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Justice Br Gavai Next Chief Justice Of India,कौन हैं जस्टिस बीआर गवई, जो होंगे देश के अगले सीजेआई, इस दिन संभालेंगे जिम्मेदारी – justice br gavai profile who set to become next chief justice india 5 facts about justice br gavai

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Apr 16, 2025


नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश यानी सीजेआई होंगे। मौजूदा सीजेआई संजीव खन्ना ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस गवई के नाम की सिफारिश कानून मंत्रालय को भेज दी है। कानून मंत्रालय ने परंपरा के अनुसार, मौजूदा सीजेआई से उनके उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश मांगी थी। इसके जवाब में सीजेआई खन्ना ने जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का नाम आगे बढ़ाया। जस्टिस गवई की नियुक्ति कई मायनों में खास है, क्योंकि वह देश के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे हैं।

मई में संभालेंगे नए CJI की जिम्मेदारी

जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को समाप्त हो रहा है। उनके बाद वरिष्ठता के आधार पर जस्टिस बी.आर. गवई अगले सीजेआई के रूप में पदभार संभालेंगे। जस्टिस गवई देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। उनको 24 मई, 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल छह महीने से अधिक होगा और वह 23 नवंबर, 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

जानिए कौन हैं जस्टिस बीआर गवई

अमरावती में जन्म, 1985 में शुरू की वकालत

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ। उन्होंने 16 मार्च 1985 को वकालत शुरू की। उन्होंने अपने शुरुआती वर्षों में पूर्व महाधिवक्ता और हाईकोर्ट के जज बैरिस्टर राजा एस. भोसले के साथ 1987 तक कार्य किया। इसके बाद 1987 से 1990 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस की।

1990 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में की प्रैक्टिस

जस्टिस गवई 1990 के बाद मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में प्रैक्टिस की। फिर नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए भी स्थायी वकील रहे। इसके अलावा, उन्होंने सीकोम, डीसीवीएल जैसी विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं, निगमों और विदर्भ क्षेत्र की कई नगर परिषदों के लिए नियमित रूप से पैरवी की।

2000 में नागपुर खंडपीठ के लिए पब्लिक प्रॉसीक्यूटर नियुक्त

जस्टिस गवई अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाई कोर्ट, नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी अभिभाषक और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर नियुक्त किया गया। 17 जनवरी 2000 को बीआर गवई नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी अभिभाषक और पब्लिक प्रॉसीक्यूटर नियुक्त किया गया।

2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर मिली पदोन्नति

14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए और 12 नवंबर 2005 को स्थायी न्यायाधीश बने। उन्होंने मुंबई मुख्य पीठ सहित नागपुर, औरंगाबाद और पणजी की बेंच पर विभिन्न प्रकार के मामलों की अध्यक्षता की। 24 मई 2019 को उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

जस्टिस गवई ने सुनाए कई अहम फैसले

जस्टिस बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट में कई संविधान पीठ का हिस्सा रहे हैं। इस दौरान उन्होंने महत्वपूर्ण फैसले सुनाए हैं।

  • जस्टिस गवाई पांच जजों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने दिसंबर 2023 में पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को सर्वसम्मति से बरकरार रखा था।
  • पांच जजों की एक अन्य संविधान पीठ ने राजनीतिक वित्तपोषण के लिए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था। जस्टिस गवई भी इस पीठ में शामिल थे।
  • जस्टिस गवई पांच न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 4:1 के बहुमत से केंद्र के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को मंजूरी दी थी।
  • जस्टिस गवई सात न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने 6:1 के बहुमत से यह माना था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है। जिससे उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।
  • जस्टिस गवई सहित सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि पक्षों के बीच बिना मुहर लगे या अपर्याप्त रूप से मुहर लगे समझौते में मध्यस्थता खंड लागू करने योग्य है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह के दोष को ठीक किया जा सकता है और यह अनुबंध को अवैध नहीं बनाता है।
  • जस्टिस गवई के नेतृत्व वाली पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अखिल भारतीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा कि ‘कारण बताओ’ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए। प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए।
  • जस्टिस गवई उस पीठ का भी नेतृत्व कर रहे हैं जो वन, वन्यजीव और वृक्षों के संरक्षण से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही है।

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