लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान जब चिराग पासवान की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में पुनर्वापसी हुई थी और सीटों को लेकर पेच फंसा था, तभी मामले को सुलझाते हुए बिहार विधानसभा चुनाव में बेहतर का आश्वासन दिया गया था। यह आश्वासन सिर्फ चिराग को नहीं मिला था। जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा को भी मिला था। और, सारे आश्वासन भारतीय जनता पार्टी की तरफ से मिले थे। सो, बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए के अंदर सीटों के बंटवारे का गणित भी भाजपा के खाते में है अभी। कोटा तय हुआ है, सीटें नहीं। सीटों पर बात फाइनल करने के बाद एलान होगा। यह अब बहुत जल्द होने वाला है। उसके पहले समझाने का दौर चलना है।
कोटा में जदयू एक तरफ, बाकी इस बार भाजपा के खाते में
एनडीए के अंदर इस बार सीटों का बंटवारा इस तरह से हो रहा है कि जनता दल यूनाईटेड एक तरफ है और दूसरी तरफ भाजपा व बाकी दल। एनडीए में बिहार विधानसभा की 243 में से 100 सीटें जदयू को मिल रही हैं। जदयू इसे बढ़ाने की कोशिश में है, लेकिन भाजपा उसे इतने पर राजी कराने की कोशिश में है। भाजपा के कोटे में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा है। भाजपा को 143 सीटों में से अपने पास 100+ रखकर बाकी को बांटना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने ताजा दिल्ली दौरे में इसपर बात करने के लिहाज से भी तैयारी कर गए थे। सीट बंटवारे में जदयू के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय झा की अहम भूमिका है। जदयू अभी अपनी सीटें भी घोषित नहीं कर रहा है, क्योंकि एनडीए की एकता दिखाने के लिए भाजपा पहले अपने कोटे के सभी दलों को समझा कर तैयार कर लेगी, फिर यह होगा।
जदयू कोटे से निकल मांझी भाजपा कोटे में चले गए थे
एनडीए में सीटों का बंटवारा कोटे पर कई बार हो चुका है। इस बार भी वही हुआ है। बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जीतन राम मांझी की पार्टी- हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी- जनता दल यूनाईटेड के खाते में थी। यही कारण है कि 2020 के जनादेश से उलट जब नीतीश कुमार महागठबंधन के मुख्यमंत्री बने तो मांझी उस तरफ थे। विपक्षी एकता के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब सारा सीन बना रहे थे, तब वह मांझी पर भरोसा नहीं कर रहे थे।
23 जून 2023 को विपक्षी दलों की पटना में बैठक से पहले मांझी के बेटे संतोष सुमन ने महागठबंधन सरकार से इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद जदयू के अंदर बहुत कुछ हुआ और दिसंबर 2023 में जब नीतीश कुमार ने पार्टी की कमान अपने पास ली तो अगले महीने, यानी जनवरी 2024 में वह फिर से एनडीए में वापस आ गए। मांझी के बेटे संतोष सुमन ने जब इस्तीफा दिया था, तभी से वह एक तरह से भाजपा कोटे में हैं। जदयू से अलग, एनडीए में साथ। इस बीच मांझी के साथ विधानसभा में जो हुआ और वह केंद्र में भाजपा के सहारे जितनी ताकत से बैठे- वह सभी ने देखा। मांझी को इसी ताकत का हवाला देकर भाजपा सीटों के लिए समझाने की तैयारी में है।
चिराग हमेशा भाजपा कोटे में रहे, इस बार भी उन्हीं पर ध्यान
लोक जनशक्ति पार्टी बनाने वाले दिवंगत रामविलास पासवान लंबे समय तक एनडीए में रहे थे। उनके निधन के बाद भाई पशुपति कुमार पारस और बेटे चिराग पासवान के बीच दूरियां बनीं। तात्कालिक फायदा पारस को मिला और वह केंद्र में मंत्री बन गए। बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू को बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बनाने में कामयाब रहे चिराग पासवान को भाजपा फिर से अपने साथ ला रही है, यह साफ दिखने वाली बात पारस नहीं समझ सके और खुद ही केंद्रीय मंत्री का पद छोड़कर निकल गए। इसके बाद न उनकी एनडीए में वापसी हुई और न महागठबंधन में भाव मिला। ऐसे में लोजपा के एक हिस्से, यानी लोजपा (रामविलास) को लोकसभा में चुनिंदा सीटें मिलीं और जीत भी। इससे उनका नंबर बढ़ा और केंद्रीय मंत्री पद की ताकत मिली।
इस बार विधानसभा चुनाव के लिए लोकसभा चुनाव के दौरान ही बात हो गई थी कि चिराग बिहार में मजबूत स्थिति चाहते हैं। भाजपा ने तब भी वह आश्वासन दिया था और अब भी अपने कोटे से बाकी तीनों दलों के मुकाबले ज्यादा सीटें देने को तैयार है। बस, भाजपा का एक हिस्सा यह मानता है कि जदयू को सीटें देना मजबूरी है, लेकिन बाकी तीनों दलों में से किसी को बहुत ताकतवर बनाना उसके लिए मुफीद नहीं। इसलिए, लोजपा (रामविलास) की सीटें फाइनल होने में समय लग रहा है। चिराग पासवान 40 तक सीटें चाह रहे हैं, लेकिन उन्हें 20 से अधिक सीटें नहीं देने की राय बनी हुई है।
उपेंद्र कुशवाहा को विधानसभा चुनाव में क्या मिलने वाला है?
भाजपा ने मांझी और चिराग को केंद्र में मंत्री की कुर्सी दे रखी है। उपेंद्र कुशवाहा इसके इंतजार में हैं। वह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में एक बार मंत्री रह चुके हैं। मानव संसाधन राज्यमंत्री थे। ताकत भी थी। लेकिन, पारस की तरह वह भी निकल गए थे। इस बार एनडीए में प्रवेश भाजपा के खाते से हुआ है। कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे थे और बीच में अपनी पार्टी का विलय भी जदयू में करा दिया था। लेकिन, पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से खटास के बाद वह निकले और फिर राष्ट्रीय लोक मोर्चा बना लिया।
इस बार वह भाजपा खाते से हैं। कैडर के मामले में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी कमजोर है, हालांकि वह 10 सीटों की मांग कर रहे हैं। भाजपा उनके लिए एक रास्ता तलाश रही है ताकि विधानसभा के सीट बंटवारे में उन्हें संतुष्ट किया जा सके। भाजपा पुराने परफॉर्मेंस को देखते हुए कुशवाहा पर बड़ा दांव खेलने को तैयार नहीं है, इसलिए उन्हें विधानसभा सीटों को लेकर संतोष करना पड़ेगा।
तो, आखिर क्या होने वाला है एनडीए के सीट बंटवारे का
जब नीतीश कुमार दिल्ली में इलाज और राजनीतिक बातचीत के लिए आए थे, ठीक उसी समय उपेंद्र कुशवाहा दिल्ली में थे। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी नजदीक देखे गए थे। मतलब, वह भाजपा के करीब खुद को दिखाने की हर कोशिश कर रहे हैं। चिराग पासवान स्पष्ट कर चुके हैं कि वह पीएम मोदी के हनुमान बने रहेंगे और कोई बगावत नहीं करने जा रहे हैं। ऐसे में सीटों के बंटवारे पर भाजपा को अलग-अलग अपने साथियों से बात करनी है। यह बातचीत अभी फाइनल नहीं हुई है। जब यह फाइनल हो जाएगा, तब भाजपा एनडीए के सभी घटक दलों को एक साथ बुलाकर बैठक करेगी और उसके बाद सीटों का एलान किया जाएगा। फिलहाल के लिए यह मान लेना काफी है कि 100-101 जदयू के खाते में रहेगा और बाकी 143 में से 100+ भाजपा के खाते में। भाजपा अपने 100+ को बढ़ाने के लिए चिराग, मांझी और कुशवाहा को तैयार करेगी, फिर सीटों को लेकर बाकी कुछ होगा।
अभी बिहार विधानसभा में एनडीए की स्थिति ऐसी है
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में भाजपा को 74 सीटें हासिल हुई थी। उप चुनाव में भाजपा ने राजद की कुढ़नी सीट छीन ली। विकासशील इंसान पार्टी के तीनों विधायकों को भाजपा ने अपनी पार्टी में मिला लिया। इस तरह भाजपा के विधायकों की संख्या 78 हो गई थी। फिर लोकसभा चुनाव में राजद और भाकपा-माले के एक-एक विधायक सांसद बने तो उप चुनाव 2024 में दोनों सीटें भाजपा ने अपने खाते में कर अपनी संख्या 80 कर ली। दूसरी तरफ, एनडीए के घटक जदयू को बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 43 सीटें ही मिली थीं। जदयू ने बहुजन समाज पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी के एक-एक जीते विधायकों को शामिल करा अपनी संख्या 45 विधायक की। जदयू विधायक बीमा भारती के राजद में जाने से यह संख्या 44 रह गई। उप चुनाव 2024 में बेलागंज सीट राजद से छीनकर जदयू ने अपनी संख्या 45 कर ली। मांझी की पार्टी हम-से के चार विधायक जीते थे। मांझी लोकसभा चुनाव में उतर खुद सांसद बने तो उप चुनाव में उनकी सीट उन्हीं की पार्टी के खाते में आ गई। मतलब, चार के चार हैं। लोजपा के एक विधायक ने जीत दर्ज की थी, जो जदयू में चले गए। इस तरह चिराग की पार्टी विधानसभा में नहीं है। कुशवाहा को पिछले चुनाव में कुछ हासिल नहीं था।