जनता की भावनाओं पर कार्य जरूरी
स्वामी जितेंद्रानंद जोर देकर कहा कि धार्मिक संगठनों सहित संगठन अक्सर जनता की भावनाओं के अनुसार कार्य करते हैं। यह दर्शाता है कि इन समूहों के कार्य उन लोगों की मान्यताओं और भावनाओं से आकार लेते हैं जिनका वे प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि केवल राजनीतिक प्रेरणाओं से। स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की यह टिप्पणी जगद्गुरु रामभद्राचार्य की ओर से मोहन भागवत से असहमति व्यक्त करने के एक दिन बाद आई है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने अपने बयान में कहा था कि मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम हैं। यह पहली बार है कि आरएसएस प्रमुख को भगवा परिवार के भीतर से विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इससे पहले द्वारका में द्वारका शारदा पीठम और बद्रीनाथ में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती संघ परिवार के खिलाफ रुख अपनाते थे, लेकिन उन्हें कांग्रेस की विचारधारा से जुड़ा हुआ देखा गया।
धार्मिक गुरुओं की अलग नीति
विश्लेषकों के अनुसार, जगद्गुरु रामभद्राचार्य के अवलोकन से संकेत मिलता है कि हिंदू धार्मिक गुरु आरएसएस के अधीनस्थ के रूप में पेश होने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका मानना है कि संघ को आस्था के मामलों में धार्मिक हस्तियों के नेतृत्व का सम्मान करना चाहिए। विशेषज्ञों ने कहा कि यह स्थिति धार्मिक मामलों में आरएसएस की भूमिका और प्रभाव को लेकर हिंदू धार्मिक समुदाय के भीतर संभावित झगड़े को भी दर्शाती है।
रामभद्राचार्य ने कहा कि संभल में जो कुछ भी हो रहा था वह वास्तव में बुरा था। उन्होंने कहा कि इस मामले में सकारात्मक पक्ष यह है कि चीजें हिंदुओं के पक्ष में सामने आ रही हैं। हम इसे अदालतों, मतपत्रों और जनता के समर्थन से सुरक्षित करेंगे। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ कथित रूप से किए गए अत्याचारों पर भी चिंता व्यक्त की।
मोहन भागवत ने जताई थी चिंता
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पिछले सप्ताह भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों के फिर से उभरने पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने लोगों को ऐसे मुद्दों को न उठाने की सलाह दी। मोहन भागवत ने कहा कि मंदिर-मस्जिद विवादों को उछालकर और सांप्रदायिक विभाजन फैलाकर कोई भी हिंदुओं का नेता नहीं बन सकता। उनका यह बयान हिंदू दक्षिणपंथी समूहों की ओर से देश भर में विभिन्न अदालतों में दशकों पुरानी मस्जिदों पर दावे जैसी मांग के बाद आया है।
हिंदूवादी संगठलों का दावा है कि ये पुरानी मस्जिदें, मंदिर स्थलों पर बनाई गई थीं। इन मस्जिदों में संभल की शाही जामा मस्जिद भी शामिल है, जिस मामले में हाल ही में हिंसा हुई थी। 24 नवंबर को भड़की हिंसा में पांच लोग मारे गए थे।
कांग्रेस ने बताया पापों को धोने का प्रयास
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया सामने आई है। कांग्रेस ने सोमवार को आरोप लगाया कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का ‘मंदिर-मस्जिद’ विवाद न उठाने का बयान लोगों को गुमराह करने के उद्देश्य से था। यह आरएसएस की ‘खतरनाक’ कार्यप्रणाली को दर्शाता है, क्योंकि इसके नेता ‘जो कहते हैं उसके ठीक विपरीत’ करते हैं। वे ऐसे मुद्दे उठाने वालों का समर्थन करते हैं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए आरएसएस प्रमुख को घेरा। उन्होंने कहा कि अगर आरएसएस प्रमुख ईमानदार हैं तो उन्हें सार्वजनिक रूप से घोषणा करनी चाहिए कि भविष्य में संघ ऐसे नेताओं का समर्थन कभी नहीं करेगा जो सामाजिक सद्भाव को खतरे में डालते हैं।
जयराम रमेश ने कहा कि आरएसएस प्रमुख ऐसा नहीं कहेंगे, क्योंकि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा आरएसएस के इशारे पर हो रहा है। कई मामलों में, जो लोग ऐसे विभाजनकारी मुद्दों को भड़काते हैं और दंगे करवाते हैं, उनके आरएसएस से संबंध होते हैं। आरएसएस उन्हें वकील से लेकर केस दर्ज कराने तक में मदद करता है। भागवत को लगता है कि ऐसी बातें कहने से आरएसएस के पाप धुल जाएंगे और उनकी छवि सुधर जाएगी।