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KP Sharma Oli: US कनेक्शन, चीनी प्रेम और दक्षिण कोरिया का रोल… केपी ओली के इस्तीफे की Inside Story

Byadmin

Sep 9, 2025


जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। KP Sharma Oli Resignation: दक्षिण एशिया के और देश की लोकतांत्रिक सरकार को युवाओं और छात्रों के आंदोलन (Nepal Protest) के सामने घुटने टेकने पड़े हैं। पड़ोसी देश नेपाल में छात्रों व युवाओं के हिंसक आंदोलन (Gen-Z Protest) के दूसरे दिन ही पीएम के पी शर्मा ओली को इस्तीफा (Oli Resign News) देना पड़ा है।

कूटनीतिक सूत्रों ने पिछले 12 घंटों के दौरान भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण कोरिया ने जिस तरह की प्रतिक्रिया दी, उसने भी पीएम ओली पर दबाव बनाने में काफी अहम भूमिका निभाई है।

ओली सरकार के पास विकल्प सीमित

भारत समेत इन देशों ने ओली सरकार के प्रति किसी तरह की सहानुभूति नहीं दिखाई गई। उल्टा इन देशों ने शांतिपूर्ण छात्र आंदोलन का समर्थन करने की तरफ संकेत दिया। जानकारों की मानें तो घरेलू वजहों के साथ ही किसी भी प्रमुख देश की तरफ से समर्थन नहीं मिलने के बाद ओली सरकार के पास विकल्प सीमित हो गये थे।

क्या है भारत का रिएक्शन?

ओली के इस्तीफा देने के कुछ ही घंटे बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘हम कल से नेपाल में हो रहे घटनाक्रमों पर करीब से नजर रख रहे हैं और कई युवा जीवन के नुकसान से अत्याधिक दुखी हैं। हमारे विचार और प्रार्थनाएं मृतकों के परिवारों के साथ हैं। हम उन लोगों के लिए शीघ्र स्वस्थ होने की भी कामना करते हैं जो घायल हुए हैं। एक करीबी मित्र और पड़ोसी के रूप में हम आशा करते हैं कि सभी संबंधित पक्ष संयम बरतेंगे और किसी भी मुद्दे को शांतिपूर्ण साधनों और संवाद के माध्यम से हल करेंगे। हमने यह भी ध्यान दिया है कि नेपाल के काठमांडू और कई अन्य शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। नेपाल में रह रहे भारतीय नागरिकों से सावधानी बरतने और नेपाली अधिकारियों द्वारा जारी कदमों और दिशानिर्देशों का पालन करने की सलाह दी जाती है।’

नेपाल हिंसा पर किस देश ने क्या कहा?

भारत की प्रतिक्रिया से पहले ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, कोरिया गणराज्य, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेपाल में स्थित दूतावासों की तरफ से जारी संयुक्त बयान में कहा गया, ‘हम काठमांडू और नेपाल के अन्य क्षेत्रों में आज देखी गई हिंसा से गहरे तौर पर दुखी हैं, जिसमें प्रदर्शनों के दौरान हुई जान की दुखद हानि और चोटें शामिल हैं। हम पीड़ितों के परिवारों, सभी प्रभावित लोगों और घायलों के शीघ्र और पूर्ण स्वस्थ होने की कामना करते हुए अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं। हमारी सरकारें शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकारों के प्रति अपनी दृढ़ समर्थन को पुनः दोहराती हैं। हम सभी पक्षों से अधिकतम संयम बरतने और आगे के उत्तेजना से बचने और इन मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह करते हैं।’

नेपाल की छवि भारत विरोधी और चीन समर्थक

दरअसल, ओली कुल मिलाकर तीन बार नेपाल के पीएम बने लेकिन भारत के साथ वह कभी भी विश्वसनीय द्विपक्षीय संबंध स्थापित नहीं कर पाये। पहली बार उन्होंने 11 अक्टूबर, 2015 को नेपाल के प्रधानमंत्री का कार्यभार संभाला था। तब उनकी छवि पूरी तरह से भारत विरोधी और चीन के समर्थन वाली थी।

भारत के साथ नेपाल के संबंधों में तनाव

  • हालांकि बाद में पीएम नरेन्द्र मोदी की सरकार ने नेपाल के साथ संबंधों को लेकर काफी परिपक्वता से कदम उठाए लेकिन ओली के कार्यकाल के दौरान कई बार ऐसे कदम उठाए गए हैं जो भारत के साथ नेपाल के संबंधों में तनाव पैदा करने का काम किया।
  • अपने पहले कार्यकाल (2015-2016) में ओली ने चीन के साथ एक ट्रांजिट और परिवहन समझौता किया। इससे भारत का नेपाल के विदेशी व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो गया।
  • इस कदम को भारत की पारंपरिक भूमिका को कमजोर करने के लिए देखा गया, क्योंकि नेपाल भौगोलिक रूप से भारत पर निर्भर रहा है। ओली का चीन प्रेम एक बड़ी वजह है कि वह नेपाल के कई बार पीएम बनने के बावजूद भारत के साथ विश्वासपूर्ण संबंध स्थापित नहीं कर पाये।

नेपाल का नया राजनीतिक नक्शा

ओली जब दोबारा नेपाल के पीएम बने तब उन्होंने मई 2020 में एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्रों को नेपाल का हिस्सा दर्शाया गया। ये क्षेत्र भारत के नियंत्रण में हैं और भारत ने इसे ‘एकतरफा कदम’ बताते हुए खारिज कर दिया था।

भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद

उस समय भारत पूर्वी लद्दाख के सीमा क्षेत्र में चीन के आक्रामक सैन्य गतिविधियों का सामना कर रहा था तब ओली ने भारत-नेपाल के बीच सीमा विवाद को हवा देने की कोशिश की थी। हालांकि तकरीबन एक वर्ष बाद ही उन्हें राजनीतिक अस्थिरता की वजह से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके अलावा भी वह भारत के खिलाफ कई बार बयानबाजी करते रहे हैं।

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