क्यों गहलोत-पायलट को राजस्थान उप चुनाव से रखा जा रहा दूर?
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हरियाणा में करारी हार और जम्मू कश्मीर में निराशाजनक प्रदर्शन से सबक लेते हुए कांग्रेस ने महाराष्ट्र में बड़े नेताओं की फौज उतार दी है। राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने पूर्व सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी है। गहलोत बतौर सीनियर ऑब्जर्वर मुंबई और कोंकण संभाग देखेंगे। जबकि पायलट मराठवाड़ा संभाग के सीनियर ऑब्जर्वर बनाए गए है। इन दोनों नेताओं की नियुक्ति के बाद से ही राजस्थान कांग्रेस में हलचल तेज हो चली है। पार्टी के भीतर चर्चा जोरों पर है कि आखिर कांग्रेस हाईकमान ने उपचुनाव के बीच दोनों नेताओं को प्रदेश से दूर क्यों कर दिया? क्या इन्हें महाराष्ट्र की जिम्मेदारी के बहाने राज्य की सियासत से दूर रखने की कोशिश की जा रही है?
दरअसल, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के साथ ही राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर फिर से उप चुनाव होने जा रहे हैं। राज्य की झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी, सलूम्बर और रामगढ़ विधानसभा सीट पर 13 नवंबर को चुनाव होंगे। 23 नवंबर को इन सीटों के नतीजे आएंगे। इन सीटों पर विधानसभा चुनाव के एक साल के अंतराल में ही उप चुनाव होने जा रहे है। कांग्रेस, भाजपा, आरएलपी, बीएपी सहित अन्य दल उपचुनावों में जीत के लिए रणनीति बनाने में जुटे हुए है। चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में आए तो भजनलाल सरकार के कामकाज पर मुहर लगेगी। यदि कांग्रेस के पक्ष में आए तो पार्टी नेता इसे सत्ता विरोधी लहर बताएंगे। ऐसे में यह उपचुनाव भाजपा-कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय दलों के लिए भी परीक्षा की घड़ी है।
उपचुनाव के परीक्षा के बीच ही कांग्रेस हाईकमान ने बड़ा फैसला करते हुए पूर्व सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को राजस्थान के बाहर चुनावी ड्यूटी में लगा दिया है। दोनों नेताओं को महाराष्ट्र चुनाव में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। राजस्थान कांग्रेस के भीतर इन नेताओं को सौंपी गई जिम्मेदारी को लेकर चर्चा हो रही है। हरियाणा चुनाव के सीनियर ऑब्जर्वर रहे अशोक गहलोत को मुंबई-कोकण और ठाणे जैसे जगहों की जिम्मेदारी दी गई है, जो शिंदे शिवसेना का गढ़ माना जाता है। गहलोत के लिए चुनौती यह है कि यहां उन्हें शिवसेना (यूबीटी) के साथ तालमेल बैठाना होगा। क्योंकि शिवसेना और कांग्रेस के बीच सीट बंटवारे को लेकर लंबे वक्त से खींचतान चल रही है। इसी तरह कांग्रेस ने मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए सचिन पायलट को वरिष्ठ पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। मराठवाड़ा इलाके में विधानसभा की 46 सीटें हैं। यह इलाका किसी भी पार्टी का गढ़ नहीं रहा है. हालांकि, मराठा आरक्षण की वजह से इस बार एनडीए के लिए यहां की राह मुश्किल है। आरक्षण मुद्दे की वजह से मराठाओं का समर्थन कांग्रेस को मिल सकता है। हालांकि, पार्टी की मुश्किलें इन इलाकों में अन्य जातियों को साधने की है।
गहलोत-पायलट करेंगे राजस्थान में प्रचार
राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार संदीप दहिया कहते है कि, राजस्थान में 7 सीटों में उपचुनाव होने है। इन सात सीटों के समीकरण के हिसाब से केवल एक मात्र सीट सलूंबर भाजपा की सीट है। बाकी अन्य छह सीटों पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों का कब्जा है। इन उपचुनावों में अगर भाजपा एक से ज्यादा सीट हासिल करती है तो निश्चित है कि भाजपा को फायदा होगा। क्योंकि उसके पास वह सीटें भी आ जाएगी जो उसने विधानसभा चुनाव 2023 में नहीं जीत पाई थी।
जहां तक अन्य सीटों के बात है तो सभी के समीकरण अलग अलग है। खींवसर और चौरासी विधानसभा सीट पर क्षेत्रीय पार्टियों का दबदबा है। खींवसर सीट हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी का कब्जा है। इस सीट से बेनीवाल विधायक चुके गए थे। बाद वे नागौर सीट सांसद बन गए। इसी तरह चौरासी सीट से बीएपी के राजकुमार रोत विधायक चुने गए थे। वे भी सांसद बन गए। इन दोनों ही सीटों पर इन पार्टियों की पकड़ है। वहीं दौसा,देवली उनियारा और झुंझुनू विधानसभा पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है। इन सीटों से जीते कांग्रेस के विधायक सांसद बन गए है। इन सीटों पर अगर पायलट प्रचार करेंगे तो निश्चित ही कांग्रेस फिर से इसे हासिल कर सकती है। बाकि सलूम्बर और रामगढ़ सीट कांग्रेस के प्रभाव वाली सीटे है। सलूम्बर सीट पर भाजपा का कब्जा है। यहां न तो गहलोत का कोई फैक्टर है न ही सचिन पायलट का कोई प्रभाव है। इस सीटों पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा मेहनत करते हुए नजर आ रहे है। ताकि पार्टी इन सीटों पर जीत हासिल कर सके।
दहिया आगे कहते है, जहां तक गहलोत और पायलट की महाराष्ट्र में ड्यूटी लगाने की बात है तो दोनो नेता पहले भी कई चुनावी राज्यों के पर्यवेक्षक तौर पर नियुक्ति की जा चुके है। क्योंकि महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव इन सात सीटों की तुलना में बेहद अहम माना जा रहा है। कांग्रेस को वहां वरिष्ठ नेताओं की ज्यादा जरूरत है। ऐसे में ये दोनो नेता वहां जाकर पार्टी का कामकाज देखेंगे। जहां तक बात राजस्थान की है तो ये दोनों ही यहां जरुर प्रचार करेंगे क्योंकि इन दोनों के अलावा अभी तक कांग्रेस के पास को कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो पूरे राजस्थान पर प्रभाव डालता हो।
कांग्रेस ने दोनों नेताओं को बाहर भेज बनाया ‘थर्ड फ्रंट’
कांग्रेस की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते है कि, राजस्थान में 2023 में विधानसभा चुनाव के बाद 2024 में लोकसभा के चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के नेतृत्व में अच्छा प्रदर्शन किया। अब उप चुनाव भी उन्हीं की लीडरशिप में होने जा रहा है। कांग्रेस ने पायलट और गहलोत को उप चुनाव से बाहर भेजकर प्रदेश में एक ‘थर्ड फ्रंट’ को खड़ा करने की कोशिश की है। क्योंकि अगर ये दोनों नेता प्रदेश में रहेंगे तो नई लीडरशिप खुलकर काम नहीं कर पाएगी। ऐसे में इन दोनों को महाराष्ट्र में जिम्मेदारी देकर स्थानीय नेताओं के काम करने का मौका गया दिया है। उपचुनाव में पार्टी अगर जीत हासिल करती है स्थानीय नेताओं का मनोबल बढ़ेगा। जबकि हारती है तो ज्यादा नुकसान नहीं होगा।
हमारे बड़े नेता सभी सीटों पर करेंगे प्रचार
कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि उपचुनाव के लिए कांग्रेस के सभी नेता और कार्यकर्ता पूरी तरह तैयार है। हमारे बड़े नेता सभी जगह प्रचार करेंगे। उन्होंने प्रदेश की भाजपा सरकार को पर्ची सरकार बताते हुए कहा कि उसका पिछले नौ-दस महीनों का जो कार्यकाल गया है उससे लोग पूरी तरह निराश एवं परेशान हैं। आज राजस्थान के लोग खुलकर कह रहे है कि बनाई थी सरकार बन गया सर्कस। आए दिन हर आर्डर यू टर्न ले रहा है। आपस में झगड़े, मंत्रियों का पता नहीं हैं, सरकार चल रही है या नहीं, कोई पता नहीं है, ब्यूरोक्रेट सरकार चला रहे है। उसमें भी दो-तीन ग्रुप बने हुए हैं और जनता की कोई परवाह नहीं है।
राजस्थान उपचुनाव के लिए 13 नवंबर को वोटिंग
राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर फिर से विधायक के चुनाव होने जा रहे हैं। प्रदेश की झुंझुनूं, दौसा, देवली-उनियारा, खींवसर, चौरासी, सलूम्बर और रामगढ़ विधानसभा सीट पर 13 नवंबर को चुनाव होंगे और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे।