क्या है पूरा मामला
1960 में भारत और पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि का मकसद सीमा पार बहने वाली नदियों के जल बंटवारे को लेकर विवादों को सुलझाना था। नौ साल की बातचीत के बाद इस संधि पर दस्तखत हुए थे। इसके तहत, सिंधु, झेलम और चेनाब नदियों का पानी ज्यादातर पाकिस्तान को दिया गया। जबकि रावी, ब्यास और सतलुज नदियों का पानी भारत को दिया गया। लेकिन भारत इन तीनों नदियों के पानी का इस्तेमाल सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए कर सकता है।
किशनगंगा रतले प्रोजेक्ट को लेकर विवाद
हाल के विवाद की जड़ किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाएं हैं। ये प्रोजेक्ट जम्मू-कश्मीर में हैं। पाकिस्तान का कहना है कि इन परियोजनाओं से उसे पानी की कमी हो सकती है और ये सिंधु जल संधि का उल्लंघन है। भारत का कहना है कि प्रोजेक्ट सिंधु जल संधि के प्रावधानों के मुताबिक हैं और पाकिस्तान के जल हिस्से को प्रभावित नहीं करेंगी। 2015 में, पाकिस्तान ने इन परियोजनाओं पर अपनी आपत्तियों के समाधान के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति की मांग की थी।
पाकिस्तान ने बदला दांव, अब लगा झटका
हालांकि, एक साल बाद पाकिस्तान ने अपना रुख बदल दिया। उसने मांग की है कि विवाद का समाधान मध्यस्थता न्यायालय करे। भारत इस दोहरी प्रक्रिया से सहमत नहीं है। भारत का कहना है कि सिंधु जल संधि के अनुसार पहले तटस्थ विशेषज्ञ के फैसले का इंतजार करना चाहिए। विश्व बैंक की ओर से नियुक्त तटस्थ विशेषज्ञ, माइकल लीनो ने सोमवार को अपना फैसला सुनाया। लीनो ने कहा कि वह दोनों परियोजनाओं पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के गुण-दोष पर फैसला सुनाने के लिए सक्षम हैं। भारत ने इस फैसले का स्वागत किया है।
तटस्थ एक्सपर्ट ने किया भारत का समर्थन
विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय भारत के इस रुख का समर्थन करता है कि किशनगंगा और रतले जलविद्युत प्रोजेक्ट के संबंध में तटस्थ विशेषज्ञ को भेजे गए सभी सात प्रश्न संधि के तहत उसकी क्षमता के अंतर्गत आते हैं। विदेश मंत्रालय ने आगे कहा कि भारत सिंधु जल संधि, 1960 के एफ में पैराग्राफ 7 के तहत तटस्थ विशेषज्ञ की ओर से दिए गए निर्णय का स्वागत करता है। अब तटस्थ विशेषज्ञ मामले की अगली सुनवाई करेंगे और सातों मुद्दों पर अपना अंतिम फैसला सुनाएंगे।
भारत तटस्थ विशेषज्ञ के साथ सहयोग को तैयार
भारत तटस्थ विशेषज्ञ के साथ सहयोग करने को तैयार है। लेकिन हेग में मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेगा। भारत का कहना है कि दो अलग-अलग प्रक्रियाएं चलाना सिंधु जल संधि के नियमों के खिलाफ है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का यह लगातार और सैद्धांतिक रुख रहा है कि संधि के तहत केवल तटस्थ विशेषज्ञ के पास ही इन मतभेदों पर निर्णय करने की क्षमता है।
पाकिस्तान के साथ संपर्क में भारत
इस कारण से, भारत अवैध रूप से गठित मध्यस्थता न्यायालय की कार्यवाही को मान्यता नहीं देता या उसमें भाग नहीं लेता है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत और पाकिस्तान सिंधु जल संधि में संशोधन और समीक्षा के मामले पर भी संपर्क में हैं।