हालांकि, कश्मीर में बीजेपी के हाथ इस बार भी खाली रहे। 47 सीटों वाले कश्मीर क्षेत्र में बीजेपी का एक भी सीट पर खाता नहीं खुल पाया। इससे पहले 2014 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को जम्मू से 25 सीटें मिली थीं, लेकिन कश्मीर से एक भी प्रत्याशी नहीं जीता। 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद बीजेपी ने कश्मीर के लिए कई बड़ी योजनाओं का खाका तैयार किया, लेकिन इनका कोई असर नहीं दिखा।
नए कश्मीर का वादा नहीं दिला पाया वोट
बीजेपी ने इस चुनाव में कश्मीर की उस तस्वीर को सामने रखा था, जो दशकों से उग्रवाद की मार झेलने के बाद आजाद हुई थी। लंबे समय से जम्मू कश्मीर का प्रशासन केंद्र सरकार के अधीन था। ऐसे में घाटी की सुरक्षा, रोजगार के मौके और पर्यटन जैसे मुद्दों को सामने रखकर बीजेपी चुनाव मैदान में उतरी। एक नया कश्मीर बनाने का वादा भी किया गया, लेकिन बीजेपी की रणनीति घाटी में पूरी तरह से फेल साबित हुई।
कश्मीर में हार की क्या वजहें रहीं?
अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया और घाटी में लंबे समय तक पाबंदियां रहीं। राजनीतिक जानकारों की मानें, तो जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने से लोगों के मन में जो टीस थी, उसे दूर करने की कोशिशें मजबूत तरीके से नहीं हो पाईं। सरकार के ‘नए कश्मीर’ की सुरक्षा रणनीति में सामूहिक जिम्मेदारी और सजा की नीति भी शामिल थी, जिसका नतीजा जनता में असंतोष के रूप में दिखा।
आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ सरकार की सख्ती का लोगों ने समर्थन किया, लेकिन एक बड़ी आबादी को लगा कि इसकी आड़ में उनकी बोलने की आजादी छीनी जा रही है। इन लोगों को लगा कि डर दिखाकर विरोध को दबाया जा रहा है। भाजपा को घाटी में वोट ना मिलने का ये एक बड़ा कारण रहा।