जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में सशस्त्र आतंकवादियों ने अप्रैल में 26 पर्यटकों की क्रूरतापूर्ण हत्या कर दी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह हमला अकेला नहीं है, बल्कि यह दुनिया भर में खास समुदायों को निशाना बनाने वाली एक व्यापक चरमपंथी विचारधारा का हिस्सा है। उनका कहना है कि पहलगाम नरसंहार इस्लामी हिंसा के वैश्विक स्वरूप की प्रतिध्वनि है। पूर्व अमेरिकी अधिकारी डेविड कोहेन और पुरस्कार विजेता पत्रकार व भाषाविद् अवतन कुमार का मानना है कि पहलगाम में हुआ हमला कोई अकेली घटना नहीं है। न्यूजवीक में इंतिफादा शीषर्क से लिखे अपने लेख में उन्होंने लिखा है इस तरह के हमले वैश्विक चरमपंथी विचारधारा के प्रसार को दिखाते हैं, जो अब अमेरिका की धरती तक पहुंच चुकी है।
इंतिफादा को वैश्विक बनाओ का नारा सच हो रहा
कोहेन और कुमार कोलोराडो और वाशिंगटन डीसी में हाल ही में हुए हमलों का हवाला देते हुए लिखते हैं कि फ्री फलस्तीन के नारे लगाने वाले हमलावरों ने यहूदी लोगों पर हमला किया। ये वाकए इस बात का सुबूत हैं कि चरमपंथी नारा इंतिफादा को वैश्विक बनाओ नारा अमेरिका में भी सच हो रहा है। इंतीफादा की हिंसा कई समुदायों को निशाना बनाती है। हालांकि, इंतिफादा इस्राइल – फलीस्तीन संघर्ष से जुड़ा है, लेकिन यह हिंसक चरमपंथी सोच दुनिया भर के हिंदू, नाइजीरियाई ईसाई, यजीदी, द्रूज, अलावी और अहमदिया मुसलमान, कॉप्ट, सिख, बहाई और कई अन्य समुदायों को भी निशाना बनाती है।
पहलगाम नरसंहार ने यहूदियों की ताजा कर दी भयानक यादें
कोहेन और कुमार ने कहा, भारत के पहलगाम में 26 हिंदुओं और एक ईसाई की हत्या ने कई यहूदियों को 7 अक्तूबर 2023 के हमले की याद दिलाई, क्योंकि इसकी बर्बरता और कुछ जगहों पर पीड़ितों को बदनाम करने तक की कोशिश हुई। पहलगाम हिंसा पर भी विवादित प्रतिक्रियाएं आईं। पहलगाम हत्याकांड के बाद अल जजीरा की पूर्व पत्रकार सना सईद ने कश्मीर को कब्जा किया हुआ क्षेत्र बताया और भारत पर अपनी मुस्लिम आबादी का क्रूरतापूर्वक दमन करने का आरोप लगाया। कुछ अन्य ने भारत की कार्रवाई को नरसंहार, उपनिवेशवाद और रंगभेद करार दिया। लेख में आगे कहा गया है, भारत विरोधी आतंकवादी और उनके समर्थक की विचारधारा और रणनीति साफ तौर से हमास की हिंसा के लिए किए जाने वाले तर्कों से मेल खाती हैं।
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हमास सी वही विचारधारा, वही रणनीति
लेखक इस वैचारिक हिंसा को दशकों पहले 1980 और 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन से जोड़ते हैं। जब कश्मीरी हिंदू धर्म परिवर्तन कर लो, चले जाओ या मर जाओ की धमकियों के वजह से वहां से चले गए थे। उस समय की कई वीभत्स घटनाओं में से एक शिक्षिका गिरिजा टिक्कू की नृशंस हत्या थी, जिनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया और फिर उन्हें मशीनी आरी से दो टुकड़ों में काट दिया गया। लेखकों का तर्क है कि इस्राइल की 7 अक्तूबर की घटना ने हिंदुओं को तीन दशक पहले कश्मीर में हुए क्रूर नरसंहार की याद दिला दी। यह एक ही चरमपंथी सोच की निशानी है।
धर्म के आधार पर पहचान कर हत्या का तरीका
पहलगाम में पीड़ितों से इस्लामी कलमा पढ़ने को कहा गया और जो नहीं पढ़ सके उन्हें तुरंत मार दिया गया। केन्या में अल-शबाब ने भी इसी तरह सैकड़ों ईसाइयों की हत्या की थी। ये महाद्वीपों में चरमपंथी सोच की वजह से पैदा हुए साझा दर्द की मिसाल है। पहलगाम की त्रासदी ने केन्या में भी पुरानी यादें ताजा कर दीं, जो दिखाता है कि यह चरमपंथी हिंसा कई समुदायों को प्रभावित करती है।
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