी के लिए राजनीतिक नज़रिए से जम्मू-कश्मीर एक बड़ी चुनौती माना जाता है. लेकिन इस सीमावर्ती राज्य में बीजेपी ने साल 2015 में पहली बार जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ मिलकर सरकार बनाई.
साल 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने थे और अमित शाह को बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी दी गई थी. इस जोड़ी को पहली बड़ी सफलता हरियाणा में मिली. 2014 के विधानसभा में बीजेपी ने हरियाणा की 90 में से 47 सीटें जीतीं और पहली बार राज्य में बीजेपी की बहुमत वाली सरकार बनी.
नरेंद्र-मोदी अमित शाह की जोड़ी साल 2015 में पहली बार दिल्ली चुनाव लड़ी और 32 फ़ीसद वोट के साथ सिर्फ़ तीन सीट पर सिमट गई. 2013 के चुनाव में सीट का आंकड़ा 31 था. 2020 के चुनाव में बीजेपी की सीटों की संख्या बढ़कर आठ हुई.
राजनीतिक विश्लेषक आशुतोष कहते हैं, “27 साल के बाद भी अगर भारतीय जनता पार्टी चुनाव नहीं जीत पाई तो फिर आप समझ सकते हैं कि भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश इकाई पर कितने गंभीर सवाल खड़े होंगे. प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की रणनीति पर भी गहरे सवाल खड़े होंगे कि उनके नेतृत्व के बावजूद बीजेपी दिल्ली में जीत नहीं पा रही है. इसलिए बीजेपी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इस चुनाव में कम से कम एक सम्मानजनक स्थिति में पहुंचे.”
आख़िर बीजेपी और दिल्ली के बीच की दूरी कम क्यों नहीं हो रही है?
इस सवाल पर राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर अभय कुमार दुबे कहते हैं कि दिल्ली बीजेपी इकाई कुछ संगठनात्मक समस्याओं से जूझ रही है और बीते कुछ दशकों में दिल्ली की आबादी में जो परिवर्तन हुआ है बीजेपी उसे अब तक समझ नहीं पाई है.
अभय दुबे ने बीबीसी को बताया, “पूर्वांचली वोटर बढ़े हैं और अमीर-ग़रीब के बीच एक खाई बन गई है. इस तरह की दिल्ली का नेतृत्व करने के लिए बीजेपी अभी तैयार नहीं है इसलिए हारती है. दिल्ली की प्रदेश यूनिट में विभाजन के बाद आया पंजाबी-व्यापारी वर्ग हावी है. ऊपर से भले ही सतीश उपाध्याय या मनोज तिवारी का चेहरा हो लेकिन निर्णय की बागडोर उन्हीं लोगों के पास होती है.”
हालांकि, पिछले तीन लोकसभा चुनाव में बीजेपी दिल्ली की सातों सीट जीत रही है.
दिल्ली में बीजेपी ने बदली रणनीति
पिछले साल जेल से बाहर आने के बाद नवंबर में अरविंद केजरीवाल ने ‘रेवड़ी पर चर्चा’ अभियान की शुरुआत की थी. केजरीवाल के इस कैंपेन को प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर कटाक्ष की तरह देखा गया क्योंकि साल 2022 में मोदी ने अरविंद केजरीवाल को ‘रेवड़ी कल्चर’ से जोड़ा था.
बीजेपी के नेता चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल की मुफ़्त वाली योजनाओं की आलोचना करते थे लेकिन चुनाव के दौरान बीजेपी नेताओं की तरफ़ से कहा गया कि वो दिल्ली की सभी जन-कल्याण योजनाओं को जारी रखेंगे.
बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में महिलाओं को 2500 रुपए का मासिक भत्ता, 10 लाख रुपए तक का मुफ़्त इलाज, गिग वर्कर्स और टेक्सटाइल वर्कर्स को 10-10 लाख का जीवन बीमा और एससी-एसटी छात्रों को प्रति माह एक हज़ार रुपए आर्थिक मदद देने की बात कही.
2020 की तुलना में इस बार का घोषणापत्र काफ़ी अलग है. इस बार बीजेपी ने सीधे लाभ देने पर ज़्यादा फोक़स किया है.
बीजेपी के घोषणापत्र पर अरविंद केजरीवाल ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि मुफ्त में चीजें देने के लिए मेरी आलोचना करना गलत था.”
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी अपने दम पर बहुमत से चूक गई थी. पार्टी ने हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत के बाद अपना आत्मविश्वास पाया है लेकिन केजरीवाल से दिल्ली को छीनना अब तक चुनौती बना हुआ है.
अभय कुमार दुबे कहते हैं, “लोकसभा में बीजेपी ने जो बहुमत खोया, उसके बाद वो विधानसभा चुनाव जीतकर ही अपनी रुतबा क़ायम कर सकती है. लोकसभा चुनाव तो पांच साल बाद आयेगा. दिल्ली का चुनाव इसलिए भी जीतना महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां वो पिछले 31 साल से नहीं जीत पा रहे हैं. अगर इस बार भी नहीं जीते तो लगातार सातवां चुनाव हार जाएंगे.”
टैक्स में राहत और आठवें वेतन आयोग की घोषणा
जनवरी में आम आदमी पार्टी ने मध्यम वर्ग का घोषणापत्र जारी किया था. इसमें केंद्र सरकार से शिक्षा, स्वास्थ्य का बजट बढ़ाने से लेकर आयकर छूट की सीमा को बढ़ाने की मांग रखी गई थी. आप की मांग थी कि टैक्स स्लैब की लिमिट सात लाख से बढ़ाकर 10 लाख की जाए.
एक फ़रवरी को जब बजट आया तो केंद्र की मोदी सरकार ने आयकर छूट की सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपए तक कर दिया. बीजेपी ने इसे मुद्दा बनाते हुए अख़बारों में विज्ञापन दिए और दिल्ली चुनाव में बीजेपी को वोट देने की अपील की.
हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आयकर में छूट की सीमा का दिल्ली चुनाव से कनेक्शन वाली बात को सिरे से ख़ारिज कर दिया था.
इससे पहले केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की थी. दिसंबर में केंद्र सरकार ने संसद में कहा था कि बजट से पहले सरकार की तरफ़ से आठवें वेतन आयोग की घोषणा नहीं होगी.
केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को राजनीतिक विश्लेषकों ने दिल्ली चुनाव से भी जोड़कर देखा क्योंकि दिल्ली में अच्छी-ख़ासी संख्या में केंद्रीय कर्मचारी और पेंशनधारक रहते हैं.
बड़े चेहरों की साख दांव पर
पिछले साल जब लोकसभा चुनाव हुए तो बीजेपी ने अपने सात में से छह सांसदों का टिकट काट दिया था. इन छह में से दो सांसद- रमेश बिधूड़ी और प्रवेश वर्मा को बीजेपी ने दिल्ली चुनाव में उतारा है.
रमेश बिधूड़ी कालकाजी सीट से मुख्यमंत्री आतिशी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे हैं. प्रवेश वर्मा नई दिल्ली सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चुनौती दे रहे हैं.
आरक्षित सीट करोल बाग से बीजेपी ने राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद दुष्यंत कुमार गौतम को टिकट दिया है. 2008 के चुनाव तक यह सीट बीजेपी का गढ़ मानी जाती थी लेकिन 2013 से यहां आम आदमी पार्टी जीत रही है.
इनके अलावा बीजेपी कपिल मिश्रा और पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना के बेटे हरीश खुराना को चुनाव लड़वा रही है. दोनों बीजेपी की प्रदेश इकाई के बड़े चेहरे हैं. कपिल मिश्रा दंगा प्रभावित करावल नगर सीट और हरीश खुराना मोती नगर से दावेदारी पेश कर रहे हैं.
कपिल मिश्रा को करावल नगर से टिकट मिलने पर इस सीट से मौजूदा विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने बगावत कर दी थी. फिर बीजेपी ने आनन-फानन में मोहन सिंह को मुस्तफ़ाबाद से टिकट दिया था.
बीजेपी ने सामान्य सीटों पर आरक्षित उम्मीदवार उतारने का दांव भी खेला है. पार्टी ने दीप्ति इंदौरा को मटिया महल और कमल बागड़ी को बल्लीमारान से चुनावी मैदान में उतारा है. दोनों सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं और इन सीटों पर बीजेपी आज तक कमल नहीं खिला पाई.
दिल्ली जीतने के लिए बीजेपी ने अपनी पारंपरिक रणनीति के ख़िलाफ़ जाकर दलबदलू नेताओं से को भी खुलकर टिकट दिए. पार्टी ने दूसरे दलों से आने वाले अरविंदर सिंह लवली, कैलाश गहलोत, तरविंदर सिंह मारवाह, राज कुमार आनंद, नीरज बसोया और राज कुमार चौहान सरीखे नेताओं को उम्मीदवार बनाया है.
पार्टी ने पहली लिस्ट में 29 उम्मीदवारों के नाम जारी किए थे. इसमें कम से कम आठ प्रत्याशी दूसरे दलों से बीजेपी में आए थे.
केजरीवाल के लिए दिल्ली कितनी ज़रूरी?
अरविंद केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन के ज़रिए राष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के सहारे केजरीवाल ने राजनीति की सीढ़ी चढ़ी और 2012 के अंत में आम आदमी पार्टी की नींव रखी.
2013 में मोदी प्रधानमंत्री के लिए बीजेपी उम्मीदवार बन देश घूम रहे थे और ठीक इसी समय केजरीवाल दिल्ली की गलियों में प्रचार कर रहे थे. दिल्ली में ही केजरीवाल को पहली सफलता मिली जब उन्होंने 70 में से 13 सीटें जीती थीं. उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई जो महज 49 दिन चल पाई.
इसके बाद केजरीवाल ने राष्ट्रीय स्तर नरेंद्र मोदी का मुक़ाबला करने की ठानी. वह ख़ुद वाराणसी से मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़े लेकिन बीजेपी के सामने आप कहीं भी मुक़ाबले में नहीं दिखी.
वापस केजरीवाल दिल्ली आए और विधानसभा चुनाव पर फ़ोकस करने लगे. एक साल के भीतर ही केजरीवाल ने विधानसभा में पीएम मोदी को पटखनी दे दी. तब से राष्ट्रीय स्तर पर केजरीवाल की पहचान एक अपराजेय मुख्यमंत्री की है.
आशुतोष कहते हैं, “केजरीवाल के लिए दिल्ली चुनाव अस्तित्व की लड़ाई है. आप अभी तक सिर्फ़ दो राज्यों की पार्टी है और दिल्ली उसका केंद्र बिंदु है इसलिए उसे यहां चुनाव जीतना है.”
दिल्ली से शुरू हुई पार्टी ने पंजाब में 117 सीटों में 92 सीटें जीतकर इतिहास रचा और सरकार बनाई. पार्टी ने गुजरात समेत दूसरे राज्यों में मौजूदगी दर्ज कराई है और 12 साल के अंदर राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त पार्टियों में से एक पार्टी बन गई है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.