भारतीय सेना के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई ने कहा कि अगर हम मुरिदके की बात करें, तो यह लश्कर-ए-तैयबा का मुख्य आतंकी ठिकाना है। स्क्रीन पर जो भारतीय वायुसेना की स्ट्राइक दिख रही है, वह वहीं की है। इसमें पहले और बाद की तस्वीरें हैं, जिनमें कुछ अहम आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर तबाह किया गया है।
उन्होंने बताया कि ये हमले सात मई की सुबह के शुरुआती घंटों में किए गए थे। इन स्ट्राइक में 100 से ज्यादा आतंकवादियों को मार गिराया गया। इसके अलावा, बहावलपुर में भी ऐसे ही हमले किए गए। उन्होंने वहां की पहले और बाद की सैटेलाइट तस्वीरें दिखाईं, जिनमें साफ देखा जा सकता है कि रॉकेट और मिसाइलें कहां जाकर लगीं।
लेफ्टिन जनरल राजीव घई ने कहा कि इन इलाकों में आतंकियों और पाकिस्तानी सेना के बीच का खुला गठजोड़ साफ दिखाई दिया। यह इतनी स्पष्टता से दिखा कि हमें भी हैरानी हुई कि उन्होंने कोई एहतियात नहीं बरती। तस्वीरें खुद सारी कहानी बयान कर रही हैं।
#WATCH | Delhi | Director General Military Operations Lt Gen Rajiv Ghai says, “If we come down to Muridke. This is the terror hub of the Lashkar-e-Taiba. That’s the Indian Air Force strike you can see on the screen right on top. The before and after pictures, some high-value… pic.twitter.com/W0H1peEvd8
— ANI (@ANI) October 14, 2025
उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित एक आतंकी को मारे गए आतंकियों की जनाजे की नमाज पढ़ाते हुए देखा गया। इतना ही नहीं, पाकिस्तान सेना की चार कोर के जीओसी (जनरल ऑफिसर कमांडिंग) और कई अन्य बड़े अधिकारी भी इस जनाजे में शामिल हुए थे।
डीजीएमओ ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या 1980 के दशक के अंत में शुरू हुई थी। तबसे अब तक 28 हजार से ज्यादा आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि 1990 के दशक से अब तक अल्पसंख्यक समुदाय के एक लाख से अधिक लोगों को घाटी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिनमें करीब 60 हजार परिवार शामिल हैं। इस पूरे दौर में 15,000 से अधिक निर्दोष नागरिकों और 3,000 से ज्यादा सुरक्षा बलों के जवानों की जान जा चुकी है।
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उन्होंने आगे कहा कि 2016 में हमारे जवानों पर बर्बर हमला हुआ, उनके शिविर जलाए गए, जिसके जवाब में नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास कार्रवाई की गई। 2019 में हमने एलओसी पार एक सटीक हवाई हमला किया, जिसे केवल उसी क्षेत्र तक सीमित रखा गया। लेकिन इस बार जो घटनाएं हुईं, उनकी तीव्रता और व्यापकता ऐसी थी कि जवाब भी उसी स्तर पर देना जरूरी हो गया।
उन्होंने आगे कहा कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में जो आतंकी हमला हुआ, वह पूरी तरह प्रायोजित था और बेहद क्रूरता से अंजाम दिया गया। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकियों ने एलओसी पार से आकर 26 निर्दोष पर्यटकों को मार डाला। आतंकियों ने उन्हें उनकी पहचान कर, धर्म पूछ कर, उनके परिवार और प्रियजनों के सामने गोली मारी। घई ने कहा, इस हमले के बाद कुछ आतंकी संगठनों ने तुरंत इसे ‘गर्व’ बताकर इसकी जिम्मेदारी ली। कश्मीर रेजिस्टेंस फ्रंट (केआरएफ) ने शुरुआत में हमले की जिम्मेदारी ली, लेकिन जब उसे पता लगा कि मामला उसके काबू से बाहर चला गया है, तो उसने तुरंत अपना बयान वापस ले लिया।
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उन्होंने बताया कि सेना को पता था कि जवाब देना अनिवार्य होगा, लेकिन कार्रवाई में जल्दबाजी नहीं की गई। थल सेनाध्यक्ष (सीओएएस) ने भी मीडिया से बातचीत में कहा था कि सेना को पूरी स्वतंत्रता दी गई है कि वो कब, कैसे और कहां कार्रवाई करे। 22 अप्रैल से लेकर 6-7 मई की रात तक सब कुछ योजना के तहत हुआ। लक्ष्य तय करने में वक्त लिया गया। कुछ सावधानीपूर्ण सैन्य तैनातियां सीमा पर की गईं ताकि दुश्मन को चेतावनी मिल सके। इस दौरान सेना के साथ सरकारी एजेंसियां और अन्य विभाग भी आपस में तालमेल कर रहे थे। बड़ी संख्या में संभावित ठिकानों में से अंतिम लक्ष्य चुने गए। लेफ्टिनेंट जनरल घई ने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया के साथ-साथ एक संगठित और आक्रामक सूचना युद्ध भी चलाया गया, जो जवाबी रणनीति का अहम हिस्सा था।