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Jammu Kashmir Result 2024: जम्मू में तो मिला साथ, कश्मीर खाली हाथ… अब क्या होगा बीजेपी का प्लान? – jammu kashmir result 2024 bjp got support in jammu but empty hand in kashmir what will next plan

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Oct 8, 2024


नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव के ठीक बाद दो राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद हैरान कर देने वाले हैं। हरियाणा में माना जा रहा था कि इस बार बीजेपी को शिकस्त मिलेगी, लेकिन पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की है। वहीं, अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में विकास कार्यों की बड़ी घोषणाओं के बावजूद बीजेपी को हार मिली है। जम्मू में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा, लेकिन कश्मीर में हमेशा की तरह इस बार भी खाता नहीं खुला। जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की 90 सीटों में से 43 जम्मू और 47 कश्मीर में हैं। मंगलवार को घोषित हुए चुनाव नतीजों में जम्मू की सीटों पर अगर नजर डालें तो बीजेपी को यहां 29 सीटों पर जीत मिली है। हिंदू बहुल सीटों पर बीजेपी के पक्ष में जमकर वोट पड़े।आधी से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ही जम्मू क्षेत्र में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

हालांकि, कश्मीर में बीजेपी के हाथ इस बार भी खाली रहे। 47 सीटों वाले कश्मीर क्षेत्र में बीजेपी का एक भी सीट पर खाता नहीं खुल पाया। इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को जम्मू से 25 सीटें मिली थीं, लेकिन कश्मीर से एक भी प्रत्याशी नहीं जीता। 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद बीजेपी ने कश्मीर के लिए कई बड़ी योजनाओं का खाका तैयार किया, लेकिन इनका कोई असर नहीं दिखा।

नए कश्मीर का वादा नहीं दिला पाया वोट

बीजेपी ने इस चुनाव में कश्मीर की उस तस्वीर को सामने रखा था, जो दशकों से उग्रवाद की मार झेलने के बाद आजाद हुई थी। लंबे समय से जम्मू कश्मीर का प्रशासन केंद्र सरकार के अधीन था। ऐसे में घाटी की सुरक्षा, रोजगार के मौके और पर्यटन जैसे मुद्दों को सामने रखकर बीजेपी चुनाव मैदान में उतरी। एक नया कश्मीर बनाने का वादा भी किया गया, लेकिन बीजेपी की रणनीति घाटी में पूरी तरह से फेल साबित हुई।

कश्मीर में हार की क्या वजहें रहीं?

अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और घाटी में लंबे समय तक पाबंदियां रहीं। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने से लोगों के मन में जो टीस थी, उसे दूर करने की कोशिशें मजबूत तरीके से नहीं हो पाईं। सरकार के ‘नए कश्मीर’ की सुरक्षा रणनीति में सामूहिक जिम्मेदारी और सजा की नीति भी शामिल थी, जिसका नतीजा जनता में असंतोष के रूप में दिखा।

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आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ सरकार की सख्ती का लोगों ने समर्थन किया, लेकिन एक बड़ी आबादी को लगा कि इसकी आड़ में उनकी बोलने की आजादी छीनी जा रही है। इन लोगों को लगा कि डर दिखाकर विरोध को दबाया जा रहा है। भाजपा को घाटी में वोट ना मिलने का ये एक बड़ा कारण रहा।

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