केरल में एक मुस्लिम धर्मगुरु की ओर से 55 साल की एक महिला की आलोचना किए जाने के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है.
पिछले साल दिसंबर में 55 साल की एक मुस्लिम महिला मनाली गई थीं. वहां बर्फ से खेलते हुए उनका एक रील सोशल मीडिया पर डाला गया था. इस रील को देखकर मुस्लिम धर्मगुरु ने महिला की आलोचना की थी.
उनकी आलोचना के बाद सोशल मीडिया पर इसे लेकर बहस तेज़ हो गई है.
मुस्लिम धर्मगुरु ने जिस वीडियो को देखकर महिला की आलोचना की थी उसमें वो अपने बेटियों के साथ बर्फ से खेलती दिख रही हैं.
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वीडियो में महिला अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बड़े उत्साह से बर्फ़ से खेलने का आनंद लेने को कहती दिख रही हैं. इसके साथ ही वो बर्फ के गोलों को उछालकर पकड़ने की कोशिश कर रही हैं.
उनकी बेटियों ने उनकी रील बनाकर इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया था. इसके बाद ये रील वायरल हो गई.
कोझिकोड के नादापुरम की रहने वाली इस महिला के पति का 25 साल पहले निधन हो गया था.
इसके बाद उन्होंने सिंगल मदर के तौर पर अपनी तीन बेटियों को पाल-पोस कर बड़ा किया. निश्चित तौर पर एक लंबे अरसे बाद उन्हें बर्फ और सुकून के इन पलों ने उत्साहित किया होगा.
लेकिन उनकी ये खुशी ज़्यादा दिनों तक टिकी नहीं रही. उनकी रील को देखते हुए पारंपरिक सुन्नी समस्त समूह कंठपुरम अबुबकर मुसलियार इब्राहिम सकाफ़ी पुज़ाक्कतिरी नाराज़ हो गए और उन्होंने महिला की आलोचना की.
उनका कहना था कि विधवा महिला को इस तरह से घूमने और बर्फ से खेलने के बजाय में घर में क़ुरान पढ़ना चाहिए.
लेकिन केरल यूनिवर्सिटी में इस्लामी इतिहास के प्रोफे़सर अशरफ़ कदक्कल ने बीबीसी हिंदी से कहा,”ये बेहद गै़रज़रूरी टिप्पणी है. अपनी बेटियों और परिवार के सदस्यों के साथ इस उम्रदराज महिला का मनाली जाना इस आदमी को कैसे परेशान कर सकता है. आख़िर इसने इस्लाम को कैसे प्रभावित कर दिया.”
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महिला की बेटी जिफ़ाना भी इससे काफी परेशान दिखीं.
उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि धर्मगुरु ने कैसे उनकी मां की सार्वजनिक तौर पर आलोचना कर उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की है.
जिफ़ाना ने कहा कि धर्मगुरु की आलोचना के बाद उनके रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने भी उनकी मां की आलोचना शुरू कर दी, जिसका उनकी मां पर गहरा असर पड़ा है.
जिफ़ाना ने एक सोशल मीडिया में लिखा, “हमारी इस शानदार ट्रिप के दौरान मेरी मां पहली बार बर्फ देख रही थीं. इसे देखकर वो बेहद खुश थीं. हमने इंस्टाग्राम रील बनाकर ये खुशी साझा की थी. लेकिन इसके बाद लोगों ने उन्हें बुरा-भला कहना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया पर उन्हें भला-बुरा कहने वालों की बाढ़ आ गई.”
“मैं अपनी मां को दिलासा देकर उनका आत्मविश्वास लौटाने में कामयाब रही. लेकिन मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारी खुशियों को पलों को इस तरह धार्मिक विवाद में बदल दिया जाएगा.”
उन्होंंने धर्मगुरु पर सीधा हमला करते हुए कहा, “एक जाने-माने विद्वान ने हमारे परिवार की शांति भंग कर दी है.”
उन्होंने कहा, “क्या 25 साल पहले अपने पति को खो चुकी एक नाती-पोतों वाली महिला के लिए कोने में बैठकर क़ुरान पढ़ाना काफी है. एक विधवा महिला को दुनिया के अनुभव लेने से क्यों रोका जाए? क्या ये दुनिया सिर्फ पुरुषों के लिए बनाई गई है?”
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मुस्लिम धर्मगुरु ने जिस महिला की आलोचना की है वो वीडियो में एक लाल ड्रेस पहनी हुई दिख रही हैं.
काला चश्मा पहनी हुईं वो महिला पूरे जोश से ज़ोर-ज़ोर से कही रही हैं- “दोस्तों, हज़ारा, शाफ़िया, नसीमा और सफ़ीना- घर में बैठे-बैठे क्या रही हो? तुम्हारा जोश कहां है? तुम सबको यहां ज़रूर आना चाहिए. 55 साल की इस उम्र में भी मैं यहां आकर मस्ती कर रही हूं. मैं बर्फ पर लेटी हुई हूं. ये कितना खूबसूरत है. आप लोगों को ऐसा मज़ा कहां मिलेगा. आ जाओ. हम तो यहां दोबारा आएंगे.”
वीडियो में कैमरे के पीछे से आ रही एक आवाज़ सुनाई पड़ती है. “अम्माची (मां) आपका मूड कैसा है..”
जवाब मिलता है- “पोली मुडू (यानी ज़बरदस्त)”
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भले ही धर्मगुरु ने इस महिला की आलोचना की हो लेकिन अब धर्मगुरु की भी आलोचना हो रही है.
सोशल मीडिया पर पुरुषों और महिलाओं, दोनों ने उनकी आलोचना की है.
प्रोफेसर अशरफ़ इसकी तारीफ़ करते हैं. वो कहते हैं, “लगभग सारे लोगों ने महिला का समर्थन किया है. ये काफी सकारात्मक नज़रिया है.”
“इस महिला की बेटी समेत कई लोगों ने एक अहम सवाल पूछा है. क्या क़ुरान या हदीस या किसी प्रामाणिक इस्लामी पाठ में ऐसा कोई प्रमाण या संदर्भ है जो किसी विधवा महिला को पर्यटन स्थलों पर जाने या अपने परिवार के सदस्यों के साथ यात्रा करने पर रोक लगाता है.”
इस सवाल का जवाब वो खुद ही देते हैं.
वो कहते हैं, “किसी भी ऐसे पाठ में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है. ऐसा कोई संदर्भ नहीं है. दूसरी ओर क़ुरान हमेशा से इस्लाम को मानने वालों को दुनिया की सैर करने के लिए प्रोत्साहित करता है. ताकि वो अल्लाह के संकेतों को देख सके. क़ुरान में इसका साफ निर्देश है.”
प्रोफ़ेसर अशरफ़ ने कहा, “ऐसे कई मुस्लिम विद्वान भी हैं जो लोगों को दुनिया के अजूबों को देखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि इससे अल्लाह में आपकी आस्था बढ़ती है. यही संदर्भ है.”
सवाल ये उठ रहा है कि क्या मुस्लिम धर्मगुरु के कहे अनुसार एक मुस्लिम विधवा महिला को एक कोने में बैठकर सिर्फ़ कुरान पढ़ने के अलावा कुछ नहीं करना चाहिए?
प्रोफेसर अशरफ़ ने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है. दरअसल मैंने एक प्रसिद्ध इस्लामिक विद्वान से इस्लाम के कुछ नियमों के बारे में बात की थी, जिनका विधवा मुस्लिम महिलाओं को पालन करना होता है. विद्वान ने मुझे बताया कि कोई भी महिला इद्दत की चार महीने की अवधि पूरी किए बगै़र भी बाहर जा सकती है.”
(इद्दत वह अवधि होती जिसमें एक महिला को उसके पति के निधन के बाद शादी करने की इजाज़त नहीं होती है. ऐसा इसलिए कि इस दौरान वो गर्भवती न हो.)
प्रोफेसर अशरफ़ ने कहा कि “इसका मतलब यह है कि अगर किसी महिला के पति की मौत हो जाती है और वो खुद को भावनात्मक तौर पर संभाल सकती है तो जिस कंपनी या सरकारी विभाग में काम करती है वहां भी जाने से उसे रोका नहीं जा सकता. आमतौर पर यह माना जाता है कि उस दौरान महिला को सफेद कपड़े ही पहनने चाहिए. ऐसा कोई निर्देश नहीं है.”
उनके मुताबिक़ इस्लामी विद्वान ने कहा, “लोग कई ग़लत धारणाओं को मान लेते हैं. ये लोग इस्लाम की मूल भावनाओं से अपरिचित हैं. आम तौर पर इस तरह की टिप्पणियां इस्लामी विद्वान नहीं करते.”
जिन मौलवी इब्राहिम ने पर्यटन के लिए महिला की आलोचना की थी उनसे संपर्क करने की हमारी कोशिश कामयाब नहीं हुई.
महिला और उनकी बेटी जिफ़ाना की तरह उनका भी मोबाइल फ़ोन बंद था.
कंठपुरम अबुबकर मुसलियार के बेटे हकीम अज़हरी से भी हमारा संपर्क नहीं हो पाया क्योंकि उनके सचिव ने बताया कि वो दिल्ली गए हैं, वो उनसे बात करवाने की कोशिश करेंगे. उनका जवाब आने पर इस स्टोरी में अपडेट किया जाएगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित