क्यों अहम है यह फैसला?
ईपीएफओ का सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड के बजाय कॉर्पोरेट बॉन्ड में अधिक निवेश का फैसला कई लिहाज से अहम है। यह फैसला इसलिए लिया जा रहा है क्योंकि कॉर्पोरेट बॉन्ड सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड की तुलना में अधिक रिटर्न देते हैं। हालांकि, यह भी सच है कि कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश करने में कुछ जोखिम भी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बॉन्ड की तुलना में कॉर्पोरेट बॉन्ड अधिक जोखिम भरे होते हैं। इसका कारण यह है कि कॉर्पोरेट बॉन्ड जारी करने वाली कंपनियों के दिवालिया होने का खतरा होता है। अगर कोई कंपनी दिवालिया हो जाती है तो उसके बॉन्ड में निवेश करने वाले निवेशकों को अपना पैसा वापस नहीं मिल पाता है।
हालांकि, इस रिस्क को घटाया जा सकता है। अगर ऐसे कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश किया जाए जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं तो यह खतरा कम हो जाता है। निश्चित तौर पर इस फैसले से इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो में विविधता आएगी।
क्यों लेना पड़ा है फैसला?
ईपीएफओ कर्मचारियों की रिटायरमेंट सेविंग्स का प्रबंधन करता है। अभी ईपीएफओ सरकारी कंपनियों (PSUs) की ओर से जारी बॉन्ड में निवेश करता है। लेकिन, इन बॉन्ड्स से कम रिटर्न मिल रहा है। पूरे साल इनकी पर्याप्त उपलब्धता भी नहीं रहती। लिहाजा, ईपीएफओ अब कॉर्पोरेट बॉन्ड में ज्यादा निवेश करना चाहता है। कॉर्पोरेट बॉन्ड निजी कंपनियों की ओर से जारी किए जाते हैं। ये सरकारी बॉन्ड के मुकाबले ज्यादा रिटर्न देते हैं। लेकिन, इनमें जोखिम भी ज्यादा होता है।
कब दी गई थी प्रसताव को मंजूरी?
ईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को सीबीटी ने नवंबर 2024 की बैठक में मंजूरी दे दी थी। श्रम मंत्री, जो सीबीटी के अध्यक्ष भी हैं, से औपचारिक मंजूरी मिलने के बाद श्रम मंत्रालय इस हफ्ते वित्त मंत्रालय को प्रस्ताव भेजेगा। बताया गया है कि पीएसयू बॉन्ड की कम उपलब्धता और रिटर्न के चलते EPFO के पोर्टफोलियो मैनेजरों को परेशानी हो रही है। स्टेट डेवलपमेंट लोन की तुलना में PSU बॉन्ड का रिटर्न भी कम है।
कैसे हो सकता है कर्मचारियों को फायदा?
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है, तो इससे कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, ईपीएफओ को उन कंपनियों की साख की सावधानीपूर्वक और लगातार निगरानी करनी होगी जिनमें वे निवेश करते हैं। इस बदलाव से ईपीएफओ को बेहतर रिटर्न मिलने की उम्मीद है। लेकिन, कॉर्पोरेट बॉन्ड में निवेश का जोखिम भी है। इसलिए, EPFO को सावधानीपूर्वक निवेश करना होगा। इस फैसले का असर शेयर बाजार पर भी पड़ सकता है। देखना होगा कि वित्त मंत्रालय इस प्रस्ताव को मंजूरी देता है या नहीं। अगर यह प्रस्ताव मंजूर हो जाता है तो यह ईपीएफओ के निवेश के तरीके में एक बड़ा बदलाव होगा। यह बदलाव ईपीएफओ के करोड़ों सदस्यों के भविष्य को प्रभावित करेगा।