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Mahakumbh 2025,Prayagraj News: महाकुंभ में पहुंचे संत राम बाहुबली दास, जानिए अघोरी से पर्यावरण बाबा बनने तक की दिलचस्प कहानी – saint ram bahubali dash reach maha kumbh know interesting story of his transformation from agthori to paryavaran baba

Byadmin

Jan 10, 2025


शिवपूजन सिंह, प्रयागराज: गंगा, यमुना, सरस्वती के त्रिवेणी स्थल पर आयोजित महाकुंभ में हिमाचल प्रदेश से साइकिल यात्रा करते हुए पर्यावरण बाबा प्रसिद्ध देवराहा बाबा शिविर में आ चुके हैं। फिलहाल वह अन्य संन्यासियों जैसे लिलिपुट बाबा, रुद्राक्ष वाले बाबा, खड़ेश्वरी बाबा, हाथ उठाए बाबा, घोड़ा वाले बाबा, चमत्कारी बाबा, चाय वाले बाबा, फलाहारी बाबा आदि जैसे चर्चित बाबाओं में नहीं शामिल हैं।मेला क्षेत्र में इतने सर्द मौसम में एक सफेद धोती लपेटे साइकिल के आगे पीछे के लगे करियर पर छोटे-छोटे पौधों को लेकर जाते जरूर दिख जाते हैं। खासकर कल्पवासियों के शिविरों में जाकर उनके शिविर के सामने तुलसी, शमी का पौधा लगाते हुए भी दिख जाते हैं। यही साइकिल से चलने वाले, आशीर्वाद के रूप में पौधे देने वाले , पर्यावरण संरक्षण, जीव जंतु की रक्षा, नदी पर्वत की रक्षा, जंगल की रक्षा, गोरक्षा की अलख जगाने वाले पर्यावरण बाबा हैं।

महाकुंभ 2025 अपनी विभिन्नओं, विशेषताओं के समागम के रूप में भी जाना जाता है। जहां करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। देश-दुनिया के कोने-कोने लाखों की संख्या में संगम में साधु-संत और भक्त यहां आ रहे हैं। इन्हीं साधु संतों में कुछ साधु संत अपनी विशेष वेशभूषा, अपनी तपस्या और हठयोग के कारण काफी चर्चित रहते हैं। खासकर जन आस्था से जुड़े अखाड़े के संन्यासी इसमें आगे हैं, लेकिन महाकुंभ में कुछ बिरले साधु संत संन्यासी हैं, जो इन सब से बिल्कुल हटकर हैं, जिनको कोई दिखावा नहीं है। पर्यावरण संरक्षण की बात कहते हुए प्रकृति की ओर लौटने का संदेश देने वाले पर्यावरण बाबा का असली नाम संत राम बाहुबली दास है। यह संगम क्षेत्र में घूम-घूमकर पर्यावरण का संदेश दे रहे हैं।

महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर रहे

एनबीटी ऑनलाइन टीम से बात करते हुए पर्यावरण बाबा यानी संत राम बाहुबली दास ने बताया कि मां-बाप बचपन में गुजर गए। जीवन साधु-संतों के बीच ही बीता। शुरुआती दौर में वह वाराणसी के श्मशान घाट हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट पर अघोरियों की संगत में रहे। अघोरियों जैसी वेशभूषा भी रही। श्मशान चिता की लकड़ी पर भोग प्रसाद बनाया, लाशों को जलाने में सहयोग किया श्मशान घाट की सफाई की। अघोरियों के साथ बैठकर खाना भी किया। घोर अघोर की संगत में महाभोग को समझा, लेकिन जल्दी ही उन्हें लगा कि वह जिस ज्ञान और शांति गुरु सेवा की खोज में निकले हैं, वह कहीं और है।

एक घटना ने बदल दी जिंदगी

पर्यावरण बाबा ने बताया कि मास कम्युनिकेशन से ग्रेजुएशन करने के बाद बालक दास महाराज से गुरु दक्षिणा लेकर संन्यास के मार्ग पर चल पड़े। गुरुमुखी होकर वैष्णव पंथ से जुड़ा। स्वामी शिवानंद पहले गुरु बने। महाराष्ट्र में दर्शन संन्यास को समझा। शुरुआत में मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल नॉर्थ साउथ की तरफ रहे। वहां परशुराम कुंड में स्थित आश्रम से गोवंश की चोरी हो गई, जिससे गुरुजी काफी दुखी हुए थे। उन्होंने बताया कि चोरी हुई गोवंश की हत्या की गई। ऐसी घटनाएं उस क्षेत्र में आए दिन होती थीं। इस घटना से मुझे लगा कि वह अब भी वह जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां असुर भी हैं। गुरु जी के मार्गदर्शन में यहीं से उन्होंने प्रकृति पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठा लिया।

पर्यावरण संरक्षण को अपनी सेवा मान ली

शुरुआती दौर में वह काफी आक्रामक रूप से गोवंश की रक्षा के लिए कूद पड़ते थे। कई बार काफी विवाद हुआ। जिसकी वजह से जीवन पर भी संकट आया। इलाज के लिए हॉस्पिटल में भी रहना पड़ा। धीरे-धीरे जीवन में परिवर्तन आया और उत्तर भारत हिमालय पहुंच गए। मानव, जीव जंतु के जीवन, पर्यावरण संरक्षण को ही अब सेवा बनाकर चल रहे हैं। इसके बाद से अब वह साइकिल यात्रा के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने में लगे हैं।

हिमाचल से महाकुंभ पहुंचे पर्यावरण बाबा

उन्होंने कहा कि यदि प्रकृति को लेकर हम समय से सजग नहीं हुए तो आने वाले वंशजों को हम कुछ नहीं दे पाएंगे और मानवता अपना मूल खो बैठेगी। यही कारण है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए वे हिमाचल से पंजाब के रास्ते साइकिल यात्रा करके संगम पहुंचे हैं। इस दौरान रास्ते में जितने भी जिले गांव पड़े, वहां पौधे लगाते लोगों को जागरूक करते हुए यहां तक पहुंचे हैं।

अब तक 25 हजार किलोमीटर साइकिल से यात्रा कर चुके हैं

उन्होंने बताया कि विरक्त हो संन्यास को जिया, घनघोर जंगल, हिमालय की कंदराओं में वर्षों रहे। इसी बीच जर्नलिज्म की डिग्री हासिल की। अपनी पुस्तक ‘प्रकृति से परमात्मा की ओर’ भी लिखी, पर बहुत प्रचारित प्रसारित नहीं हो पाई। पर्यावरण बाबा ने बताया कि वह साइकिल से हिमाचल से 1500 किलोमीटर की यात्रा कर महाकुंभ क्षेत्र पहुंचे हैं। अब तक करीब 25 हजार किलोमीटर की यात्रा साइकिल से कर चुके हैं।

पर्यावरण बाबा ने बताया कि देशभर में भ्रमण कर जगह-जगह पर पंचवटी और त्रिवेणी संस्कार से वृक्षारोपण करवाते हैं। जल जीवन, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी के जीवन की संरक्षण के लिए लोगों को जागरुक करते हैं और प्रेरित करते हैं। वृक्षों का दान लेते हैं और उन्हीं वृक्षों में और पेड़-पौधे मिलकर लोगों को भी आशीर्वाद स्वरूप यही देते हैं।

12 जनवरी को निकाली जाएगी निवेदन यात्रा

संत राम बाहुबली दास ने बताया कि महाकुंभ क्षेत्र में 12 जनवरी को उनकी तरफ से एक विशाल निवेदन यात्रा निकाली जाएगी। क्षेत्र के शिविरों में जाकर पर्यावरण के प्रति जागरुक किया जाएगा। 13 जनवरी पौष पूर्णिमा के पहले स्नान पर्व से हर शिविर में जाकर तुलसी और शमी के पौधे वितरित किए जाएंगे। संत राम बाहुबली दास संगम लोअर मार्क स्थित देवराहा बाबा शिविर में रह रहे हैं।

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