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Ex-cji Khanna To Onoe Committee: Constitutional Validity Does Not Mean Desirability – Amar Ujala Hindi News Live

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Aug 18, 2025


एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक पर चल रही बहस के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने साफ तौर पर कहा कि किसी कानून को सांविधानिक रूप से सही मान लेना इसका मतलब नहीं है कि वह जरूरी या उपयोगी भी है। संसदीय समिति को भेजे गए लिखित बयान में उन्होंने कहा कि इस विधेयक से देश के संघीय ढांचे पर सवाल खड़े हो सकते हैं और इस पर गहन चर्चा जरूरी है।

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चुनाव आयोग को बहुत ज्यादा अधिकार दिए गए- पूर्व सीजेआई

भाजपा सांसद पीपी चौधरी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति को भेजे लिखित बयान में पूर्व सीजेआई खन्ना ने कहा कि इस विधेयक में चुनाव आयोग को बहुत ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। आयोग को यह ताकत दी गई है कि वह राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ न कराने का फैसला कर सके और इस बारे में राष्ट्रपति को सिफारिश भी कर सके। उन्होंने कहा कि यह प्रावधान संविधान की मूल संरचना और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। 

पूर्व में एक साथ हुए चुनावों को बताया संयोग

पूर्व चीफ जस्टिस खन्ना ने यह भी कहा कि अगर चुनाव आयोग को चुनाव टालने का अधिकार मिल गया तो यह अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति शासन जैसा होगा। इसका मतलब होगा कि केंद्र सरकार राज्यों का नियंत्रण अपने हाथ में ले सकती है। उन्होंने कहा कि 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के एक साथ चुनाव हुए थे, वह सिर्फ संयोग था, न कि संविधान का आदेश।

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कई अन्य पूर्व सीजेआई भी दे चुकें हैं अपनी राय

पूर्व सीजेआई खन्ना ने यह भी स्पष्ट किया कि अदालतें जब किसी संशोधन को वैध मानती हैं, तो इसका अर्थ सिर्फ इतना होता है कि वह संविधान का उल्लंघन नहीं कर रहा। यह फैसला कभी यह नहीं बताता कि वह प्रावधान जरूरी भी है या नहीं। पूर्व चीफ जस्टिस खन्ना से पहले पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस यूयू ललित और पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई भी संसदीय समिति के सामने अपनी राय दे चुके हैं। भाजपा और उसके सहयोगी इस विधेयक को खर्च घटाने और विकास बढ़ाने वाला बता रहे हैं, जबकि विपक्ष का आरोप है कि यह राज्यों की स्वतंत्रता और लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करेगा।

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