इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि चयनित उम्मीदवार को नियुक्ति का पूर्ण अधिकार नहीं है, लेकिन नियोक्ता भी मनमानी नहीं कर सकता। कोर्ट ने उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और माध्यमिक शिक्षा निदेशक को निर्देश दिया है कि वह हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट कारण बताएं कि विज्ञापित पदों के सापेक्ष रिक्तियों की संख्या कम क्यों की गई। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की खंडपीठ ने मेरठ के राजीव कुमार और अन्य की विशेष अपील पर दिया है। मामले की अगली सुनवाई 15 मई, 2025 को तय की गई है।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड प्रयागराज की ओर से टीजीटी-2013 भर्ती के लिए 5723 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया गया था। इसके बाद विज्ञापित पदों की संख्या घटाकर अंतिम परिणाम घोषित किया। इसके खिलाफ उम्मीदवारों ने याचिका दाखिल की।
कोर्ट के आदेश पर चयन बोर्ड ने 2019 में 1167 चयनित उम्मीदवारों को बिना विद्यालय आवंटित किए ही अवशेष पैनल जारी किया, लेकिन इनको नियुक्ति नहीं दी। इसके खिलाफ उम्मीदवारों ने याचिकाएं दाखिल की थीं। एकल न्यायाधीश ने याचिकाओं को खारिज कर दिया था। एकलपीठ के आदेश के खिलाफ उम्मीदवारों ने विशेष अपील दाखिल की, जिस पर कोर्ट सुनवाई कर रही है।
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अपीलकर्ताओं के सीनियर अधिवक्ता अशोक खरे और अभिषेक कुमार सरोज ने दलील दी कि विज्ञापित पदों की संख्या में बिना किसी उचित जांच के मनमानी तरीके से कमी की गई है। वहीं, प्रतिवादी बोर्ड के अधिवक्ता ने दलील दी कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्ण पीठ के फैसलों के अनुसरण में विभिन्न उम्मीदवारों को दिए गए समायोजन के कारण विज्ञापित पदों में कमी की गई। कोर्ट ने पक्षों को सुनने के बाद माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड से जवाब तलब किया है।