साल 2011 से 2013 के बीच, दिल्ली की सड़कों पर इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन ने एक नया राजनीतिक परिदृश्य रचा.
इस आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी (आप) ने राजनीति में हलचल मचाई और इसके नेता अरविंद केजरीवाल ने अपनी साधारण कद-काठी और पहनावे को अपनी पहचान के रूप में पेश किया.
केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतीं, जिससे राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई. यह सफलता भारतीय जनता पार्टी के 2014 के लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ के तहत जीतने के कुछ ही महीनों बाद आई थी.
आम आदमी पार्टी ने मोहल्ला क्लिनिक, विश्वस्तरीय स्कूल, मुफ़्त बिजली और मुफ़्त पानी जैसी योजनाओं के माध्यम से एक मज़बूत वोट बैंक तैयार किया.
इसके बाद, 2020 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने फिर से ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 62 सीटें जीतीं. उसके कुछ ही महीने पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर भाजपा ने दिल्ली में सातों लोकसभा सीटें जीत ली थीं.
2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत दर्ज की. इसके बावजूद, आम आदमी पार्टी का विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने का सपना अधूरा रह गया.
पार्टी को इस बार पिछले चुनावों की तुलना में लगभग 40 सीटों का नुक़सान हुआ है और 27 साल बाद दिल्ली विधानसभा में पहली बार बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिला है. वहीं कांग्रेस लगातार तीसरी बार दिल्ली में अपना खाता नहीं खोल सकी.
अब सवाल यह उठता है कि अरविंद केजरीवाल से क्या ग़लतियाँ हुईं? उनका राजनीतिक भविष्य क्या हो सकता है? क्या मध्यम वर्ग ने इस बार बीजेपी के पक्ष में रुख़ किया?
महिलाओं और दलितों ने इस चुनाव में किसे समर्थन दिया? क्या बीजेपी मुख्यमंत्री पद के लिए नया चेहरा पेश कर सकती है? और इन परिणामों का कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के लिए क्या मतलब है?
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बीबीसी हिन्दी के साप्ताहिक कार्यक्रम, ‘द लेंस’ में कलेक्टिव न्यूज़रूम के डायरेक्टर ऑफ़ जर्नलिज़्म मुकेश शर्मा ने इन्हीं सब मुद्दों पर चर्चा की.
इन सवालों पर चर्चा के लिए द ट्रिब्यून की असोसिएट एडिटर अदिति टंडन, इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ओपिनियन एडिटर वंदिता मिश्रा, सी-वोटर के संस्थापक और निदेशक यशवंत देशमुख और बीबीसी हिंदी के संवाददाता अभिनव गोयल शामिल हुए.
केजरीवाल की बड़ी ग़लतियां कौन सी थीं?
दिल्ली विधानसभा चुनाव में न केवल आम आदमी पार्टी को बड़ी हार मिली बल्कि ख़ुद पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी अपनी नई दिल्ली विधानसभा सीट नहीं बचा पाए.
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी को कुल 22 सीटें मिलीं, जो 2020 में हुए विधानसभा चुनाव की तुलना में 40 सीटें कम हैं.
एक समय था जब केजरीवाल की पार्टी ने अपनी जीत से सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया था, लेकिन अब वही पार्टी को इतनी बुरी हार का सामना करना पड़ा है.
ऐसे में सवाल उठता है कि पार्टी ने वो कौन सी ग़लतियां की हैं जिसके कारण उन्हें ये हार झेलनी पड़ी.
द ट्रिब्यून की असोसिएट एडिटर अदिति टंडन ने अरविंद केजरीवाल की हार के कारणों पर चर्चा करते हुए कहा, “केजरीवाल की सबसे बड़ी ग़लती यह थी कि जो राजनीतिक धारणा आम आदमी पार्टी लेकर चली थी, वह छोड़ते हुए नज़र आए.”
उन्होंने बताया कि “काम की राजनीति और कट्टर ईमानदार पार्टी, ये उनकी पहचान थी, लेकिन बीजेपी इस धारणा के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में सफल रही.”
अदिति टंडन के मुताबिक़, “केजरीवाल ने इस चुनाव में अपनी काबिलियत को ओवर एस्टीमेट किया. उन्होंने पहले ही यह रुख़ अपनाया कि हमें किसी की ज़रूरत नहीं है, कोई गठबंधन नहीं चाहिए, हम अकेले ही यह चुनाव लड़ेंगे.”
अदिति टंडन ने कहा कि कांग्रेस इस विचारधारा के साथ तैयार थी कि गठबंधन कर लिया जाए, जैसा कि लोकसभा चुनाव में देखा गया था.
अदिति टंडन ने आगे कहा, “केजरीवाल की एक और ग़लती यह थी कि वह टकरावपूर्ण और पीड़ित की राजनीति करते रहे.”
अदिति ने कहा, “2013 में विक्टिम कार्ड खेलने के बाद 2015 में जनता ने उन्हें बड़ी जीत दिलाई, लेकिन उसके बाद से वह लगातार यह संदेश देते रहे कि केंद्र सरकार और एलजी उन्हें काम नहीं करने दे रहे हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “अगर आप बार-बार यह कहते हैं कि आप एक सेट सिस्टम के साथ काम नहीं कर पा रहे हैं, तो लोग यही सोचेंगे कि फिर आप घर पर बैठें, क्योंकि इसी सिस्टम के साथ शीला दीक्षित ने भी काम किया और वह एक सफल मुख्यमंत्री बनीं.”
इस पर इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ओपिनियन एडिटर वंदिता मिश्रा ने कहा, “दिल्ली में जिनके पास कुछ नहीं है, उन्हें आम आदमी पार्टी से जो भी सुविधाएं मिलीं, जैसे स्कूल, फ्री बस सेवा या बिजली बिल की माफी, उन्होंने इन बदलावों को महसूस किया और दिल्ली चुनाव में केजरीवाल का समर्थन किया.”
उन्होंने आगे कहा, “लेकिन जैसे ही इस वर्ग से ऊपर जाते हैं, सवाल उठने लगते हैं कि दिल्ली की स्थिति कैसी है. दिल्ली की हालत अच्छी नहीं थी और आम आदमी पार्टी के पास यह दिखाने के लिए कुछ नहीं था कि उन्होंने इस दौरान दिल्ली में कोई सुधार किया है, चाहे वह ट्रैफिक जाम हो या पानी की समस्या हो.”
2020 की तुलना में कैसे बदल गए नतीजे?
साल 2020 में हुए चुनाव में पार्टी ने कुल 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में 62 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि 8 सीटें बीजेपी के ख़ाते में गई थीं.
इससे पहले 2015 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने कुल 67 सीटों पर जीत हासिल की थी और बीजेपी मात्र तीन सीटों पर सिमट गई थी.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि इन पांच सालों में ऐसा क्या हुआ कि नतीजों में इस तरह का अंतर देखने को मिला.
इस पर सी-वोटर के संस्थापक और निदेशक यशवंत देशमुख ने कहा, “चुनावों में बदलाव ‘शीशमहल विवाद’ के बाद से दिखने लगा था.”
उन्होंने बताया, “बजट में मिडिल क्लास को राहत मिलने का असर दिखा, जिससे लोग घर से बाहर निकलकर वोट डालने पहुंचे. पारंपरिक रूप से चुनाव अंतिम चार-पांच हफ्तों में पलटते थे, लेकिन इस बार नतीजे अंतिम चार दिनों में बदले हैं.”
देशमुख ने कहा, “केजरीवाल भूल गए कि पिछले दो चुनावों में उन्हें मध्यम वर्ग के वोटों से ऐतिहासिक जीत मिली थी. इस बार वही मध्यम वर्ग, जो लोकसभा में मोदी और विधानसभा में केजरीवाल को समर्थन देता था, लेकिन इस बार लोकसभा में मोदी की तरफ़ जाने के बाद उसने वापस आने से मना कर दिया. यही केजरीवाल की हार का कारण बना.”
ग्राउंड पर हालात और आप के कार्यकर्ताओं ने क्या बताया?
दिल्ली विधानसभा चुनाव के मतदान से पहले कई एक्सपर्ट्स का मानना था कि इस बार आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है.
लेकिन चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रदर्शन ने उन सभी को चौंका दिया है.
हमारे संवाददाता ने बताया कि जब वह आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं से बात कर रहे थे थे तब ज़्यादातर कार्यकर्ता केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर आरोप लगा रहे थे कि उन्हें जानबूझ कर हराया गया. हालांकि, कुछ कार्यकर्ता मान रहे थे कि उनकी ग़लती रही है और वे जनता से ठीक से जुड़ नहीं पाए.
ग्राउंड के हालात पर सी-वोटर के संस्थापक और निदेशक यशवंत देशमुख ने कहा, “दिल्ली में लंबे समय तक दलित वर्ग को यह डर था कि अगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आती है तो ये योजनाएं बंद कर दी जाएंगी. इसलिए बीजेपी को एंटी-रेवड़ी कल्चर से बाहर आकर केजरीवाल के पिच पर आकर खेलना पड़ा.”
इस पर बीबीसी संवाददाता अभिनव गोयल ने कहा, “जब हम ग्राउंड पर थे, तो आम आदमी पार्टी से लोगों का समर्थन छिटकते हुए नज़र आ रहा था, लेकिन जिस तरह से चुनाव परिणाम आए और भारतीय जनता पार्टी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की, हमें ऐसे आंकलन की उम्मीद नहीं थी.”
उन्होंने कहा, “इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया और हमने कई सीटों पर देखा कि जहां आम आदमी पार्टी हारी, वहां कांग्रेस के उम्मीदवारों को थोड़े ज़्यादा वोट मिले. क़रीब दस ऐसी सीटें हैं, जहां कांग्रेस की वजह से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार हारते दिखे.”
आप के भविष्य और विचारधारा पर क्यों उठ रहे सवाल?
इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के कई बड़े नेता चुनाव हार गए हैं. ख़ुद अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली से भारतीय जनता पार्टी के प्रवेश वर्मा से चार हज़ार से अधिक वोट से हार गए हैं.
जंगपुरा सीट से आप उम्मीदवार मनीष सिसोदिया और पटपड़गंज सीट से आप उम्मीदवार अवध ओझा भी हार गए हैं.
अब आम आदमी पार्टी के भविष्य को लेकर भी सवाल उठता है कि दिल्ली हारने के बाद अरविंद केजरीवाल अब अपनी पार्टी को कैसे आगे बढ़ाएंगे.
इस पर अदिति टंडन ने कहा, “अरविंद केजरीवाल पर यह आरोप भी लगता रहा है कि वह राइट विंग की राजनीति अपना रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “पावर एक ग्लू की तरह होता है और अपनी जगह खुद एक विचारधारा बनाता है. कांग्रेस में भी यही दिक्कत है, जब तक पावर में थी सभी नेता साथ थे, लेकिन जैसे ही पार्टी पावर से बाहर आई, कई दिग्गज भाजपा में शामिल हो गए. भाजपा की राजनीति अब यही कोशिश करेगी कि कैसे आम आदमी पार्टी को कमज़ोर किया जाए.”
अदिति टंडन ने कहा, “मुझे लगता है कि अरविंद केजरीवाल के लिए आगे का रास्ता काफ़ी मुश्किल होगा.”
इस पर इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ओपिनियन एडिटर वंदिता मिश्रा ने कहा, “हम यह नहीं कह सकते कि आम आदमी पार्टी के लिए विकल्प ख़त्म हो गए हैं. अब आम आदमी पार्टी को यह सोचना होगा कि जो उन्होंने कुछ चीज़ें की हैं, वे सही थीं और यही वजह है कि उनके पास अभी भी 40 प्रतिशत से ऊपर वोट शेयर है.”
“दिल्ली पर सबकी नज़र होती है और आप जो भी करेंगे, उसकी देशभर में चर्चा होगी. इसलिए उन्हें यह तय करना होगा कि बिना कैमरे के अपनी ख़ामियों को सुधारने के बारे में सोचें.”
उन्होंने यह भी कहा, “जैसे बीजेपी में नरेंद्र मोदी हैं, वैसे ही आम आदमी पार्टी में अरविंद केजरीवाल हैं. मुझे नहीं लगता कि उनके खुद के सीट हारने से उनकी छवि पर कोई असर होगा.”
चुनाव जीतने के बाद बीजेपी के लिए क्या होंगी चुनौतियां?
बीजेपी ने इस चुनाव में कई ऐसे वादे किए हैं जिनको लेकर जनता ने उन पर भरोसा दिखाया है. लेकिन किसी भी पार्टी के लिए चुनाव जीतने के बाद चुनौतियां पैदा होती हैं, जैसे किए गए वादों को पूरा करना. ऐसे में बीजेपी के सामने कई चुनौतियां सामने आती हैं.
इस पर अदिति टंडन ने कहा, “बीजेपी के लिए सबसे पहली चुनौती यह होगी कि वह किसे अपना मुख्यमंत्री बनाएंगे. दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि उन्होंने फ्रीबीज़ के बहुत से वादे किए हैं, जिन्हें उन्हें पूरा करना पड़ेगा. इसके अलावा, यमुना की सफ़ाई को लेकर भी बीजेपी के सामने चुनौती होगी.”
उन्होंने यह भी कहा, “हालांकि, दिल्ली में बीजेपी ने 27 साल बाद वापसी की है और केंद्र में बीजेपी की सरकार है, इसलिए दिल्ली में सूझबूझ के साथ निर्णय लिया जाएगा.”
इस पर यशवंत देशमुख ने कहा, “लोग आज भी नागरिक शासन को महत्व देते हैं. लाभार्थी योजनाओं को बनाए रखना होगा, क्योंकि देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसे इन योजनाओं की सख़्त ज़रूरत है.”
उन्होंने आगे कहा, “जो 10-12 साल पहले मध्यम वर्ग को कोई पूछने को राज़ी नहीं था, वही अब एक नई जाति बन गया है और इन्हें नज़रअंदाज़ करने वाले मुश्किल में आ सकते हैं.”
इस चुनाव का पंजाब और राष्ट्रीय राजनीति पर क्या असर?
द ट्रिब्यून की असोसिएट एडिटर अदिति टंडन ने कहा, “अरविंद केजरीवाल ने युवाओं को जो सपना दिखाया था कि शिक्षित, आईआईटी से पढ़े-लिखे युवा एक पार्टी बनाकर दिल्ली की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं, वह इस चुनाव के नतीजों से टूट गया है. यह सपना एक दशक तक जिन लोगों को प्रेरित कर रहा था, वे अब निराश हो गए हैं.”
उन्होंने कहा, “हमें यह देखना होगा कि क्या बीजेपी इस चुनाव में भ्रष्टाचार को राजनीतिक मुद्दा बनाने में सफल हो पाई है?”
पंजाब की राजनीति पर अदिति ने कहा, “पंजाब एक ऐसा राज्य है, जिसे समझना बहुत मुश्किल है. बीजेपी दिल्ली जैसे परिणाम पंजाब में नहीं दोहरा सकती, क्योंकि पंजाब की समस्याएं और लोग बहुत अलग हैं. जब तक बीजेपी पंजाब की पहचान और खेती के मुद्दों को संबोधित नहीं करती, तब तक वहां बीजेपी के लिए कोई प्लेटफ़ॉर्म तैयार करना बहुत मुश्किल होगा.”
अदिति टंडन ने कांग्रेस के बारे में कहा, “कांग्रेस की जो रणनीति दिल्ली के लिए थी वही पंजाब के लिए भी थी. आम आदमी पार्टी का नुकसान साफ़तौर पर देखा जा सकता है, लेकिन कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़ा और एक संदेश दिया कि वे तैयार हैं. अब पंजाब में आम आदमी पार्टी की गिरावट का फायदा कांग्रेस को मिलेगा, न कि बीजेपी या अकाली दल को.”
इन नतीजों से इंडिया गठबंधन पर पड़ेगा असर?
लोकसभा चुनाव में एक साथ चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में अलग-अलग चुनाव लड़ा था.
हालांकि इस चुनाव में इंडिया गठबंधन के कई दलों ने अपना समर्थन आम आदमी पार्टी को दिया था. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस चुनाव के नतीजों से इंडिया गठबंधन पर भी असर पड़ेगा?
इस पर वंदिता मिश्रा ने कहा, “इंडिया गठबंधन की छवि ऐसी है कि इसमें अलग-अलग पार्टियां हैं, जिनकी अलग-अलग रुचियां हैं. कांग्रेस के अलावा, जो भी क्षेत्रीय पार्टी हैं, अब वह सवाल उठाने लगी हैं कि कांग्रेस इस गठबंधन की अगुआई क्यों कर रही है, जब वह ग्राउंड पर वोट हासिल नहीं कर पा रही है.”
उन्होंने कहा, “हाल में हुए चुनावों में यह देखा गया कि बीजेपी का सामना क्षेत्रीय पार्टियां कर रही हैं, जबकि कांग्रेस उनके सामने प्रमुख पार्टी थी. इससे क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस के प्रति गुस्सा बढ़ रहा है कि अगर आप ग्राउंड पर अपना वोट हासिल नहीं कर पा रहे हैं, तो आप किस आधार पर इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं.”
वंदिता मिश्रा ने यह भी कहा, “लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया गठबंधन के खेमे में जो ऊर्जा आई थी, वह इस दिल्ली चुनाव के परिणामों के बाद कम हो जाएगी.”
वहीं इस पर अदिति टंडन ने कहा, “इस चुनाव के परिणाम से राष्ट्रीय राजनीति पर यह असर देखने को मिलता है कि विपक्ष के बिखरने का ख़तरा अब और बढ़ गया है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित