सर्वे में गिर रही ट्रूडो की लोकप्रियता
साल 2022 के एक सर्वे में ज्यादातर कैनेडियन लोगों ने ये तक कह दिया था कि कि वो पिछले 55 साल के सबसे खराब प्रधानमंत्री रहे हैं। दरअसल ये सिर्फ एक उदाहरण है, कि किस तरह ट्रूडो अपने देश में बतौर राजनेता अपनी लोकप्रियता लगातार खो रहे थे और आज के समय में वो इतने अलोकप्रिय हो चुके हैं कि उन्हें अपना पार्टी प्रमुख का पद छोड़ना पड़ा।
इसलिए ट्रूडो ने किया इस्तीफे का ऐलान
ट्रूडो ने कह दिया है कि पार्टी प्रमुख और देश के पीएम के पद पर वो तब तक ही हैं, जब तक पार्टी दूसरा लीडर नहीं चुन लेती। दरअसल इस बात को लेकर अटकलें बहुत तेजी से लग रही थी कि बतौर लिबरल पार्टी प्रमुख इस हफ्ते इस्तीफा दे सकते हैं। ग्लोब एंड मेल न्यूजपेपर ने सूत्रों के मुताबिक ऐसी रिपोर्ट सामने आई हैं, जिनके मुताबिक अपनी पार्टी के अंदर अंसतोष और पब्लिक रेटिंग में गिरावट की वजह से ट्रूडो ऐसा फैसला ले सकते हैं।
ट्रूडो की लोकप्रियता में लगातार गिरावट
कनाडा की मीडिया में ट्रूडो की अलोकप्रियता को लेकर खबरें नई नहीं है। बीते एक अर्से से उनकी लोकप्रियता लगातार गोते खा रही है, वो भी तब जबकि इस साल यहां संसदीय चुनाव होने हैं और माना जा रहा है कि इन चुनावों में पीयरे पोइलिवरे की कंजर्वेटिव पार्टी लिबरल पार्टी को धूल चटा सकती है। Angus Reid का पोल बताता है कि बीते साल दिसंबर तक ट्रूडो की निगेटिव रैंकिंग 68 फीसदी तक पहुंच गई थी। सितंबर में विपक्ष ट्रूडो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी लाया गयाथा।
द्विपक्षीय रिश्तों की असहजता के पीछे ट्रूडो का निजी फैक्टर भी एक वजह
साल 2023 से लेकर अब तक कनाडा और भारत के रिश्तों ने बहुत उतार चढ़ाव देखा है। जून 2023 में खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के तीन महीने बाद पीएम ट्रूडो ने जिस तरह से हत्या के कथित भूमिका को लेकर भारत सरकार पर गंभीर आरोप लगाए, उसके बाद रिश्ते अब तक नॉर्मल नहीं हो पाए हैं। ट्रूडो की ओर से बार-बार इस तरह के संगीन आरोप लगाए गए और भारत को डिप्लोमैटिक परेशानी में डाला।
भारत-कनाडा के बीच रिश्ते हुए प्रभावित
भारत सरकार की ओर से कई बार खुले तौर पर ये कहा गया कि संबंधों के खराब होने के पीछे खुद पीएम ट्रूडो के राजनीतिक स्वार्थ रहे हैं। यानि अपनी प्रतिक्रिया में सरकार ने हमला निजी तौर पर ट्रूडो पर ही किया। भारत के कनाडा के साथ रिश्ते फिलहाल ऐसी ही लय पर चल रहे हैं। जानकार भी कहते हैं कि कनाडा में चुनाव के बाद नई सरकार ही रिश्तों की नई दिशा तय करेगी, क्योंकि भारत सरकार जानती है कि फिलहाल के हालात में ट्रूडो के बतौर पीएम रहते संबंध सामान्य तौर पर नहीं लौट पाएंगे।
अलोकप्रियता की आधारशिला पर खड़े हैं ट्रूडो
बीते कुछ महीनों से कनाडा में बढ़ी महंगाई के साथ- साथ इकोनमी, हेल्थकेयर और आवास से जुड़े मसले बेहद अहम हो चले हैं। ऐसे में 2015 में महज 44 साल की उम्र में पीएम की कुर्सी संभालने वाले ट्रूडो के लिए ये शायद सबसे मुश्किल समय है। हालांकि ट्रूडो एकदम से अलोकप्रिय नहीं हुए हैं। अपने पहले कार्यकाल से लेकर अब तक वो ऐसे विवादों में खुद को चाहे अनचाहे जोड़ते रहे हैं जिन्होंने उनकी इमेज को खासा नुकसान पहुंचाया है।
कई बार विवादों में आए
साल 2015 में पीएम की कुर्सी संभालने के एक साल बाद ही अरबपति आगा खान के एक प्राइवेट द्वीप पर छुट्टियां मनाना उनके लिए खासा भारी पड़ गया था। देश के एथिक्स कमिश्नर ने इसे कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट के मुताबिक नियमों का उल्लंघन माना। इसके बाद ट्रूडो ने वादा किया था कि आइंदा वह अपनी छुट्टियों के लिए वॉचडॉग से मंजूरी लिया करेंगे। पिछले साल अगस्त में कोस्टा रिका में परिवार संग मनाई गई छुट्टी को लेकर भी ट्रूडो लोगों के गुस्से के शिकार बने।
इस दौरान टीवी पर ट्रूडो कोस्टा रिका की धरती पर एक बड़े प्राइवेट जेट से बिना चेहरे पर मास्क पहने ही उतरते दिखाया गया। दरअसल उस वक्त ट्रैवल के लिए कनाडा में सख्त कोविड गाइडलाइन्स थी, जिसके मुताबिक मास्क सिर्फ खाने पीने के दौरान ही उतारा जा सकता था। लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कनाडा में लोगों के लिए अलग नियम हैं और पीएम के लिए अलग।
‘ट्रूडो एक पॉलोराइजिंग फिगर की तरह’
ट्रूडो की एक बायोग्राफी साल 2019 में सामने आई थी। ‘द एजुकेशन ऑफ ए प्राइम मिनिस्टर’ के लेखक जॉन इविसन कहते हैं कि कनाडा में ट्रूडो एक पॉलोराइजिंग फिगर की तरह सामने आए हैं। वो बच्चों और यंग वोटर्स में पॉपुलर हैं, लेकिन बड़ी उम्र के मर्द उन्हें खास पसंद नहीं करते। वो मानते हैं कि वो काफी अपनी उपब्धियों की वजह से नहीं, बल्कि अपने नाम की वजह से यहां तक पहुंचे हैं। इविसन आगे लिखते हैं कि ट्रूडो ने अथॉरिटेरियन पापुलिज्म को आगे बढ़ाया है, जो उनके आने से पहले कनाडा की राजनीति में साफ तरह से नहीं दिखता था।