भारत में संक्रमणों का इलाज लगातार कठिन होता जा रहा है। एंटीबायोटिक दवाओं का गलत और जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल बैक्टीरिया को दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बना रहा है।
इसे सुपरबग महामारी कहते हैं लेकिन सबसे चिंताजनक है कि देश के अधिकांश अस्पतालों को खुद ही नहीं पता कि वे मरीजों को कितनी और कौन-सी एंटीबायोटिक दवाएं दे रहे हैं। इस डाटा के अभाव के चलते यह समझना मुश्किल है कि दवाएं कहां सही और कहां बेवजह इस्तेमाल हो रही हैं।
इसके चलते भारत सरकार के स्वास्थ्य महानिदेशालय ने नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) के साथ मिलकर पहली बार अस्पतालों में एंटीबायोटिक खपत मापने के लिए 51 पन्नों के निर्देश जारी किए हैं। राष्ट्रीय रोगाणुरोधी प्रतिरोध नियंत्रण कार्यक्रम के तहत सरकार ने देश के प्रत्येक अस्पताल के लिए एक तरीका तय किया है, जिसके जरिये सरकारी से लेकर प्राइवेट तक सभी अस्पताल एक ही फार्मेट में अपनी एंटीमाइक्रोबियल खपत का रिकॉर्ड रख सकें और सरकार तक रिपोर्ट भेज सकें। नए एसओपी में स्वास्थ्य महानिदेशालय ने स्पष्ट किया है कि अस्पतालों को अब अंतरराष्ट्रीय मानक यानी हर 100 बिस्तर पर कितनी दवा उपयोग हुई, इसके आधार पर डाटा देना होगा।
आईसीयू और बच्चों के वार्ड सबसे जोखिम में
केंद्रीय स्वास्थ्य महानिदेशालय ने आईसीयू और बच्चों के वार्ड पर विशेष जोर दिया है। आईसीयू में मरीज गंभीर हालत में भर्ती होते हैं और डॉक्टर अक्सर मेरोपेनेम, पिपेरसिलिन-टाजोबैक्टम, कोलिस्टिन जैसी शक्तिशाली दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। राष्ट्रीय एएमसी निगरानी नेटवर्क (एनएसीएनईटी) के मुताबिक, कई अस्पतालों में आईसीयू बिस्तर कम हैं लेकिन वहां एंटीबायोटिक दवाओं की खपत बहुत ज्यादा है। बच्चों में दवाओं की खुराक और प्रभाव अलग होता है, लेकिन कई अस्पताल बच्चों के लिए भी वही दवा पैटर्न अपना रहे हैं जो वे वयस्कों के लिए रख रहे हैं।
निजी अस्पताल में सबसे ज्यादा दवा उपयोग, डाटा गायब
महानिदेशालय ने अपने दस्तावेज में साफ लिखा है कि भारत के निजी अस्पतालों में एंटीबायोटिक का उपयोग सबसे ज्यादा होता है लेकिन इन अस्पतालों की रिपोर्टिंग लगभग शून्य है। आईसीएमआर की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. कामना वालिया का कहना है कि निजी अस्पताल अगर डाटा नहीं देंगे तो देश की असल तस्वीर कभी सामने नहीं आएगी।
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अस्पतालों को बनानी होगी डाटा टीम
सभी अस्पतालों के लिए जारी निर्देशों में स्वास्थ्य महानिदेशालय ने कहा है कि अब हर अस्पताल को एक रोगाणुरोधी प्रबंधन (एएमएस) टीम बनानी होगी जो यह तय करेगी कि कौन-सी दवा कब दी जाए। भारत के अस्पतालों की स्थिति…जनवरी से जून 2025 तक 59 सरकारी मेडिकल कॉलेजों 1,04,187 मरीजों की जांच में सर्वाधिक 32 फीसदी ई. कोलाई रोगजनक पाया गया। इसके बाद क्लेबसिएला प्रजाति (23%), स्यूडोमोनास प्रजाति (12%), एसिनेटोबैक्टर प्रजाति (11%), एंटरोकोकस प्रजाति (11%), स्टैफिलोकोकस ऑरियस मिली।